कविता का आना - 25.08.21
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कविता है कि फुर्सत के पल में आती नहीं
जब- जब किसी कामों में रहता हूं एकदम व्यस्त
जब - जब होता हूं दुखी या एकदम बेचैन
या फिर किसी पार्टी में मस्ती में डूबा हुआ
खुशी से नाच रहा होता हूं
या किसी अनिवार्य दैनिक क्रियाओं में लगा होता हूं
मसलन नहाते हुए खाते हुए
रास्ते में कहीं जाते हुए गाड़ी चलाते हुए
या फिर गहरी रात में नींद के बीच
अचानक आ धमकती है कविता
कविता का आना भी गज़ब है
वह कभी मेरी सहूलियतों में नहीं आती
जब आराम से बैठा होता हूं एकदम खाली
सहूलियतों में लिखी गईं सारी बातें
केवल शाब्दिक ताने बाने लगती है
वो कुछ और भले हो जाए
पर कविता हरगीज नहीं होती
हां ये अजीब तो है
कि अक्सर बेचैनियों में ही आती है कविता
और हम हैं कि
कविता लिखने के लिए वक्त ढूंढते रहते हैं
सोचते रहते हैं कि
कोई फुर्सत का पल मिले और कविता लिख लें।
-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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