ऐतिहासिक इमारतों को देखने के बाद -04.09.21
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जब जब ऐतिहासिक इमारतों को देखता हूं
अनगिनत सवाल और अनगिनत खयाल
उमड़ने लगते हैं मेरे भीतर
जैसे जैसे उसकी पुरानी सीढ़ियों से नीचे उतरते जाता हूं
वही सीढियां धीरे धीरे मुझमें उतरने लगती हैं
ईमारत की मजबूत गहरी नींव
उतनी ही सख्ती से जमने लगती है
मेरे हृदय तल की गहराई तक
ईमारत पर उत्कीर्ण कलाकृतियां
उत्कीर्ण होने लगती हैं हुबहू
मेरे मानस पटल पर
उसके प्राचीरों स्तंभों गुंबदों और कलशों की भव्यता देख
अव्यक्त लालित्य भाव से भर जाता है मेरा मन
पर कुछ टूटने सा लगता है मेरे भीतर
जब देखता हूं
ईमारत के भग्नावशेषों को
फिर भी जितना प्रविष्ट होता हूं उसके भीतर
वह उतना ही प्रविष्ट होते जाता है मेरे भीतर
उससे बाहर आने को जी नहीं चाहता
पर बाहर आने के बाद भी
वह रह जाता है मेरे भीतर..।
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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