प्रेम और युद्ध -- 10.09.21
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प्रेम और युद्ध में अद्भुत समानता है
दोनों के होने के लिए मुहूर्त की ज़रूरत नहीं होती
दोनों विजय की कामना से लड़े जाते हैं
मगर परिणाम की विशेष चिंता नहीं होती
दोनों में केवल खोना पड़ता है
बचता कुछ भी नहीं
दोनों ही याद किए जाते हैं
प्रेम सुगंध की तरह
युद्ध बुरे सपने की तरह
सबसे बड़ी बात
प्रेम और युद्ध
कभी ख़त्म नहीं होते
प्रेम और युद्ध में गहरी असमानता भी है
अहम की संतुष्टि के लिए युद्ध होता है
जबकि अहम के मिट जाने से प्रेम होता है
प्रेम के लिए युद्ध करना महानता है
मगर युद्ध से प्रेम करना महा विनाशक है
प्रेम सदा सराहे जाते हैं
युद्ध की सदा भर्त्सना की जाती है
प्रेम में युद्ध और युद्ध में प्रेम नहीं होता
प्रेम,युद्ध है
मगर युद्ध केवल युद्ध है।
--- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479