Saturday 27 February 2021

गिला 27.02.21



गिला - 27.02.21
------------------------
चाहा 

मिला

नहीं कोई गिला।

नहीं चाहा

नहीं मिला

है बहुत

गिला..गिला..गिला।

क्यों चिढ़ता हूँ बेटी से..? 27.02.21
---------------------------------------------------------
पाँच साल की बेटी मेरी
अपने हमउम्र तीन-चार सहेलियों के साथ
गुड्डा-गुड़िया,टैडी वियर, डॉक्टर सेट,किचन सेट जैसे तमाम प्रकार के खिलौनों को बिखराए
आने-जाने के रस्ते को घेरे हुए
अपने खेल में रहती है मशगूल

वह अपनी माँ के पुकारे जाने की आवाज़ नहीं सुनती
वह आने-जानेवाले किसी को देखती भी नहीं
उसे बिलकुल भी चिंता नही है किसी काम की
उसे समय के गुज़र जाने का डर नहीं
उसे आगे बढ़ती घड़ी की सुइयाँ परेशान नहीं करती
उसे कहीं वक़्त पर पहुँचने की जल्दी नहीं
उसके आँखों में सपने या फिर कोई हसीन खयाल भी नहीं 

वह जब खेलती है तो बस खेल में ही रहती है
और हम हैं कि एक काम करते हुए कई कामों में बंटे होते हैं
हम एक समय में एक काम में नहीं होते
और एक काम भी ठीक से नहीं कर पाते
हम सबका देखते हैं सुनते हैं पर अपना कभी देख सुन नहीं पाते

मुझे अक़्सर चिढ़ा जाती है
मेरी बेटी की बेपरवाह बातें और उसकी मासूमियत भरी हँसी।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
   9755852479


वह आएगा - 25.02.21
--------------------------------------------
तमाम मुश्किलों से गुजरते
मंझधार में फंसी छोटी सी पत्ती की तरह डूबते-उतराते
अत्याचारी तूफानों से लड़ते-जूझते
खत्म कर देने के ख़तरनाक साजिशों में भी
अपने भीतर सपनों के कुछ बीज बचाकर
वह आएगा,जरूर एक दिन आएगा..

इस ख़ूबसूरत बहुरंगी दुनियाँ की हिफाज़त के लिए
दम घुट रहे बेचैन आत्माओं की राहत के लिए
स्वतंत्रता और समानता के गीत गाते
सुविधाचारियों के लजीज़ खानों में 'कंकड़' की तरह
वह आएगा,जरूर एक दिन आएगा..

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
   9755852479

थूकना सीखें !  24.02.21
---------------------------------------
रोज सुबह घूमने जाता हूँ
उजाला होने पर
सड़क की ओर कभी नज़रें झुकाकर नहीं चलता
नज़रें झुकाने से पूरी सड़क भर
दिखाई पड़ जाते हैं विभत्समय खखारें और थूकें

थूकना किसी बीमारी के लक्षण हो सकते हैं
मगर मेरे देश में थूकना ही एक बीमारी है

जीवन में थूकने के अनेक अवसर आते हैं हमारे पास
पर जहाँ थूकना चाहिए हम थूक नहीं पाते

निकृष्ट से निकृष्ट और वीभत्स से विभत्स घटनाओं और दृश्यों को देखकर
हम चुपचाप अपना थूक पी जाते हैं।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479



1. गांधी जी के तीन बंदर -20.02.21
------------------------------------
गांधी जी के तीन बंदरों से 
बड़े प्रभावित हैं वे
लोगों को भले ही बुरा दिन दिखाते रहे
पर अपने साथ बुरा होते
कभी नहीं देख सकते 
उनका मानना है कि कभी बुरा नहीं देखना चाहिए

आप अपनी समस्याओं पर
गलाफाड़ चिल्लाते रहें
उनके कानों में कभी जूँ नहीं रेंगती
उनका फलसफा है कि कभी बुरा नहीं सुनना चाहिए

वे बोलेंगे
रैलियों और जुलूसों में लगातार बोलेंगे
आपको उनकी बातें बुरी लगे तो लगे
उनका मानना कि वे हमेशा भले के लिए ही बोलते हैं।

2. गांधीवादी
---------------------------
वे अपने चुनाव प्रचार में
जी भरके नोट बांटते हैं
उन्हें लगता है
नोटों में छपे गांधी के फोटो देखकर
जनता उन्हें 'गांधीवादी' समझेंगे।

3. गांधी के गाल
---------------------------------
एक गाल पर तमाचा मारने से
गांधी जी अपना दूसरा गाल आगे बढ़ा देते थे
गांधीवादियों के पास भी दो गाल है
पर इनके गाल तमाचा खाने के लिए नहीं
केवल 'गाल बजाने'के लिए है इनके गाल।

4. गांधी के नाम
----------------------------------
वे पक्के राष्ट्रवादी हैं
उनके राष्ट्र निर्माण में 
गांधी का होना बिलकुल जरूरी नहीं है
उन्हें आगे बढ़ने के लिए
बस गांधी का नाम ही काफी है।

5.सम्मति
---------------------------
गांधी जी अपनी प्रार्थना में कहते रहे-
" ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम
सबको सम्मति दे भगवान।"
गांधी जी की प्रार्थना उन्हें रास नहीं आया
वे बुरा मान गए
गांधी की हत्या कर दी उसने
पता नहीं 
उन्हें ईश्वर ने कैसी सम्मति दी. .?

6. गांधी के विचार
--------------------------------------
वे गांधी से बहुत प्रेम करते हैं
युगों-युगों तक
गांधी को जीवित रखना चाहते हैं
स्मारकों में,मूर्तियों में,नोटों में, तस्वीरों में
पर वे कतई नहीं चाहते
गांधी जी जिंदा रहे उनके विचारों में
वे बेहद परेशान हो जाते हैं
पल भर गांधी के विचार आने मात्र से।

नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479


लौट आओ बसंत..! - 02.02.21
----------------------------------------------/
न खिले फूल न मंडराई तितलियाँ
न बौराए आम न मंडराए भौंरे
न दिखे सरसों पर पीले फूल
आख़िर बसंत आया कब..?

पूछने पर कहते हैं--
आकर चला गया बसंत !
मेरे मन में रह जाते हैं कुछ सवाल
कब आया और कब चला गया बसंत ?
कितने दिन तक रहा बसंत ?
दिखने में कैसा था वह बसंत ?

कोई उल्लास में दिखे नहीं
कोई उमंग में झूमे नहीं
न प्रेम पगी रातें हुई
न कोई बहकी बहकी बातें हुई

मस्ती और मादकता सब भूल गए
न जाने कितने होश वाले और समझदार हो गए

अरे छोड़ो भी इतनी समझदारी ठीक नहीं
कहीं सूख न जाए हमारी संवेदनाओं की धरती

प्रेम से मिले हम खिले हम महके हम
मुरझाए से जीवन में फिर से बसंत उतारे हम ।

नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479

तेरे बिना 11.01.21
-----------------------
तेरे बिना रहना
देह के बिना गहना
निस्सीम दुखों को
सहना-सहना-सहना
-- नरेन्द्र

रिश्ते -10.01.21
-----------------------------------------
रिश्ते छत की तरह होते हैं
रिश्ते बने रहे तो छाया मिलती है
अगर रिश्तों में छेद हो जाए 
तो वह छत की तरह रिसने लगता है

रिसते हुए रिश्ते जल्द ही टूटकर बिखर जाते हैं
फिर रिश्तों के बोझ में दबकर दफ़्न हो जाते हैं।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479


पुराने की चाहत-10.01.21
--------------------------------------------/
मैं अब भी गाँव जाता हूँ
मग़र वह गाँव वही गाँव नहीं होता है
गाँव में अब भी हैं बहुत सारे लोग
मग़र वे लोग वही लोग नहीं होते है
गाँव में जब तक रहता हूँ
अब वह गाँव मेरा गाँव नहीं लगता है

जब छोटा था
खुद को बदलना चाहता था
अपने गाँव को बदलते देखना चाहता था

अब जबकि ख़ुद बदल चुका हूँ
मेरा गाँव पूरा बदल चुका है
जाने क्यूँ मेरा मन फिर से
वही पुराना हो जाना चाहता है
मेरा मन फिर से उसी पुराने गाँव में रहना चाहता है।

-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
   9755852479


आइए....09.01.21
---------------------------
आइए....
अगर हमारे भीतर कहीं शर्म बची हो
ढूँढे उसे 
ताकि दुनियां को शर्मसार कर देने वाली घटनाओं पर
थोड़ा शर्म कर सकें

आइए....
अगर हमारे भीतर थोड़ी संवेदनाएं बची हो
तलाशें उसे
ताकि दिल दहला देने वाली निर्मम घटनाओं पर
थोड़ा पसीज सकें

आइए....
अगर हमारे भीतर कहीं आक्रोश बचा हो
टटोलें उसे
ताकि बर्बरता और दरिंदगी के ख़िलाफ़
थोड़ा रोष प्रगट कर सकें

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

जब माँ मिट्टी हो गई- 08.01.21
------------------------------------------------
मैंने रोया था उस दिन जीभरके
जब निकली थी घर से तुम्हारी अर्थी
लोग मेरे आँसू पोछते रहे
ढाँढस बंधाते रहे
समझाते रहे कि
चुप हो जा बेटा
आखिर जाना ही पड़ता है एक दिन सबको
मिट्टी की इस काया को मिट्टी में मिलना ही है

मैंने पुस्तकों में पढ़ा था
पाँच तत्वों से मिलकर बना नश्वर है यह शरीर
मग़र मुझे उस मृत देह में 
मिट्टी नहीं केवल माँ नज़र आती थी

मुझे बचपन में माँ समझाती थी कि
मिट्टी माँ होती है
वही हमें पालती-पोसती है
रोज सुबह मिट्टी को प्रणाम किया करो

मिट्टी माँ होती है
इस दर्शन को तब नहीं समझ सका था
सोचता था मिट्टी और माँ में भला कैसा साम्य..?
समझा उस दिन 
जब माँ सचमुच मिट्टी हो गई।

--नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
   9755852479

शब्द -08.01.21
----------------------
जब-जब गिरता हूँ
बड़े प्यार से संभालकर
बिल्कुल माँ की तरह
मुझे उठा लेते हैं
मेरे शब्द   
-- नरेन्द्र

दो टूक - 05.01.21
----------------------------
तुम आग से खेलो
मैं मिट्टी में जन्मा
मिट्टी से खेलूँगा
मिट्टी में जीऊँगा
मिट्टी में मिल जाऊँगा

मेरे रग-रग में
मिट्टी की है खुश्बू
मिट्टी ही कर्म
और मिट्टी ही सनातन धर्म है मेरा

तुम करते रहो आसमानी बातें
मैं धरती को छोड़कर
कभी आसमान की बातें नहीं करूँगा

मैं कोई सौदेबाज नहीं
सौदा मुझे आता भी नहीं
मानता हूँ तेरी सरकार है
पर मिट्टी का मुझे अधिकार है।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

केवल शब्दों की बात..! 14.12.20
-----------------------------------------------------/
जब भी कोई ख़ुद को कवि मानकर
लिखना शुरू करता है
वह अक़्सर शब्दों की भीड़ में घिर जाता है
उन्हें सारे शब्दों की आवाज़
एक साथ सुनाई देने लगती है
ऐसे में वह कुछ भी तय नहीं कर पाता

बड़ी मुश्किल हो जाती है 
भीड़ में से किसी एक शब्द को चुनना

शब्दों के शोर में डूबा कवि
बड़ी मेहनत से चुन पाता है कुछ शब्द
जो कवि की दृष्टि में 
बड़े ही आकर्षक और भारी-भरकम होते हैं 

आकर्षक इतना कि आप चमत्कृत हो जाएं
भारी-भरकम इतना कि कविता का दम ही घुट जाए

फिर तो आप कवि महोदय से 
केवल शब्दों की बात कर सकते हैं
शब्दों में कविता की बात बिल्कुल नहीं कर सकते।

-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

विश्वास के रंग - 13.12.2020
-------------------------------------------------/
कितने दिनों से नहीं गया सुबह की सैर
नहीं गया गाँव
नहीं गया कोई दूसरा शहर
नहीं हुई दोस्तों से मुक़म्मल मुलाकात

इस बीच न जाने कितने मौसम बदले
कितनी ऋतुएँ आईं और चली गईं
गर्मी बरसात और सर्दी
दरवाजे पर दस्तक़ देकर
अपनी-अपनी तासीर बताती रहीं

वही सुबह,वही गाँव, वही शहर,वही सारे दोस्त
मौसम और ऋतुएँ भी वही
बस थोड़ा-सा इंतिजार करना होगा
अविश्वास के रंग पर विश्वास के रंग चढ़ने तक।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479


अनाज के एक-एक दानों में मौजूद रहता है किसान

अनाज के साथ-साथ
किसान भी पकता है 
किसान भी पिसा जाता है

आनाज में ताउम्र किसान रहता है
पर किसान के लिए अनाज नहीं होता।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

दुनियां से मिट जाएंगे सारे जज़्बात- 06.12.20
------------------------------------------/
जज्बातों की कद्र नहीं अब
फ़ैशन हो चुका है अब जज़्बातों से खेलना
कभी अपनों से  कभी परायों से
फुटबॉल की तरह 
किक मारकर खेले जा रहे हैं जज़्बात

जज्बातों को पहचानने वाला अब कोई नहीं
अनाथ की तरह 
बेघर-बेसहारा भटकते रहते हैं जज़्बात

रेतीले शुष्क दिलों में
अब नहीं फूटते जज्बातों के अंकुर

अब बिल्कुल भी नहीं सुने जाते
गरीबों, किसानों, मजदूरों और मातहतों के
उपेक्षित, अपमानित,दबे-कुचले जज़्बात

अहम के बुलडोजर से सरेआम
धनकुबेरों द्वारा रौंदे जाते हैं अक़्सर
पीड़ितों और जरूरतमंदों के कोमल जज़्बात

नफ़रतों की तेज़ आँच से 
भाप बनकर उड़ते ही जा रहे हैं
नमी की तरह दिलों में भरे हुए सारे जज़्बात

जज्बातों से खेले जा रहे हैं
जज़्बात रौंदे जा रहे हैं
लुप्तप्राय होते-होते
लगता है जल्द ही
दुनियां से मिट जाएंगे सारे जज़्बात।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479