Monday 16 May 2022

अंधेरे का व्यापार 16.05.21

अंधेरे का व्यापार 16.05.21
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रोशनी की शक्ल में बेचा जा रहा है अंधेरा
रोशनी में लिपटे अंधेरे का व्यापार खूब फल फूल रहा है इन दिनों
अंधेरे के प्रचार में चारों ओर फैले हुए हैं उल्लू के पट्ठे 
इस व्यापार में केवल उल्लुओं को फायदा है
जितना सघन अंधेरा हो उतना अच्छा है
उन्हें रोशनी से डर लगता है

उल्लू बनाने वालों और उल्लू बनने वालों के तंत्र का नाम लोकतंत्र हो गया है

अंधेरा सलामत है
रोशनी कहीं नहीं है।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 
   9755852479

अगले जनम मोहे चमचा ही कीजो ! व्यंग्य

अगले जनम मोहे चमचा ही कीजो !                  व्यंग्य
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चाटुकारी करना,चमचागिरी करना,खुशामद करना,चापलूसी करना,तलवे चाटना,मक्खन लगाना ये सारे पर्यायवाची शब्द हैं।इन शब्दों और वाक्यांशों को आप पहले ही सुने होंगे और भली-भांति परिचित भी होंगे। इन वाक्यांशों के अर्थों को श्रद्धापूर्वक और समर्पण के साथ निभाते हुए कईयों को आपने देखा भी होगा।
              चमचागिरी पर कुछ लिखने से पहले मैं धन्यवाद अर्पित करना चाहूंगा अपने एक करीबी मित्र चमचे के प्रति जिनकी चमचागिरी देखकर मेरे भीतर कुछ लिखने का भाव उत्पन्न हुआ। दरअसल मैं एक दिन अपने मित्र के केबिन में दाखिल हुआ वहां केक काटे जा रहे थे। मैंने कारण पूछा भाई क्या बात है किस खुशी में केक काटे जा रहे हैं? पता चला कोई स्थानीय नेता है जिसका जन्मदिन था और हमारे मित्र उनके मुरीद हैं। मुरीद क्या पक्के चमचे हैं। मित्र की चमचागिरी देखकर चमचों को ईर्ष्या या उससे होड़ करने की चाहत हो सकती है। मगर मित्र को चमचागिरी में लीन देखकर मैं अपार गुस्सा और घृणा भाव से भर जाता हूं। मैंने मित्र के पास यदा-कदा दूसरे चमचों की चमचागिरी की खूब निंदा की भर्त्सना की ताकि मित्र अपनी चमचागिरी की आदत से बाज आए। मगर मित्र है कि चमचों के और चमचागिरी के पक्ष में दलील देने लग जाते हैं। वे स्वयं को बड़ा दयनीय तथा चमचागिरी को अपनी मजबूरी बताने लगते हैं। 
                        एक सच्चा चमचा अपने स्वामी की भक्ति में ईश्वर तुल्य सेवा भाव में लगा रहता है। चमचे द्वारा की जाने वाली चमचागिरी किसी तपस्या या साधना से कम नहीं होता। सेवाभावी समर्पित भक्त की तरह चमचे को अपनी चमचागिरी पर अटूट श्रद्धा और विश्वास होता है। जिस प्रकार एक सच्चा साधक या तपस्वी अपने इच्छित वरदान को प्राप्त नहीं कर लेता तब तक अपने कठिन साधना और तपस्या पथ से कभी विचलित नहीं होता । ठीक उसी प्रकार एक चमचा भी तन मन धन सब कुछ समर्पित कर पूरे स्वार्थ भाव से चमचागिरी में लीन होता है। स्वामी भी अपने चमचों को सारा वरदान एक साथ नहीं देता। वह थोड़ा-थोड़ा इंस्टॉलमेंट में कृपा करता है ताकि उसके चमचों की चमचागिरी सतत रूप से उस पर बनी रहे। आसान शब्दों में कहूं तो चमचागिरी फेवीकोल की तरह होता है जो स्वामी और उसके चमचों को अटूट रूप से आपस में चिपकाए रहता है जो आसानी से नहीं टूटता।
                       चमचे और स्वामी के बीच चमचागिरी ही वह बांड होता है जो दोनों के संबंध को मजबूत बनाता है। चमचागिरी के पार्टीकल जितने सघन होते हैं उतने ही स्वामी और चमचे के बीच का बांड मजबूत होता है। कई बार चमचागिरी के पार्टिकल्स कम होने से बांड टूट जाता है जिससे दोनों के बीच संबंध विच्छेद हो जाता है। इसीलिए चमचा इस बात का बराबर ध्यान रखता है कि उसका बांड कमजोर ना हो ताकि दोनों के बीच का संबंध मजबूती से बना रहे।
                      चमचागिरी करने के छोटे-बड़े कई कारण हो सकते हैं। जैसे उच्च पद पाने की आकांक्षा, आर्थिक लाभ, काम से बचने की चाहत, स्वामी के करीबी होने की लालसा, नाकामी छुपाने का रास्ता, अंतर में व्याप्त डर भाव, स्वामी के कोप से बचने का उपाय, ट्रांसफर करवाना या रूकवाना आदि आदि। बेशक चमचागिरी के अनगिनत कारण हो सकते हैं मगर सब के मूल में अपने स्वार्थ की सिद्धि भाव ही प्रमुख रूप से निहित होता है।
                           अनादि काल से चमचागिरी यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त रहा है। घर में परिवार में कार्यालय में मंत्रालय में शासन में प्रशासन में हर जगह चमचागिरी की जड़ें फैली हुई है। पक्का चमचा उस  बेशरम पौधे की तरह होता है जिसे जहां भी उखाड़ फेंको वह अपनी जड़े जमा लेता है। चमचा खेतों की फसलों में उगे खरपतवार की तरह होता है। जिस प्रकार फसलों की जितनी भी सफाई करो खरपतवार उग ही जाता है वैसे ही शासन प्रशासन के खेतों से चमचा रूपी खरपतवार को निकाल पाना असंभव है।
                         राजनीति में आगे बढ़ने के लिए चमचागिरी अनिवार्य तत्व है। यहां आपकी बुद्धि आपकी काबिलियत और आपकी शक्ति आपकी चमचागिरी से ही नापी जाती है। नेताजी जैसे ही पदार्पण करते हैं उनके चमचों का दल नेताजी के करीब जाने उन्हें छूने उनके साथ सेल्फी लेने के लिए टूट पड़ते हैं। चमचों में जो सीनियर होता है वह जूनियर और नवोदित चमचों का नेता जी से परिचय कराता है। नेताजी के आवभगत के लिए जो मिष्ठान मेवे और ड्राई फ्रूट्स सजाए गए होते हैं उन्हें स्वामी के चरणों में अर्पित प्रसाद समझकर सारे चमचे बड़े चाव से खाते हैं। कुल मिलाकर राजनीति में चमचागिरी ही वह सीढ़ी है जिसके सहारे आप ऊपर पहुंच सकते हैं। जब कोई राजनीति में कदम रखता है यानी सीढ़ी के पहले पायदान पर पांव धरता है तब सबसे ज्यादा और सबकी चमचागिरी करनी पड़ती है। अगर आप राजनीति के सीढ़ी में ऊपर जाते जाएंगे तो आपके भी चमचों की संख्या बढ़ती जाएगी। यानी आज का चमचा ही भविष्य का नेता होता है।एक राजनेता अपने चमचों के बदौलत ही दौलत,शोहरत और सम्मान प्राप्त करता है इसीलिए वे चमचों को खिलाना पिलाना और हमेशा खुश रखना अपना परम दायित्व समझता है। अक्सर यह देखा गया है की चमचे अगर नाराज होकर बगावत पर उतर जाते हैं तो नेताजी की कुर्सी खतरे में आ जाती है। जब चुनाव के समय नेताजी का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है और वह निराशा के समुद्र में डूबने लगता है। ऐसी विषम परिस्थितियों में वे चमचे ही होते हैं जो अपने  चाटुकारिता के दम पर नेताजी के आत्मविश्वास को जगाते हैं और उन्हें निराशा के समुद्र से बाहर निकालते हैं। इसीलिए नेताजी को दुनिया में सबसे प्रिय उनके चमचे ही होते हैं।
                                 जब चमचा अपने स्वामी के बारे में बोलना शुरू करता है तो उसके नाम के आगे सैकड़ों प्रशंसामूलक विशेषण शब्दों का प्रयोग करता है। राजनीति के क्षेत्र में चमचों के द्वारा प्रयुक्त होने वाले कुछ शब्द हैं जैसे जुझारू,मिलनसार,कर्तव्यनिष्ठ,कर्मठ,जन जन के प्रिय,युवा,लाडला,सेवाभावी,समर्पित,ऊर्जावान, सच्चा देशभक्त,निष्ठावान,समाजसेवी, यशस्वी,माननीय आदि आदि। इसी तरह धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में अपने स्वामी के लिए उसके चमचे चेलों के द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले विशेषण शब्दों में  है त्रिकालदर्शी, परम ज्ञानी, परम स्नेही, मानस मर्मज्ञ, दयालु कृपालु ज्ञानदाता,समदर्शी, श्रद्धेय आदि आदि। कार्यालयों में अपने बॉस के लिए उसके मातहत चमचों के द्वारा संबोधन में अनेक विशेषणों का प्रयोग किया जाता है जैसे परम सम्माननीय, प्रेरणा स्रोत, समर्पित, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, श्रेष्ठ वक्ता आदि आदि। साहित्य के क्षेत्र चमचों के द्वारा अपने  वरिष्ठ साहित्यकारों के लिए प्रयुक्त शब्द हैं सादगी के प्रतिमूर्ति, संजीदा रचनाकार, वरिष्ठ कलमकार, शब्दों के जादूगर, मुखर कवि,शब्द शिल्पी, जमीन से जुड़े, निर्भीक साहित्यकार आदि। पर सच्चाई यह है कि चमचों के द्वारा अपने विशेष्य के लिए प्रयुक्त किए गए तमाम विशेषणों को तलाशना रेत से तेल निकालने जैसा काम है।
                                   आज हर जगह चमचों का बड़ा बोलबाला है। जो काम धनबल और बाहुबल से नहीं हो पाता वह चमचाबल से बड़ी आसानी से हो जाता है। आप चमचों की लाख उपेक्षा करिए उन्हें घृणा भरी नजरों से देखिए मगर उनमें काबिलियत भी कूट-कूट कर भरी होती है। चमचागिरी जन्मजात गुण नहीं होता इसे अर्जित किया जाता है। चमचागिरी के गुणों को अर्जित करना और चमचे के ओहदे तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं होती। चमचागिरी में कोई चमचा जितना निपुण होते जाता है उतना ही उसकी पहचान समाज में बढ़ते जाता है। हमने अपने जीवन में ऐसे कितने चमचों को अपनी सच्ची चमचागिरी के दम पर फर्श से अर्श तक पहुंचते देखा है। हम समझते हैं की चमचा हमेशा मजे में रहता है। मगर हमेशा ऐसा नहीं होता कभी-कभी वह बड़ा बेचारा सा जीव नजर आता है। बॉस के कहे अनुसार चौकसी और चमचागिरी ढंग से नहीं हो पाने के कारण उसे अपने बॉस से डांट सुननी पड़ती है वहीं दूसरी तरफ स्टाफ के बाकी सदस्य उस पर फिकरे करते रहते हैं कि"वो आ रहा है बॉस का चमचा।" ऐसे हालात में बेचारा चमचा अपना बॉस के लिए आया गुस्सा और स्टाफ की उपेक्षा से उत्पन्न दुख दोनों को चुपचप
 अकेले ही पीते रहता है। 
                                चमचा अपने स्वामी का अंधभक्त होता है। कुत्ते की तरह चमचे की वफादारी पर स्वामी को कभी संदेह नहीं होता। चमचा जीहुजूरी में इतना पक्का होता है कि सपने में भी अपने स्वामी की बात को नहीं काट सकता। स्वामी के हरेक बातों पर हामी भरना वह अपना परम कर्तव्य समझता है। कड़कती ठंड में भी अगर स्वामी कह दे की आज बड़ी गर्मी है तो चमचा अपना स्वेटर निकाल फेंकेगा और कहेगा "सचमुच आज अचानक बहुत गर्मी लग रही है।" भले ही वह ठंड से कांपता ही क्यों ना रहे। चमचों का फलसफा क्लियर होता है। वे सुखी बने रहने के लिए चमचागिरी को ही सबसे सॉलिड और आसान उपाय मानते है। उनके खून में काम करना मेहनत करना बिल्कुल नहीं होता। वे अपने स्वामी के गलत बातों और गलत कार्यों का कभी विरोध नहीं करते। बॉस की बातों में बस हां में हां मिलाते रहते हैं। उनके लिए चमचागिरी उस नाव के समान होता है जिस पर चमचा सवार होकर इस उतार-चढ़ाव और मुश्किल भरे दुनिया से पार निकल जाना चाहता है। निष्कर्षतः जा सकता है की तलवे चाटने का सुख वही व्यक्ति ले सकता है जिसमें आत्मसम्मान की भावना सूख गई हो।
                               हर संस्था में बॉस के अपने कुछ चुनिंदा चमचे होते हैं। बॉस संस्था में नहीं होते हुए भी संस्था के सारी बातों को जान लेता है। चमचे ही बॉस के आंख और कान होते हैं। स्टाफ का सदस्य कब कौन आता है कब कौन जाता है चमचा चुपचाप देखते रहता है। यानी हम कह सकते हैं कि चमचा ही बॉस का जीता जागता सीसीटीवी कैमरा होता है। संस्था प्रमुखों के लिए संस्था चलाने में उनके चमचों का अहम योगदान होता है। संस्था प्रमुख अपने चमचों को चमचागिरी के एवज में काम करने में छूट देता है। चमचा जब छुट्टी चाहे बॉस खुशी-खुशी छुट्टी दे दे देता है। आप एक दिन की छुट्टी के लिए संस्था प्रमुख के सामने गिड़गिड़ाते रहिए मिन्नतें करते रहिए वह साफ मना करेगा,कहेगा"अभी बहुत काम है स्टाफ कम है हम किसी को छुट्टी नहीं दे सकते।"
                          स्वामी,नेता या बॉस कान के बड़े कच्चे होते हैं। वे अपने चमचों से जितना सुनते हैं उसे ही सौ फ़ीसदी सच मान लेते हैं। चमचे कान भरने के काम में पारंगत होते हैं। उन्हें एक को ग्यारह और चार को चौदह बताने की कला भली-भांति आता है। अगर आप अपने बॉस को कोई बात सीधे तौर से नहीं कर पाते तो उसके चमचों के सामने वह बात कह दीजिए फिर तो चमचों के माध्यम से आपकी बात पहुंच ही जाएगी। मगर भले मानुषों को मेरा यही सलाह है कि आप चमचों से सदा सावधान रहिए उनसे पंगा कभी मत लीजिए।
                            चमचे बिना पेंदी के लोटे की तरह होते हैं। कभी इधर तो कभी उधर अवसर के अनुकूल लुढ़कते रहते हैं। उनका अपने स्वामी के प्रति भक्ति और समर्पण स्थाई नहीं होता। स्वामी में शक्ति और सामर्थ्य जितनी होती है उसी के अनुरूप चमचे की चमचागिरी होती है। जिस प्रकार पेड़ सूखने पर चिड़िया पेड़ छोड़ उड़ जाती है, तालाब या नदी के सूखते सूखते वहां के जीव जंतु अपना जगह बदल लेते हैं ठीक उसी प्रकार अपने स्वामी की शक्ति क्षीण होते देख चमचा भी किसी दूसरे शक्ति संपन्न स्वामी की ओर उन्मुख हो जाता है। भौतिक शास्त्र की दृष्टिकोण से समझा जाए तो चमचा एक चर राशि (वेरिएबल अमाउंट) होता है जो समय और स्थान के बदलने के साथ-साथ हमेशा बदलते रहता है। सैद्धांतिक रूप से चमचागिरी के नियम को हम इस तरह समझ सकते हैं "चमचे का स्वार्थ स्थिर होने की दशा में चमचा के द्वारा की गई चमचागिरी की मात्रा उसके स्वामी में निहित शक्ति और सामर्थ्य की मात्रा के बराबर होती है।"
                               मुंह पर खरी-खोटी बोल देने वालों को मुंहफट कहा जाता है। जबकि आपके मुंह के सामने आपकी प्रशंसा के पुल बांधने लगे और अपनी शहदमयी वाणी से आपके तन मन को भिगो दे वह चापलूस कहलाता है। चापलूस में ऐसी प्रतिभा होती है कि जिन अच्छाइयों और गुणों को आप अपने भीतर स्वयं नहीं देख पाते वह भी चापलूस भली-भांति देख लेता है।चापलूस अपनी बातों से सबका मन मोह लेता है। जरा सोचिए चापलूस की प्रेमिका के बारे में वह कितनी खुश रहती होगी। चापलूस की प्रेमिका के पांव कभी जमीन पर पड़ते ही नहीं होंगे। चापलूस की प्रेमिका होने का यही तो फायदा है कि सुबह से रात तक केवल तारीफों की नदियां में डुबकी लगाते रहने का सौभाग्य मिलता है। चापलूसों में एक बात अच्छी होती है कि वे किसी को पराया नहीं समझते। उनमें इतनी सम्मोहन शक्ति होती है कि वे सबको पहली नजर में ही अपना बना लेते हैं। आप किसी चापलूस से पहली बार ही क्यों ना मिले वह ऐसा मुस्कान विखेरेगा जैसे आपको सदियों से जानता हो।हां एक बात जरूर है कि चापलूसों को ज्यादा ईमानदार,वक्त के पाबंद और सिद्धांतों के पक्के लोग बिल्कुल पसंद नहीं आते। वे यहां भी अपनी चापलूसी भरे शब्दों में फंसाने की कोशिश करते हैं पर फिर भी अगर चापलूसी के दाल नहीं गलती तो बेचारे मन मसोसकर रह जाते हैं। कुछ लोग चापलूसी को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते। वे चापलूसों को हिकारत भरी दृष्टि से देखते हैं। ऐसे लोगों को अपने काम पर ही भरोसा होता है। ये अलग बात है कि उन्हें अपने स्वामी की चापलूसी ना करने के कारण कई बार कोप का शिकार होना पड़ता है। ऐसे लोग बड़े स्वाभिमानी और निडर होते हैं जिन्हें अपने स्वामी द्वारा दिए गए गीदड़ भभकी और अर्थहीन कोप से कतई डर नहीं लगता है।
                                'चम्मच' चमचा का बाल रूप होता है और 'चमचा' चम्मच का वयस्क रूप। बाल रूप में होने वाली चम्मचगिरी वयस्क होते-होते चमचागिरी में बदल जाता है। चम्मच के पास क्षमता और अनुभव दोनों की कमी होती है इसीलिए चम्मच का प्रयोग केवल छोटी-मोटी कटोरियों में ही किया जाता है। उनमें इतनी क्षमता नहीं होती कि उनका प्रयोग बड़े-बड़े बर्तनों में किया जा सके। चम्मच सीमित कामों में ही काम आते हैं जबकि चमचों का कार्य क्षेत्र अत्यंत विस्तारित होता है। जिस प्रकार करछुल कड़ाही की चीजों को पतीले में पतीले की चीजों को थाली में यानी इधर का उधर करने में काम आता है ठीक उसी प्रकार चमचा भी यहां की बातों को वहां करने में माहिर होता है। अगर हमें कोई बड़ा काम करवाना है तो हमेशा चमचे ही काम आते हैं। चमचों की दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति देखकर कभी-कभी भले मानुषों को भी अपने चमचा ना होने का गम होता है।आखिरकार चमचों की ऐसी समृद्धि देखकर भले मानुष भी मंदिर में भगवान के सामने एक ही प्रार्थना करता है-"हे प्रभु अगले जनम मोहे चमचा ही कीजो।"

-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479