Thursday 19 August 2021

हिटलर की याद में.. 24.03.21

हिटलर की याद में.. 24.03.21
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उन्हें पसंद नहीं  हमारी बातें हमारा काम
उन्हें पसंद नहीं हमारा यूं खुली हवा में सांस लेना
उन्हें पसंद नहीं  कि हम प्यार  भरी नज़रों से किसी को देखें
उन्हें पसंद नहीं  कि हम कहीं भी जाएं बेरोकटोक

वे चाहते हैं कि हम कुछ भी करें, कहीं भी जाएं सब उनकी निगाहों में हो
पर उनकी निगाहों को यह मंजूर नहीं कि हम हँसते हुए दिखें
उन्हें शक है कि हम हँसेंगे तो उनके ख़िलाफ़ हँसेंगे
हम बोलेंगे तो उनके ख़िलाफ़ बोलेंगे
हम कहीं जाएंगे तो उनके ख़िलाफ़ जाएंगे
इसीलिए वे चाहते हैं सब कुछ उनकी निगाहों के सामने हों

उन्हें पसंद नहीं  हमारा पढ़ना-लिखना और अपने विचारों को अपने विचारों के अनुसार कहना
उन्हें पसंद नहीं  हमारा नाम उपनाम और हमारा पता
वे चाहते हैं कि हमारा नाम उपनाम और पता बदल जाए उनके कहे अनुसार
उनका कहना है कि हमारा नाम उपनाम इस देश के लायक नहीं
हमारे नाम और उपनाम से ग़द्दारी की बू आती है उन्हें
उनका मानना है कि इस तरह के नाम और उपनाम में देशभक्ति हो ही नहीं सकती
उनका मानना है कि हमारा उठना बैठना 
हमारा खानपान रहन सहन इस देश के लायक बिलकुल नहीं

उनकी कोशिशें जारी है हमे तोड़ने की हमे बदलने की
उनकी कोशिशें जारी है हमे अपने रंग में रंग लेने की
उनकी कोशिशें जारी है हमारी पहचान मिटाने की
उनकी कोशिशें जारी है कि हम उनकी बातों को अपनी ज़बान से उनके लिए कहें

वे धमकाते हैं अपनी तीखी नज़रों से
वे धमकाते हैं कभी उंगलियों से कभी गालियों से
वे धमकाते हैं ख़तरनाक संकेतों कहावतों और मुहावरों से
वे धमकाते हैं कि रहना है इस दुनियाँ में तो उनके अनुसार ही रहना होगा

उनका कहना है वे इस बड़े तालाब के मगर हैं 
उनसे बैर साधना हमारे लिए कतई ठीक नहीं
हमें हर हाल में ख़ुद को ढालना होगा उनके कहे अनुसार 
वरना छोड़नी पड़ेगी यह दुनियां
यहाँ केवल वे ही बोलेंगे और हम बस सुनेंगे
वे चाहते हैं कि हम उन्हें सलाम करें और करते रहें
वे चाहते हैं हम चुपचाप झुक जाएं उनकी जिद्द के सामने 
वरना हमे वे कतई नहीं बख्शेंगे

वे चाहते हैं कि यहाँ रहना है तो हमें बदल लेना चाहिए
रस्मों रिवाज़, रहने का सलीक़ा, बोलने का ढंग और अपना चेहरा उन्हीं की तरह।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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