मुकर्रर दिन - 14.03.21
-----------------------------------------------/
हम कई बार उस दिन का
इन्तिज़ार करते हैं
जो है बहुत दूर जिसे अभी आना बाकी है
हम किसी काम या लक्ष्य के लिए मुकर्रर कर लेते हैं आनेवाला कोई एक दिन
जब मुकर्रर करते हैं कोई दिन
हमारे भीतर बड़ी बेक़रारी होती है उस दिन की
बहुत जल्दी गुज़रने लगते हैं पल
शीघ्रता से बदलने लगते हैं दिन और तारीखें
वक़्त के साथ-साथ हम भूलने लगते हैं मुकर्रर दिन
धीरे-धीरे कम होते-होते ख़त्म हो जाती है बेक़रारी
और हमें पता भी नहीं होता जब आता है
हमारा मुकर्रर किया हुआ वह दिन
आखिरकार ख़त्म हुआ सारा इन्तिज़ार
ख़त्म हुई सारी बेक़रारी
गुज़र गए मुकर्रर किए गए वो दिन
काम कुछ भी हुए नहीं
लक्ष्य का अता पता भी नहीं
हम हर बार की तरह एक बार फ़िर
आज को भूलकर
काम के लिए फिर मुकर्रर करने लगे एक 'नया दिन'।
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
No comments:
Post a Comment