Thursday 19 August 2021

बचपन' से सीखने की बातें - 13.03.21

'बचपन' से सीखने की बातें - 13.03.21
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मुझे अच्छी तरह याद है अपनी बचपन की बातें
तब मैं कितना बेधड़क हुआ करता था
अब तो कभी भी कहीं भी अचानक धड़कनें तेज़ कर देने वाली घटनाएँ होती रहती है

मुझे धूल मिट्टी बारिश धूप और हवा से डर नहीं लगता था
तब बड़ा अच्छा लगता था इन सबसे खेलना
अब तो धूल धूल नहीं लगती
मिट्टी मिट्टी नहीं लगती
बारिश बारिश नहीं लगती
धूप और हवा 
धूप और हवा नहीं लगती
इन चीज़ों से बड़ी शीघ्रता से खोते जा रहा है क़ुदरती आकर्षण

तालाबों में तैरना ऊँचे-ऊँचे पेड़ों पर चढ़ना उतरना 
दोपहर की गरमी में खाली पैर घूमना 
जोख़िम भरे जगहों पर आना जाना
तब मेरे लिए ये सारे आसान काम थे

कभी कभी तो समझदार होना नासमझ होने से ज़्यादा खतरनाक लगता है
दरअसल समझदारी से पहले कोई भी खतरनाक चीजें ख़तरनाक नहीं होती

कोई भी ख़तरनाक काम करने के समय बिलकुल खतरनाक नहीं होता
काम ख़तरनाक करने से पहले या करने के बाद केवल विचारों में होता है

आज सुविधाएं बहुत है
पर हमारे पास सुविधाओं में इत्मीनान से जीने की सुविधा नहीं है
हमारी सुविधाओं ने ही असुविधाओं से भर दी हमारी ज़िंदगी

जिनसे हमें प्रेम होना चाहिए
मसलन धूल मिट्टी नदियाँ दोस्त-यार रिश्ते परिवार समाज
हम डरे सहमे दूर भागने लगे हैं इन सबसे
लोगों और चीजों के प्रति हम दिन ब दिन अविश्वास से भरते जा रहे हैं

वह भी क्या समय था
जीवन के मोह से बेख़बर थे और जीवन बड़ा खूबसूरत था
अब तो बचे खुचे जीवन को बचाने की चिंता में
हमने बची खुची ज़िन्दगी को भी जीना ही छोड़ दिया है

निडर हुए बिना जोख़िम उठाए बिना हम सीखते कहाँ है !

बच्चे बेधड़क बिना डरे चलाते हैं मोबाइल कम्प्यूटर बाइक और कारें
वे कभी नहीं सोचते क्या होगा और क्या नहीं होगा
वे सब कुछ सीख जाते हैं हमसे पहले और हमसे ज़्यादा
कहीं गड़बड़ न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए कहीं वैसा न हो जाए..
हम इधर उधर के तमाम डरावने सवालों से भरे रह जाते हैं
हम समझदारों को यह तो समझना ही चाहिए कि
कुछ सीखने के लिए बच्चा होना जरूरी होता है।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
   9755852479

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