बुरा दौर है इन दिनों... 01.05.21
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बड़ा अजीब सा महसूस होने लगा है इन दिनों
घर घर-सा और बाहर बाहर-सा नहीं लग रहा है इन दिनों
बहुतों के मन से दवाओं और दुआवों से विश्वास उठने लगा है इन दिनों
हवाओं में शामिल अदृश्य ज़हर धीरे-धीरे घुलते जा रहा है लोगों के शरीर में इन दिनों
धीरे-धीरे अविश्वास का जंग लगने लगा है आत्मविश्वास के लोहे पर
दिन ब दिन घटते जा रहा है अपनापन और बढ़ती जा रही है दूरियाँ
घर बाज़ार दुकान ऑफिस चौंक चौराहे पर
संदेह से भरे हुए लगने लगे हैं अपने लोग
अविश्वास से भरे इस माहौल में
हम एक अपरिचित खालीपन और सूनेपन से घिरते जा रहे हैं
हवाएं अपनी ताज़गी खोती जा रही है
दिशाओं में पसरने लगा है अव्यक्त भय और सन्नाटा
कड़वे यथार्थ के साथ-साथ सपने भी गुदगुदाने के बजाय डराने लगे हैं अब
आशंकित मन में भविष्य को लेकर कोई योजना भी नहीं बची है
ब्लैक होल की तरह हम अदृश्य शत्रु के फैलाए जाल में
धीरे-धीरे फंसते चले जा रहे हैं
अपने ज्ञान और बुद्धि पर इतराने वाला मनुष्य
केवल निरुपाय और बेबस नज़र आ रहा है
पर इतनी विषम परिस्थितियों में लाचार मनुष्य के पास
एक झीनी-सी उम्मीद अब भी जिंदा है
कि ट्रैक से उतरी जिंदगी की गाड़ी
फिर दौड़ने लगेगी सरपट अपनी ट्रैक पर
तब हर बुरे दौर की तरह बहुत पीछे छूट चुका होगा
आज का यह बुरा दौर भी।
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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