Thursday 19 August 2021

बंद तालों की बात - 16.04.21

बंद तालों की बात - 16.04.21
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कहीं जाने पर  हम घर पर लगा देते हैं ताला
लगे तालों के साथ ही जड़ा होता है हमारा विश्वास

हमारे न होने पर  घर के लिए बेहद  ज़रूरी होता है ताला

जब घर अकेलेपन से भरा होता है
केवल ताला ही होता है जो घर को अकेलेपन में साथ देता है

जैसे हम अंजान लोगो के सामने कभी मुँह नहीं खोलते
ताले भी नहीं खुलते कभी अंजान चाबियों से

गेट पर लगे बंद तालों को देखकर 
फेरीवाले कभी नहीं रुकते घर के सामने
बंद ताले देखकर भिखारी भी 
दरवाजों के पास कभी नहीं रुकते
चुपचाप बढ़ जाते हैं आगे

आपके घर की सुरक्षा के लिए नियत चौकीदार
कभी थककर सो सकता है
कभी नशे में धुत्त अपना फ़र्ज़ भूल सकता है
कभी विश्वासघात कर सकता है
मग़र तालों से कभी कोई कोताही नहीं होती
निर्विकार भाव से घर की सुरक्षा में रहते हैं तैनात

चोर आँखों पर हमेशा खटकते रहते हैं घर पर लगे ताले

चोरों को बड़ी चिढ़ होती है
सूनेघरों में लटके सख़्त बंद तालों से

उन्हें फूटी आँख भी नहीं सुहाते ये बंद ताले

चोर मौका देखकर अक़्सर आते हैं रात के अंधेरों में
बंद तालों की अकड़ को चुनौती देने

घर में लगे बंद तालों के टूट जाने से
तालों के साथ ही टूट जाते हैं हमारे मन में पलते विश्वास

सुरक्षा के लिहाज़ से घर पर ताले लगाना जितना ज़रूरी है
उतना ही ज़रूरी है इस परिवेश में जीने के लिए अपनी अक़्ल के ताले को खुला रखना

असुरक्षा से भरे इस माहौल में हम ताले लगाने के इतने आदी हो चुके हैं
कि सहीं को सहीं और ग़लत को ग़लत कहने के अवसरों पर भी 
अक़्सर मुँह पर ताले लगा लेते हैं सुरक्षा के ध्यान में।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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