रह जाती है कविता में लिखे जाने की दरकार .. 27.04.21
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जब भी अपनी लिखी हुई कविताओं को कुछ समय अंतराल के बाद पढ़ता हूँ
आधी अधूरी-सी जान पड़ती है मुझे मेरी ही लिखी कविताएं
कभी किसी चीज़ों को देखने पर
या घटनाओं को अपनी आँखों के सामने घटते देखे जाने पर
बुलबुलों की तरह एक साथ अनेक भाव और विचार
उभरते और मिटते चले जाते हैं
उभरे भावों को क्रमबद्ध यथावत लिखा जाना बड़ी मुश्किल होती है
बहुत सारी चीज़ों और बहुत सारी घटनाओं पर
कवियों द्वारा लिखी जाती हैं बहुत सारी बातें
कई बार कविताओं में गड्ड-मड्ड रह जाती हैं सारी भावनाएं
अमूमन दुख पर लिखी कविताओं में सारे दुख नहीं आ पाते
और खुशियों के लिए लिखी कविताओं में सारी खुशियाँ नहीं आ पाती
लगता है कि कविता कभी पूर्ण ही नहीं होती
सुख दुख,सफ़लता असफलता,जीवन की खूबसूरती और विद्रूपताओं को व्यक्त करने के बाद भी
कविता में अव्यक्त रह जाती हैं बहुत सारी बातें
आधी अधूरी इस दुनियाँ में
हालांकि पूर्णता की तलाश करती है कविता
पर कविता प्रारंभ होने से पहले
और कविता समाप्त होने के बाद
कुछ न कुछ हमेशा रह जाती है कविता में लिखे जाने की दरकार..।
-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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