ये कैसी हवा है ! 23.06.21
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हवा न बह रही है
न चल रही है
कील की तरह
कंठ पर अटक गई है
न जाने क्यों और कैसे..?
अचानक अपना रुख़ बदल ली है
जिंदगी देने वाली हवा
जिंदगी छीन रही है
अब तक हम भटके थे
अब हवा भी भटक गई है।
-- नरेन्द्र
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