दुखों का रंग - 29.03.21
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दुख जो कल था
अब उतना नहीं है
समय प्रवाह में धीरे-धीरे धुलकर
फ़ीका पड़ जाता है दुखों का चटक रंग
हम अपने जीवन के
महान पीड़ादायक अहसासों के बारे में
कभी साधारण घटना की तरह बात करते हैं।
-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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