Thursday 19 August 2021

अच्छा होता है नासमझ होना 28.02.21

अच्छा होता है नासमझ होना 28.02.21
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तब मैं बहुत छोटा था
इतना छोटा कि जाति-पाँति छुआछूत ऊँच-नीच के भेदभाव नहीं जानता था
घरवाले और लोगों की नज़रों में बिलकुल नासमझ था

तब मैं आदमी को केवल आदमी ही मानता था
आदमी को आदमी से अलग करना नहीं सीखा था

उन्हीं दिनों मेरे मस्तिष्क की ज़मीन पर असमानता के बीज बोए गए
लोगों ने कहा ये ऊँची जाति के हैं
हमारे पूज्यनीय हैं
प्रणाम करना इन्हें
मैंने मान लिया
लोगों ने कहा ये निम्न जाति के हैं
हमारे लिए अछूत हैं
हमेशा दूर रहना इनसे
मैंने मान लिया

बहुत दिनों तक जिसने जैसा कहा उसे वैसा मानता रहा
जब भी मैंने जिज्ञासा बस उनसे सवाल किया
निम्न जाति या उच्च जाति क्या है ?
वे पूज्यनीय क्यों और वे भला अछूत क्यों है ?
मुझे तार्किक उत्तरों से शांत कराने के बजाय
अपनी खीझ भरी फटकारों से चुप कराते रहे

आज पढा-लिखा हूँ
आदमियों के बीच के जातिगत ऊँच-नीच भेदभाव को समझने लगा हूँ
जितने ढंग हो सकते हैं समाज में विभेद के सबकुछ जानने लगा हूँ
अब यह भी समझने लगा हूँ कि
सामाजिक भेदभावों वाली समझदारी से कहीं अच्छा होता है नासमझ रह जाना।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
   9755852479

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