दुश्मन लौट आया है ! -11.04.21
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दुश्मन चार कदम पीछे क्या हटा
हम उसके हार जाने की खुशी में डूब गए
मशगूल इतने हो गए कि दुश्मन को पूरी तरह से भूल गए
हमने दुश्मन को भूलने की सबसे बड़ी भूल की
और दबे पांव दुश्मन पांव पसारता रहा
बड़ी अच्छी बात होती है
दुश्मन को हराने की उम्मीदों में जीना
पर उतना ही खतरनाक होता है दुश्मन को कमज़ोर समझकर मुगालते में जीना
हम यह क्यों भूल गए
कि सालभर पहले ही अदृश्य दुश्मन ने किया था हम पर सबसे बड़ा हमला
देखते ही देखते थम गई थी हमारी ज़िंदगी
हमारे रोज़गार शिक्षा व्यापार त्योहार
हमारी भावनाएं हमारा प्यार हमारा रफ़्तार
सब कुछ सिमटकर शून्य होने लगा था दुश्मन की जद में
एक बार फिर दुगनी ताक़त के साथ
फिर से वही मनहूसियत भरे दिन लेकर लौट आया है हमारा दुश्मन
एक बार फिर गलियों और सड़कों से रौनक छीनकर
सन्नाटे को बिछा देना चाहता है धरती की गोद पर
हमें नहीं भूलना चाहिए कि
दुश्मन अदृश्य तो है
मगर है बड़ा ही ख़तरनाक !
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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