Thursday 6 October 2022

और कितना गिरोगे लल्ला ! व्यंग्य

और कितना गिरोगे लल्ला !                         व्यंग्य
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गिरने और गिराने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। कोई गिराने से गिरता है तो कोई खुद से ही गिर जाता है। खुद से गिरने वालों में आत्म संयम और आत्मनिर्भरता बिल्कुल भी नहीं होती है। गिराने की प्रक्रिया गहरी साजिश के तहत होती है। जिसे गिराना चाहते हैं उसकी सत्ता उसकी धमक गिराने वालों की आंखों में हमेशा खटकती रहती है। गिराने की सोच डरपोक लोगों की उपज होती है। अब आत्मबल वालों को धनबल और बाहुबल के सहारे  गिरा दिया जाता है। राजनीति में 'गिरना' और 'गिराना' दोनों आम बात हो गई है। यहां गिरना और गिराना शर्म की बात नहीं बल्कि गर्व की बात मानी जाती है। कोई पैसे के लिए गिरता है तो कोई सत्ता के लिए गिरता है। लालच ही वह कारण है जिसके लिए व्यक्ति बार-बार गिरता है। ऐसे लोगों को लोगों की नजरों में गिरना मंजूर है मगर लालच से कंप्रोमाइज मंजूर नहीं है। परिष्कृत भाषा में 'गिरने' का अर्थ 'अवमूल्यन होना' तथा 'गिराने' का अर्थ 'अवमूल्यन करना' होता है। पिछले कुछ वर्षों से रुपए का मूल्य बड़ी तेजी से गिरते जा रहा है। पता चला है कि अब एक डालर की कीमत अस्सी रुपए के पार हो गया है। डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य लगातार गिरते जा रहा है। गिरना या अवमूल्यन होना चाहे रुपए का हो चाहे चरित्र का हो चाहे राजनीति का हो चाहे शिक्षा का हो चाहे व्यक्ति का हो या चाहे समाज का हो बेहद ही चिंताजनक बात होती है।   
                     हम तो हिंदी के सामान्य विद्यार्थी रहे हैं सो 'गिरना' शब्द केवल मुहावरों में ही पढ़े और सुने हैं। मसलन कोई आदमी गलत काम करता है तो वह लोगों की नजरों से गिर जाता है। कभी किसी के जीवन में आसमान गिर जाता है। चमचा खुशामद के लिए चरणों में गिर जाता है। तेज गर्मी में बारिश हो जाए तो पारा गिर जाता है। शेयर मार्केट में कभी-कभी शेयर औंधे मुंह गिर जाता है। हंसते खेलते परिवार में गाज गिर जाता है। दिल दुखाने वाला दुखी व्यक्ति के दिल से गिर जाता है। अब तो हमारे देश की जनसंख्या इतनी बढ़ गई है कि आदमी आदमी के ऊपर गिर रहा है। चरित्रहीन व्यक्ति किसी चरित्रवान के जीवन में दूध में मक्खी की तरह गिर जाता है। मगर रुपए का गिरना हम जैसे साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अनबूझ पहेली है।
                        जब चारों तरफ गिरने का दौर चल रहा है ऐसे में निगोड़ी महंगाई को शर्म नहीं आती बड़ी बेशर्मी से सर उठाकर चल रही है। आखिर यह महंगाई कभी गिरती क्यों नहीं ? वैसे भी रुपए का मूल्य गिरे या फिर महंगाई सिर चढ़के बोले इससे पैसे वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता। पैसे वालों का साफ कहना है कि तुम एक डालर का अस्सी लो या सौ हम देने को तैयार हैं। खटाखट नोट गिनना उनकी शान और पहचान है। अब तो महंगाई पर हाय तौबा मचाना भी लोगों ने छोड़ दिया है। बेरोजगारी पर रोते-रोते नौजवानों के आंसू पहले ही सूख चुके हैं। अब जनता विपरीत हालात में मुस्कुराना सीख गई है। जनता समझदार हो गई है, उसने गरीबी बेरोजगारी और महंगाई जैसे छोटे-छोटे मुद्दों पर शोर मचाना हो हल्ला करना छोड़ दिया है। देश की जनता धार्मिक और आध्यात्मिक हो गई है। वे भौतिकवादी सोच से ऊपर उठ चुकी हैं । उनका मानना है कि इस नश्वर संसार में गरीबी बेरोजगारी महंगाई डॉलर रुपया जैसे नश्वर बातों पर सोचना तुच्छ मानव का काम है।
                       हमारे देश में क्रिकेट को पसंद करने वाले लोगों की संख्या बहुत है। क्रिकेट में सेंचुरी का बड़ा महत्व है। जब बैट्समैन अस्सी नब्बे में खेल रहा होता है तो हमारी उम्मीद सेंचुरी के लिए बढ़ जाती है। एक अच्छे बैट्समैन की तरह पेट्रोल ने पहले ही शानदार स्ट्राइक रेट के साथ सेंचुरी लगा दिया है। एक कहावत प्रचलित है कि खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदलने लगता है। ठीक इसी तरह पेट्रोल को सेंचुरी मारते देख रुपया भी अपना स्ट्राइक रेट बढ़ा दिया है। जिस स्ट्राइक रेट से रुपया खेलते हुए आगे बढ़ रहा है उम्मीद है जल्दी ही अपना सेंचुरी पूरा कर लेगा। जब दुनिया वाले रिकॉर्ड बनाने के होड़ में लगे हुए हैं फिर रुपया रिकॉर्ड बनाने के होड़ से भला पीछे क्यों रहे ? रिकॉर्ड बनाने के लालची रुपया नए नए रिकॉर्ड बनाकर सुर्खियों में बना रहना चाहता है। रुपये को लुढ़कने से बचाने के लिए आरबीआई एड़ी चोटी एक कर रहा है फिर भी उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो रही है।
                         विश्लेषकों का मानना है कि किसी भी देश की मुद्रा का मूल्य गिरने की प्रमुख वजह वहां की सियासी हालात पर निर्भर करती है। इसका साफ मतलब है की जहां का राजनीतिक हालात बीमार हो वहां का आर्थिक हालात भला कैसे स्वस्थ हो सकता है। जिस देश की राजनीति का स्तर जितना गिरता है उतना ही रुपए का स्तर भी गिरते जाता है। सरकार में नहीं रहने पर जो कभी रुपये के गिरने को सरकार की नाकामी बताते थे वही अब सरकार में आने के बाद चुप्पी साध लिए हैं। रुपए गिरने के तमाम वजह गिनाने लगे हैं।अब आपको रुपए गिरने के तमाम वजहों में सरकार की नाकामी की वजह बिल्कुल नहीं दिखाई देगी। सरकार कोई भी रहे किसी का रहे  पर रुपए का गिरना लगातार जारी है। राजनीति वाले एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में व्यस्त हैं। इधर कीचड़ में फंसा रुपया बाबू फिसल फिसल कर और नीचे गिरता जा रहा है। मगर उसे संभालने वाला उठाने वाला कोई नहीं है। कोई उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहा है।
                    जब पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है ऐसे में भला रुपया पीछे क्यों रहे। वह भी नई ऊंचाई पर पहुंच कर अपना अमृत महोत्सव मना रहा है। अब आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया वाली कहावत बदलनी पड़ेगी। नई पीढ़ी के लोग अठन्नी के बारे में कुछ जानते भी नहीं। इसलिए कहावत बदलकर कहना पड़ेगा "आमदनी रुपैया और खर्चा डालरिया" ।
                     रुपए की कीमत गिरने पर शोर मचाने वालों से कहना चाहता हूं कि आप गांधीजी का जंतर पढ़ें, आपका गुस्सा और हीन भावना दोनों कम होगी। भले सयाने कह गए हैं कि जब भी हम अपने हालात से असंतुष्ट हो, हमें लगे कि हम बहुत नीचे गिर चुके हैं ऐसे में अपने से नीचे के लोगों को देखना चाहिए। जब जब हम अपनी हैसियत से ऊपर के लोगों को देखते हैं तो उनकी सुख समृद्धि उनकी उपलब्धि उनका ऐश्वर्य हमें कष्ट पहुंचाता है। इसीलिए हमें रुपए की तुलना दिनार लात पाउंड यूरो और डॉलर से कभी नहीं करना चाहिए।
इन मुद्राओं से तुलना करने पर हमारा प्यारा रुपया शर्मसार होने लगता है। वह गहरे अवसाद में चला जाता है। उसे अपने वजूद की चिंता सताने लगती है। इसलिए मैं बार-बार कहता हूं की आप अपने रुपए को हंसता खेलता देखना चाहते हैं तो उसकी तुलना गलती से भी कभी उन मुद्राओं से ना करें जिससे हमारा रुपया इंफिरियारिटी कॉम्प्लेक्स से भर जाता है। अगर तुलना  करनी है तो इंडोनेशियन रूपए से करो वियतनामी डोग से करो कंबोडियन रियाल से करो श्रीलंकाई और नेपाली रुपया से करो हंगेरियन फॉरिंट से करो पैरागुवान गुआरानी से करो चिली पेसो से करो कोरियाई वांन से करो फिर देखना आपके रुपए की छाती कितनी चौड़ी होती है। रुपया हमारा प्यारा लल्ला है उसकी तुलना डालर से करके क्यों रुलाते हो ? हमारा लल्ला लूला हो लंगड़ा हो कितना भी कमजोर क्यों ना हो हम तो उसे प्यार ही करेंगे न। रुपए की आलोचना करने वाले दुश्मन होते है जो कालिख पोतने का काम करते हैं। हम तो रुपये को अपना जिगर का टुकड़ा मानते हैं अपना लल्ला मानते हैं। हम हमेशा उसे अपने सीने से लगाकर रखते हैं। रोज सुबह उसके माथे पर काला टीका लगाकर रखते हैं की कहीं हमारे प्यारे लल्ले को किसी की बुरी नजर ना लगे। लेकिन हमारा लल्ला बड़ा कच्चे छांव का है उसे डालर की बुरी नजर लग ही जाती है। हम लाल मिर्च और नमक से अपने लल्ले का नजर बार-बार उतारते हैं लेकिन हमारा लल्ला इतना कमजोर हो गया है कि उसे बार-बार नजर लग ही जाती है। हमारा लल्ला इतना लड़खड़ाने लगा है कि चलते चलते कई बार गिर जाता है। लल्ला के बार-बार गिरने से लोग उसकी ओर संदेह की नजर से देखने लगे हैं। लोगों को शक होने लगा है कि कहीं लल्ला को पोलियो तो नहीं हो गया है। कुछ लोगों का कहना है कि लल्ले की रीड की हड्डी कमजोर हो गई है। नहीं नहीं हमारे लल्ले को चलने के लिए बैसाखी का सहारा लेना पड़े हम वो दिन नहीं देख सकते। हम सबको हमारे लल्ले के उत्तम स्वास्थ्य के लिए यज्ञ हवन पूजन करना चाहिए। लल्ला तुम्हारे लिए हमारी यही कामना है कि तुम और ना गिरो तुम मजबूती से बुलंद इरादे के साथ खड़े हो जाओ। तुम इतना मजबूत और इतना ताकतवर बनो कि डॉलर तुम्हारे सामने बौना नजर आने लगे। लल्ला तुम खूब आगे बढ़ो खूब नाम कमाओ हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। पूरे देश को तुम्हारे मजबूत कंधों की जरूरत है। तुम ही तो देश के वर्तमान और भविष्य हो। तुम ही पर पूरे देश की उम्मीदें टिकी है। लल्ला तुम और गिरकर हमारा भरोसा मत तोड़ना।

-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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