तुम आओ - 21.08.22
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तुम आओ
कि जैसे रात के सन्नाटे में
ख्वाब आता है
तुम आओ
कि जैसे लंबे इंतजार के बाद
पैगाम आता है
तुम आओ
कि जैसे साल में एक बार
ईद का चांद आता है
तुम आओ
कि जैसे जेठ की तपिश के बाद
आषाढ़ आता है
तुम आओ
कि जैसे टूटती देह में
सांसें आती है
तुम आओ
कि जैसे सर्द रातों के बाद सुबह-सुबह
गुनगुनी धूप आती है
तुम आओ
कि जैसे लंबे सफर में थकान के बाद
गहरी नींद आती है
तुम आओ
कि जैसे बंजर धरती में सालों बाद
हरियाली आती है
तुम आओ
कि जैसे लंबी नाउम्मीदी के बाद
उम्मीद आती है
तुम आओ
कि जैसे माशूक के लंबे इंतजार बाद
माशूका आती है
तुम आओ
कि जैसे अमावस की रात में
दिवाली आती है
तुम आओ
कि जैसे कवियों के अंतस्तल में
कविता आती है
-- नरेन्द कुमार कुलमित्र
9755852479
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