Thursday 6 October 2022

याचना -17.08.22

याचना -17.08.22
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तुम हो निस्सीम धरती
मैं नहीं मांगता की तुम मुझे सर्वस्व दो
तुम्हारा एक अंश ही मेरे लिए काफी है
बस थोड़ी सी धरती में पा लूंगा अपना पूरा विस्तार।

तुम हो प्रेम का सागर
मैं डूबना नहीं चाहता
बस थोड़ा उतरना चाहता हूं
तुम्हारी असीम गहराई से थोड़ा जल ही मेरे लिए काफी है
बस थोड़ी सी तरलता में हो जाऊंगा पूरा तृप्त।

तुम हो धधकती आग
उतना भी नहीं चाहिए कि जलकर खाक हो जाऊं
तुम्हारी एक चिंगारी ही मेरे लिए काफी है
बस थोड़ी सी आग से पा लूंगा जीने की पूरी ऊर्जा।

तुम हो खुला आसमां
मेरे लिए यह संभव नहीं कि तुम्हारे क्षितिज तक पहुंच पाऊं
मेरे पंख इतने भी मजबूत नहीं कि तुम्हारा विस्तार छू सकूं
तुम्हारे अनंत विस्तार से एक कोना ही मेरे लिए काफी है
बस थोड़े से आसमान में हो जाएगी मेरी पूरी उड़ान।

तुम हो चंचल हवा
मुझे नहीं चाहिए तुम्हारी आंधियों वाली तेज रफ़्तार
इतनी क्षमता मुझ में कहां कि तुम्हारे थपेड़ों को झेल पाऊं
तुम्हारा एक झोंका ही मेरे लिए काफी है
तुम्हारी थोड़ी सी हवा से जी उठेंगी मेरी पूरी सांसें।

बताओ ! क्या मुझे मिल पाएगी
थोड़ी सी धरती थोड़ी सी तरलता थोड़ी सी आग थोड़े से आसमान और थोड़ी सी हवा ।

-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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