Thursday 6 October 2022

छीरपानी डैम की यात्रा

23 जुलाई शनिवार को कॉलेज के मित्रों के साथ छीरपानी डैम शैक्षणिक भ्रमण एवं सैर सपाटे के लिए निकले। वैसे काम के दबाव में, काम में व्यस्त बने रहने के इस युग में सैर सपाटे के लिए समय निकालना भी एक चुनौती का काम है।योजना पहले से ही बनी थी। कुछ एक दिन पहले ही न्यूज़पेपर से पढ़ा था कि छीरपानी डैम जिले का सबसे बड़ा डैम है। कवर्धा जिला मुख्यालय से यही कोई 30 किलोमीटर की दूरी पर छीरपानी डैम। पर कवर्धा में 5 साल रहने के बावजूद आज तक मेरा वहां जाना नहीं हुआ। यह पहला ही मौका था वहां जाने का। जब कहीं पहली बार जाओ तो वहां जाने की उत्सुकता ज्यादा होती है। वहां खाने-पीने के इंतजाम की जिम्मेदारी कालेज स्टाफ के रविंद्र भाई को दी गई थी। खाने में वेज नॉन वेज दोनों की व्यवस्था थी। सावन का महीना होने के कारण नॉनवेज खाने वालों की संख्या कम ही थी। महिला स्टाफ में एक को छोड़कर किसी ने नानवेज नहीं खाया। दूसरे दिन रविवार होने के कारण कुछ साथी घर चले गए थे जिनकी कमी महसूस हुई। छीरपानी गेस्ट हाउस इंचार्ज चंद्रवंशी जी से मैंने 2 दिन पहले ही बात करके गेस्ट हाउस बुक कर लिया था। छीरपानी डैम पहुंचने से पहले ही कुछ मित्रों ने बताया कि छीरपानी डैम में मछलियां खूब मिलती है। बारिश के कारण रास्ता काफी खराब था। डैम से पहले तीन-चार किलोमीटर का रास्ता काफी सकरा था। रास्तों में गड्ढे और गड्ढों में कीचड़ और पानी भरे हुए थे क्योंकि कुछ समय पहले ही बारिश हुई थी। जब हम डैम पर पहुंचे तो लबालब पानी से भरा हुआ और चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ डैम का नजारा बड़ा ही मनमोहक था। आसमान पर काले घने बादल छाए हुए थे तो पहाड़ियों पर पेड़ों की सघन हरियाली छाई हुई थी। ठंडी ठंडी हवा बह रही थी, हवा के झोंकों से मुझे मुकेश जी का गाना "सावन का महीना पवन करे शोर" की याद ताज़ी हो गई। डैम के सपाट ढलान पर उगी हुई घास हरी चादर सी फैली हुई थी। डैम के ऊपर से दूर-दूर तक आसमान पर छाए धुंध के साथ हरे भरे पेड़ों तथा टेढ़े मेढ़े सर्पीले रास्तों को देखना बड़ा खूबसूरत लग रहा था। पेड़ों और पहाड़ों पर शायद बारिश भी ज्यादा मेहरबान होती है। वहां वहां रुकने के दरमियान कई बार हल्की फुल्की बौछारें होती रही। कभी बारिश की हल्की फुल्की फुहारों में भीगने का आनंद लिए तो कभी उम्र के ख्याल से पेड़ों के नीचे आश्रय लिए। कवर्धा शहर से लगे सरोदा डैम की तरह वहां खाने पीने की चीजें नहीं मिली। खाना खाने के कुछ देर बाद मौसम के अनुरूप हम सबको गरम गरम भुट्टा खाने की इच्छा हुई। आसपास पता भी किए मगर नहीं मिला और हमारी इच्छा रह गई। डैम पर घूमने के दौरान ही हमें दो व्यक्ति मिले, दोनों भारतीय वेशभूषा (जिसे आज देसी वेशभूषा या देहाती वेशभूषा कहे जाते हैं)में थे वे नीचे धोती पहने हुए थे और उनके  सिर पर पगड़ी सजी हुई थी। मैंने उसमें से एक के कंधे पर हाथ रखा और हम सभी ने उनके साथ फोटो खिंचवाए। मैंने जब उनसे बात किया तो उनके मुंह से बिड़ी पीने की बू आ रही थी। मैंने उनसे मजाक में बीड़ी मांगा तो वे मुस्कुराए और चले गए।हम सभी खूब मस्ती किए खूब फोटोग्राफी किए। हम सभी ने एक साधारण शनिवार को शानदार शनिवार बना लिया।

No comments:

Post a Comment