Thursday 6 October 2022

भीड़तंत्र -- 'भीड़तंत्र' में बदलते 'लोकतंत्र' की कहानियां

भीड़तंत्र -- 'भीड़तंत्र' में बदलते 'लोकतंत्र' की कहानियां
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मशहूर साहित्यकार विशेष रुप से कहानीकार एवं नाटककार श्री असगर वजाहत जी का कहानी संग्रह 'भीड़तंत्र 'जिसे मैंने रायपुर में आयोजित पुस्तक मेला में फरवरी 2020 में खरीदा था। मार्च-अप्रैल 2020 में जब देश में देशव्यापी लॉकडाउन का सिलसिला शुरू हुआ तब पुस्तक मेला में खरीदे पुस्तकों को पढ़ना शुरू किया। जब अगस्त 2020 में इस पुस्तक को पढ़ने के लिए अपने हाथ में लिया तो सबसे ज्यादा प्रभावित किया इस पुस्तक के कवर पृष्ठ पर छपे भीड़तंत्र की आकर्षक तस्वीर। यह पुस्तक 30 लघु कथाओं का संग्रह है। इस पुस्तक मैं अगस्त 2020 में ही पढ़ चुका था। पुस्तक पढ़ने के दौरान ही पुस्तक की प्रत्येक कहानियों पर अपनी टिप्पणियां लिखते जा रहा था। सोचा था पूरी पुस्तक पढ़ने के बाद पुस्तक पर अपनी समीक्षकीय की विचार लिखूं। मगर पुस्तक पूरी पढ़ने के बाद लगभग दो साल तक अपनी सोच को अंजाम नहीं दे सका था। नोटबुक में लिखें इस किताब की टिप्पणियों को देखने के बाद फिर से इसे पूरा लिखने का विचार मन में आया। किताब एक बार फिर पढ़ना शुरू किया। दूसरी बार पढ़ने में ज्यादा मजा आ रहा था। असगर वजाहत जी हिंदी के मजे हुए साहित्यकारों में से हैं। साठ के दशक के शीर्षस्थ कहानीकारों एवं नाटककारों में इनका नाम गिना जाता है। आप कहानी और नाटक के अलावा उपन्यास,यात्रावृतांत, फिल्म पटकथा, समीक्षा और चित्र कला के क्षेत्र में अपनी रचनात्मक योगदान देते रहे हैं। आप के प्रमुख कहानी संग्रहों में 'अंधेरे से'(1977), दिल्ली पहुंचना है (1983), स्विमिंग पूल (1990), सब कहां कुछ (1991), मैं हिंदू हूं (2006), मुश्किल काम (2010), भीड़तंत्र (2018) आदि हैं। आपने कुल आठ नाटक लिखे हैं जिनमें फिरंगी लौट आए, इन्ना की आवाज, वीरगति,समिधा, जिस लाहौर नहीं देख्या ओ जम्याई नई, अकी, गोडसे@गांधी.कॉम, पॉकेटमार रंगमंडल आदि हैं। 'सबसे सस्ता गोश्त' आपके द्वारा लिखे 14 नुक्कड़ नाटकों का एक संग्रह है।सात आसमान, पहर दोपहर, कैसी आगी लगाई, बरखा रचाई, धरा अंकुआई आदि आपके उपन्यास हैं। आपके चार यात्रावृतांत किताबें प्रकाशित है जिनमें चलते तो अच्छा था, पाकिस्तान का मतलब क्या, रास्ते की तलाश में, दो कदम पीछे भी आदि है।1
                       असगर वजाहत जी लंबे अरसे तक जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष के पद पर कार्यरत रहे। आपको हिंदी अकादमी द्वारा श्रेष्ठ नाटककार का सम्मान, आचार्य निरंजन नाथ सम्मान, रंगमंच और नाट्य लेखन के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, दिल्ली हिंदी अकादमी का सर्वोच्च शलाका सम्मान प्रदान किया जा चुका है।
                          भीड़तंत्र कहानी संग्रह का प्रकाशन 2018 में हुआ था। इस पुस्तक की भूमिका में लेखक लिखते हैं कि कहानी संग्रह की अधिकतर कहानियां पिछले दो सालों में लिखी गई है यानी पूरी कहानियां 2016 से 2017 के बीच लिखी गई हैं।
         इस कहानी संग्रह में संकलित कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता है यह है कि सारी कहानियां पारंपरिक कहानियों की रचनात्मकता से बिल्कुल भिन्न है। कहानी शब्द सुनते ही सबसे पहले हमारे मन में कहानी की कथावस्तु,उसके पात्रों और रोचक संवादों के होने की बात आती है। लेखक भूमिका में लिखते हैं कि वे अब परंपरावादी कहानियां लिखना छोड़ दिए हैं। उनके अनुसार "अब मुझे परंपरावादी ढंग से कहानियां लिखने में कोई रुचि नहीं रह गई है। मतलब यह कि कहानी में परिवेश हो,पात्रों का विकास हो,संवाद हो कहानी की शुरुआत हो और कहानी का अंत हो आदि आदि बातों में अब मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है। इसलिए अब मेरी कहानियां यूरोपीय कहानी के ढांचे से अलग हो चुकी है।"2
                     इस पुस्तक में संकलित कहानियों की संरचना पर अपनी बातें और स्पष्ट करते हुए लिखते हैं -"बहुत से पाठक और आलोचक इन कहानियों को कहानी ही नहीं मानेंगे। वे सीधा-सीधा कह सकते हैं कि इनमें तो ना कोई कथानक है और ना कोई पात्र है। इनमें कुछ ऐसी वैचारिकता है जो कहानियों में नहीं होती, आदि आदि। मैं उन आलोचकों की राय का सम्मान करता हूं, क्योंकि वे कहानी की परंपरागत स्थिर परिभाषा को ही मान रहे हैं, जबकि मेरी परिभाषा काफी अलग है। मैं यह मानता हूं कि कोई भी रचनात्मक अभिव्यक्ति कहानी हो सकती हैं एक वाक्य या दो वाक्यों में भी कहानी लिखी जा सकती है ।कहानी के लिए प्लाट की कोई आवश्यकता नहीं है।3
                         भीड़ तंत्र की कहानियों में बदली हुई परिस्थितियों तथा सांप्रदायिक झगड़ों की गूंज सुनाई पड़ती है। भूमिका में वजाहत जी लिखते हैं " यह समझने की बात है कि किस तरह सीधे साधे सरल लोगों को हिंसक बना दिया जाता है। प्रतिशोध की भावना उनके अंदर इस प्रकार भर दी जाती है कि कोई तर्क उनकी समझ में नहीं आता। हर तर्क के उत्तर में हिंसा का रास्ता अपनाते हैं। हमको लगता है की हिंसा से ही सही फैसले हो सकते हैं, जबकि यह नितांत गलत है। हिंसा से कोई फैसला और न्याय नहीं हो सकता है।"4
                    इस कहानी संग्रह की पहली कहानी है 'भगदड़ में मौत'। इस कहानी में भगदड़ के बाद मौत हो जाने वाले लोगों के प्रति प्रशासन की खानापूर्ति एवं शासन की राजनीतिक ड्रामेबाजी का चित्रण हुआ है। भगदड़ में मरने वालों को सरकार द्वारा 50 50 लाख मिलने के समाचार पर परिवार के लोग अपने घर के बड़े बूढ़ों को कोसते हैं कि आखिर ये क्यों नहीं तीर्थ गए? गए होते तो शायद भगदड़ में मारे जाते और हमें भी 50 लाख मिल जाता।आप संकट में हैं तो आपको मदद करने वाला कोई भी आपके पास नहीं आएगा लेकिन शाब्दिक सांत्वना देने वालों की कमी नहीं होगी। भगदड़ के बाद जिले के डीएम को ट्रांसफर कर दिया जाता है जो कि हर हादसे के बाद कार्यवाही के नाम पर रिवाज सा बन गया है। कहानी का अंत बड़ा प्रभावोत्पादक है जिसमें लावारिस औरत की लाश को कई लोग मेरी माता है कहकर हक जमाना चाहते हैं ताकि उस लाश के एवज में सरकारी मदद उन्हें मिल सके। तभी अंधेरे से कोई चिल्लाता है कि कहीं यह भारत माता तो नहीं है।
              ' किरच किरच लड़की'इस कहानी संग्रह की दूसरी कहानी है। यह कहानी लता (प्रेमिका) और राहुल (प्रेमी)की कहानी है। दोनों उत्तर प्रदेश इलाहाबाद और लखनऊ शहर से दिल्ली रोजगार के लिए आते हैं। बेरोजगारी के कारण दोनों का प्रेम सफल नहीं हो पाता। लता एक शोरूम में डमी मॉडल बनने का काम करती है। धीरे-धीरे लता एक सचमुच की डमी मॉडल की तरह राहुल से बात करना,देखकर मुस्कुराना और अंत में सांस लेना भी बंद कर देती है। बेरोजगारी के इस दंश से लाखों-करोड़ों लोग पीड़ित हैं। लोग सपने देखते हैं पर साकार नहीं कर पाते। बेरोजगारी में प्रेम का जो अंजाम होना चाहिए वही इस कहानी में होता है।
लेखक की तीसरी कहानी है 'ताजमहल की बुनियाद' इस कहानी के माध्यम से बताया गया है कि लोकतंत्र चाहे आज हो या फिर हजारों वर्ष पहले का शासक वर्ग के ऐश्वर्य के लिए गरीब किसानों एवं मजदूरों को हमेशा बलिदान देना पड़ता है। ताजमहल की खूबसूरती के पीछे अनगिनत मेहनतकश लोगों का खून पसीना मिला हुआ है।
                         कहानी संग्रह की चौथी कहानी 'लेकिन कुछ है' कहानी के माध्यम से राजधानी के लगातार विस्तार होने एवं गांवों के नष्ट होने पर चिंता व्यक्त की गई है। राजधानी अपने विकास और विस्तार के जद में उन इलाकों को हड़प ली है जहां पहले अनाज उगाया जाता था। नगर के विकास के लिए बने 'महानगर विकास प्राधिकरण' महानगर विनाश प्राधिकरण बनकर रह गया है। कहानी के केंद्र में शहर के बीचोंबीच स्थित 'चांदमारी की दीवार' है। नगर के विकास के लिए राजधानी अपने पांव दूरदराज गांवों 
-खेतों तक पसार रहा है लेकिन बीचो-बीच बने उस चांदमारी की दीवार को ऐतिहासिक मानकर नहीं तोड़ पाता है। शहर के विकास और आवागमन में रोड़े की तरह खड़ी उस दीवार को राष्ट्रीय स्मारक माना जाता है। इस कहानी में सरकारी कार्यालयों में किसी कार्य के लिए होने वाली स्वभाविक देरी पर भी तीखा व्यंग किया गया है। हम सब जानते हैं कि सरकारी दफ्तरों में काम के नाम पर फाइलें एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस चलती रहती है मगर काम जस का तस रह जाता है।
                           'देश के ऊपर बना पुल, कहानी स्वच्छता अभियान से पूर्व लिखी गई होगी तो कोई बात नहीं। तब तो 'हिंदुस्तान' को कुड़ीस्थान कहना वाजीब ही था। स्वच्छता अभियान के बाद हमारा देश कितना साफ़ सुथरा हुआ है यह भी हम भली भांति देख सकते हैं। कम से कम सफाई के आंकड़े तो पहले से बेहतर ही हैं। इस अभियान से जनता इतना जागरूक तो जरूर हुए हैं कि वे खुलेआम गंदगी करने से अब डरने लगे हैं। इस कहानी में आस्था और विश्वास के नाम पर पवित्र नदियों में सड़े गले फूलों, पॉलीथिन आदि फेंक कर अपवित्र कर देने की घटना पर ध्यानाकर्षित किया गया है। किसी भी धार्मिक व सभ्य देश के लिए निश्चित तौर से यह शर्म की बात है की पुल के ऊपर से जहां नदियों में कचरे फेंके जाते हैं वहीं पर बड़े-बड़े बोर्ड लगे हुए हैं जिन पर पर्यावरण को बचाने की अपील की गई है। नदियों को गंदा ना करें इसलिए पर्यावरण रक्षा हेतु सुरक्षा गार्ड भी तैनात होते हैं पर वे आस्था की ही रक्षा करते देखे जाते हैं। सरकार के लिए यह विडंबना की बात है कि वह नदी को साफ रखना चाहती है क्योंकि आस्था से जुड़ी हुई है मगर सफाई अभियान में वही आस्था आड़े आने लगती है। यदि आस्था रुकेगी तो नदी साफ होगी मगर समस्या यह है आस्था रोकने से जनता नाराज हो जाएगी। इस देश में अजीब रिवाज है किसी को गंदगी करने से मना करो तो वह झट से बोल उठता है क्या यह जगह तुम्हारे बाप का है? ऐसे में हिंदुस्तान के बजाय कूड़ीस्थान कहां जाना बिल्कुल सही लगता है।
              "लड़की के अब्दुल शकूर की हंसी" इस छोटी सी कहानी का मुख्य पात्र अब्दुल शकूर है। अब्दुल शकूर का चरित्र विरोधात्मक है। जब उसे शारीरिक और मानसिक यंत्रणा दी जाती है तो वह प्रतिक्रिया स्वरूप जोर जोर से हंसता है। हम उनकी हरकतों से उसे विक्षिप्त कह सकते हैं। पर वास्तव में धार्मिक संकीर्णता के कारण शिकार हुए वह एक पीड़ित व्यक्ति है। उसे अपनी पीड़ा व्यक्त करने की स्वतंत्रता भी नहीं दी गई है। वह किसी भी सवालों के जवाब में जो भी बोलता है उसकी विवशता का ही परिणाम होता है। अब्दुल शकूर व्यवस्था से पीड़ित होता है पर व्यवस्था से सुविधाएं नहीं मिलती। वह अनपढ़ है बीमार है बेरोजगार है। तमाम यंत्रणाओं को झेलते हुए भी अब्दुल शकूर हंसता है क्योंकि वह लकड़ी का बना है। उसके भीतर जैसे संवेदना ही नहीं है। यदि है भी तो उसका कोई अर्थ नहीं है क्योंकि उसकी संवेदनाओं को समझने वाला भी कोई नहीं है। अब्दुल शकूर को यह स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता है कि वह देशद्रोही है। आखिरकार अपने विशेष धार्मिक पहचान के कारण जीवन भर उपेक्षित और पीड़ित रहने वाला अब्दुल शकूर अपने भीतर अपार पीड़ा लिए हुए इस दुनिया से कूच कर जाता है। लेकिन उसके पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह दिखाया जाता है कि मरने से पहले वह हंस रहा था यानी जीते जी अपनी जिंदगी से बहुत खुश था अब्दुल शकूर।
                          "नए ईसा मसीह" कहानी हिंदी के वरिष्ठ कवि व्यंगकार और पत्रकार विष्णु नागर जी को समर्पित है। इस कहानी में नए और पुराने ईसा मसीह के माध्यम से उनके मसीही अंदाज में आए बदलाव को दिखाया गया हैं । नए ईसा मसीह का जनसेवा और समाज सेवा का अंदाज पुराने ईसा मसीह से बिल्कुल अलहदा है। नए ईसा मसीह सिवाय खुद के किसी दूसरे को जनसेवक मानने को तैयार ही नहीं होता। नए ईसा मसीह बाहुबल और धनबल के आधार पर स्वयंभू जनसेवक बन गया है। उसे पुराने ईसा मसीह की अहिंसा वादी प्रवृत्ति रास नहीं आता। वह अपने जन सेवा में हिंसा को भी स्थान देता है। वह अपनी ताकत के दम पर जनता से खुद को सच्चा ईसा मसीह कहलवा लेता है  । कहानी के अंत में लेखक ने यह सदिच्छा जाहिर की है कि पुराने ईसा मसीह कभी नहीं मरते यानी सच्चाई हमेशा जीवित रहती है   ।
              "शिक्षा के नुकसान" कहानी में शिक्षा को नुकसानदेह बताते हुए शिक्षा विरोधियों पर तीखा व्यंग किया गया है। कहानी में बुकरात नाम का एक पात्र है जो कि सुकरात का छोटा भाई है वही कहानी का सूत्रधार है । वह पांच छोटी-छोटी लघु कथाओं को सुनाकर लोगों को शिक्षा की हानि बताने का प्रयास करता है। दरअसल इस कहानी के माध्यम से उन विडंबना पूर्ण स्थितियों की ओर संकेत किया गया है जब कोई शिक्षित और ज्ञानवान व्यक्ति व्यवस्था के खिलाफ कोई प्रश्न उठाता है तब उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। इतिहास बताता है कि हमेशा से शासक वर्ग द्वारा जन जन की भावनाओं को आवाज देने वाले लेखकों कवियों और पत्रकारों को षडयंत्र पूर्वक खामोश कर दिया जाता है। दुष्यंत कुमार जी ने अपने ग़ज़ल के शेर में इसी बात की ओर संकेत किए हैं--
"तेरा निजाम है सील दे जुबान शायर का।
यह एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।"
लोग जितना अनपढ़ अज्ञानी और मूर्ख रहे उतनी ही सत्ता निर्बाध रूप से चलती है। सत्ताधीश कतई नहीं चाहते कि लोग पढ़े लिखे समझदार बने और उनके खिलाफ कोई सवाल उठाएं। शिक्षित और विद्वान होने का एक ही अंजाम है और वह है मौत।
                "तीन तलाक" के मुद्दे पर कुछ लोग ऐसे थे जो महज विरोध के लिए विरोध किए जा रहे थे। यदि तीन तलाक बुरा है तो क्यों है? इसके लिए उनके पास कोई तार्किक दृष्टिकोण नहीं थे। ऐसे लोगों का मकसद मुस्लिम समुदाय से मुस्लिम महिलाओं को तोड़कर समर्थन जुटाना और अपना वोट बैंक बढ़ाना ही था।
                "बीज और जमीन" कहानी में खुशहाली देने के नाम पर जनता के साथ होने वाले धोखे का चित्रण है। अवसर वादियों द्वारा पहले सब्जबाग दिखाए जाते हैं फिर मुकर जाते हैं।
                      "दुश्मन दोस्त" इस कहानी के माध्यम से पता चलता है कि दो पक्के दोस्त, दो पक्के दुश्मन हो सकते हैं। यह सच है कि हम अपने बारे में कई बातें स्वयं नहीं जानते लेकिन हमारे दोस्त या दुश्मन हमारे बारे में हमसे ज्यादा जानते हैं। ऐसे में वक्त आने पर दुश्मन से ज्यादा  खतरनाक दोस्त हो सकते हैं।
                    "देशहित" इस कहानी में तथाकथित देशभक्तों व देशप्रेमियों पर तीखा व्यंग किया गया है। जब कोई व्यक्ति स्वयं को देशभक्त कहता है तो उनसे सवाल पूछा जाता है कि आप देशभक्ति और देश प्रेम के लिए क्या करते हैं? तो तथाकथित देश भक्त इस प्रश्न से भौचक रह जाता है और उल्टे प्रश्न के जवाब में प्रति प्रश्न करता है कि "क्या देशभक्त और देश प्रेमी होने के लिए कुछ करना भी पड़ता है?"इस कहानी में छोटे-छोटे दृष्टांतों के माध्यम से तथाकथित देशभक्तों एवं उनकी देशभक्ति की पोल खोली गई है। लेखक कहानी में एक जगह कल के देशभक्त और आज के देशभक्त के अंतर को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि-"पहले देशभक्त जनता से कहते थे तुम हमें खून दो हम तुम्हें आजादी देंगे।"मगर आज के देश भक्त कहते हैं-" तुम हमें वोट दो हम तुम्हें साड़ियां देंगे लैपटॉप देंगे साइकिले देंगे पैसा देंगे।"आज परिवेश इतना बदल गया है कि जोर जोर से चिल्ला कर अपने आपको देशभक्त साबित करना पड़ता है। अब स्थिति ऐसी आ गई है कि तुम्हारे चीखकर कहने से कि तुम देशभक्त हो, किसी के कान नहीं फटे तो तुम देश भक्त कहलाने के पात्र नहीं हो। कहानी के अंत के दृष्टांत में व्यंग अत्यंत तीखा है। कहानी का अंश इस प्रकार से है-"देश प्रेमी ने एक दलित से पूछा-" तुम देश से प्रेम करते हो? दलित ने कहा-" मैं तुम्हें मंदिर के अंदर आकर इस सवाल का जवाब दे सकता हूं।"देश प्रेमी ने कहा,-" मुझे उत्तर मिल गया है, तुम देश से प्रेम नहीं करते हो।"
              अगली कहानी "नायक की कॉमेडी" है, इस कहानी के माध्यम से एक तानाशाह के निरंकुश शासन का बड़ा सुंदर चित्रण किया गया है। वह अपने आपको एक ऐसा नायक मानता है जो पूरे देश की अगुवाई केवल वही कर सकता है। यद्यपि वह भी भीतर से खालिस नंगा है पर जनता में इतनी हिम्मत कहां कि वे नंगे को नंगा कर सके। वे भली-भांति जानती हैं की नंगे को नंगा कहना कितना खतरनाक हो सकता है। सच भी है जब नंगे से खुदा हार जाता है फिर आम लोगों की क्या बिसात है। तानाशाह नायक को ऐसी खुशफहमी है कि वह स्वयं को संसार का सबसे बड़ा विद्वान विचारक, शक्तिशाली और अर्थशास्त्र का ज्ञाता मान बैठा है। उसे जनता को बहलाने के सारे तौर तरीके ज्ञात है। उसके पास न्याय,प्रेम,बराबरी,भाईचारा ,त्याग,बलिदान,अहिंसा, एकता जैसे शब्दों से खेलने की पैतरे भी है। यूं तो उनमें  हैं असंख्य गुण पर सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है- लोगों से जो भी वह कहता है लोग उसे सच मान लेते हैं। वह सच को झूठ और झूठ को सच कर देने की कला में पारंगत है। वह ऐसा शातिर दिमाग वाला है,ऐसा माहिर खिलाड़ी है कि वह जो चाल चलता है,जो चाहता है वही होता है। वह चाल चलने में शकुनि का भी मामा प्रतीत होता है।
                   अगली कहानी दूसरी मिस्टेक है, यह कहानी मंटो की प्रसिद्ध कहानी मिस्टेक का रीमेक कहा जा सकता है। कहानी में दंगों के दौरान एक धर्म वाला व्यक्ति दूसरे की हत्या कर देता है। पर बाद में पता चलता है कि जिसकी हत्या हुई है और जो हत्यारा है दोनों एक ही धर्म के हैं। इस पर हत्यारा खेद व्यक्त करते हुए मिस्टेक हो गई कहता है। धार्मिकों द्वारा ईश्वर से गुजारिश की जाती है कि जब बच्चा पैदा हो तभी उसके साथ धर्म की पहचान हो ताकि हम गैर धर्म वालों को आसानी से पहचान कर मार सकें। इस तरह तथाकथित धार्मिकों की मानसिकता पर जोरदार व्यंग किया गया है।
                  "दलित के द्वारे" इस कहानी में बताया गया है कि राजनीतिक महकमों में तथाकथित राजनेता अपने राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए दलितों का उपयोग करते हैं। दलितों के प्रति उनके मन में अचानक से उमड़ी दया, करुणा और प्रेम महज वोट पाने की चाहत की उपज होती है । दलितों के प्रति अपना प्रेम दिखाने के लिए वे उनके घर जाते हैं। साथ में बैठकर खाना खाते हैं। तमाम प्रकार के नाटक रचते हैं। वे अपने झूठे प्रेम के इस करतब को मीडिया के माध्यम से खूब प्रचारित प्रसारित करते हैं। चुनाव खत्म होते ही दलितों का हाल पूछने वाला ना तो नेता आते हैं न ही मीडिया वाले।
                      एक छोटी सी कहानी है "पानी-पानी" यह एक प्रतीकात्मक एवं संकेतात्मक कहानी है। पानी की तासीर तेजाब में बदल गई है। यह पानी ऐसे उन्मादी सोच का प्रतीक है जो शरीर में जाते ही चारों ओर उन्माद करने की इच्छा जगाने लगता है।
                  "कुत्ता प्रेम"कहानी में बताया है कि लोग किस प्रकार आवारा कुत्तों पर खूब प्रेम बरसाते हैं। मॉर्निंग वॉक पर आते समय उनके लिए नमकीन बिस्कुट ब्रेड लाते हैं। लेकिन उनका प्रेम सड़क तक ही सीमित रह जाता है। वे आवारा कुत्तों से इतना प्रेम करते हैं तो फिर उन्हें अपना घर ले जाने में क्यों हिचकिचाते हैं।
              "खतरा" नामक छोटी सी कहानी में बताया है कि किस तरह दो मुल्क की जनता एक दूसरे को दुश्मन समझते हैं, आपस में घृणा करते हैं और आखिरकार लड़ते-लड़ते खत्म हो जाते हैं। मनुष्यता के सामने यह प्रश्न है कि क्या घृणा, मारकाट और युद्ध के सिवाय मनुष्य के लिए कोई दूसरा मकसद नहीं बचा है?
           "फैसला" नामक छोटी सी कहानी के माध्यम से न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाया गया है। जब न्याय व्यवस्था धर्म की पहचान के आधार पर अपना निर्णय सुनाता है फिर ऐसी न्यायायिक प्रणाली से न्याय की उम्मीद करना बेमानी लगती है।
              "दवा" नामक कहानी में "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" वाली कहावत चरितार्थ होती है। जब हमारे साथ कोई गलत या दुर्व्यवहार होता है तो हमें समझाने वाले लोग बहुत से मिल जाते हैं। वे हमें समझाइश देते हुए कहते हैं कि हमें छोटी मोटी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। लेकिन उन्ही छोटी मोटी घटनाओं या दुर्व्यवहार से वे खुद पीड़ित होते हैं तो आसमान सिर पर उठा लेते हैं। आखिर जिस मर्ज के लिए हम दूसरों को दवा सुझाते हैं वही मर्ज हमें होने पर वही दवा क्यों नहीं ले लेते। जब मुसीबत खुद पर आती है तो हंगामा करने में आमादा हो जाते हैं।
                   "लोकतंत्र का मंत्र" इस कहानी में वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में होने वाले जनप्रतिनिधियों के खरीद-फरोख्त पर तीखा व्यंग किया गया है। सत्ता सुख पर बने रहने के लिए सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों में ही होड़ मची रहती है। विरोधी पक्ष हमेशा सत्ता पक्ष के प्रतिनिधियों को तोड़ने में लगे रहते हैं। वे अपने मंसूबों में कामयाब होते ही अविश्वास प्रस्ताव ले आते हैं। इस महान लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का खरीद फरोख्त आज आम बात हो गई है। 
         "उत्तेजना" कहानी में पुलिस वाले जिसकी हत्या हुई है उसके लाश को संबंधितो को इसलिए नहीं देते कि समाज में उत्तेजना ना फैल जाए बजाय हत्यारों को तलाशने की।
                  "लूटेरा" कहानी में एक ऐसे लूटरे का चित्रण है जो पैसे मोबाइल पर क्रेडिट कार्ड गाड़ी आदि धन सामग्री लूटने के बजाय बुद्धि लूटता है। बुद्धि लूटने के पीछे उस लुटेरे की गहरी साजिश है। वह जानता है कि व्यक्ति की बुद्धि लूटे जाने के बाद उसके सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है। फिर तो जो लुटेरा कहता है वही सही मानते हैं। अगर वह कहता है कि मैं भगवान हूं तो हम उसे भगवान मान लेते हैं। कहानी में  बताया गया है कि बौद्धिक दिवालियापन सबसे खतरनाक स्थिति होती है ।
                        "स्वार्थ का फाटक" कहानी में   बताया गया है कि देश में अनेक समस्याएं हैं पर समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाने पर हिंसा से आपकी आवाज बंद कर दी जाती है। इस तरह उनका फलसफा है कि समस्या यथावत बनी रहे। उनके पास समस्या खत्म करने का कोई उपाय नहीं है। समस्या बताने वालों को ही खत्म कर देना उनके लिए एकमात्र रास्ता है।
                    "जानवर और आदमी" कहानी में बताया है कि आदमी का सभ्यता के साथ-साथ विकास होने के बजाय ह्रास होते जा रहा है। पहले आदमी जानवर से श्रेष्ठ था फिर जानवर के बराबर हुआ अब तो आदमी से जानवर श्रेष्ठ हो गया है।
                  "राजा और सेना"  कहानी कविता की तरह संवेदना से भरपूर है। एक राजा अपने लोगों जैसे बेटा, भाई,प्रधानमंत्री, मंत्री आदि सारे विरोधियों की हत्या करवा देता है और अंत में जनता को ही खत्म करने के लिए आदेशित करता है लेकिन उसे नहीं पता कि जनता को मारने के बाद ना राजा राजा रहेगा ना उसकी सेना रहेगी।
                    "भीड़तंत्र"  इस संग्रह की आखिरी कहानी है इस कहानी में अराजक भीड़ द्वारा लिए जाने वाले फैसले पर तीखा व्यंग किया गया है। जब पागल भड़की हुई भीड़ द्वारा किसी के नाम जाति धर्म संप्रदाय पूछ कर फैसले लिए जाते हों, सजा दिए जाते हों फिर ऐसी व्यवस्था को बजाएं लोकतंत्र कहने के भीड़ तंत्र कहना ही उचित लगता है। 
                  कहानी संग्रह की सारी कहानियां अपने कलेवर में छोटी-छोटी हैं पर अपने कथ्य को संपूर्णता के साथ पाठकों को परोसने में पूर्ण सक्षम हैं। इसमें सम्मिलित कहानियां कहानी के बजाय हमारे रोजमर्रा जीवन की सच्ची घटनाएं ज्यादा लगती हैं, जो हमारे आसपास घटती रहती हैं। इसके कहानियों में तीखे व्यंग के साथ-साथ 'लोकतंत्र' का 'भीड़तंत्र' में बदलने की गहरी पीड़ा समाहित है।

भीड़तंत्र -- कहानी संग्रह
कहानीकार -- श्री असगर वजाहत
प्रकाशक   -- राजपाल एंड संस 1540, मदरसा रोड 
                   कश्मीरी गेट दिल्ली--110006
मूल्य -- 175 रूपए, पृष्ठ-127, प्रकाशन वर्ष- 2018

नरेंद्र कुमार कुलमित्र
वार्ड क्रमांक 8, जी श्याम नगर कवर्धा
जिला कबीरधाम छत्तीसगढ़ 495115
मोबाइल नंबर - 9755852479
ईमेल आईडी - avanink@gmail.com

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