Thursday 6 October 2022

वह मौन चलती रहती है -- 27.08.22

वह मौन चलती रहती है -- 27.08.22
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छुक छुक करती रात दिन दौड़ती रहती है अपनी पटरी पर
लोगों की दूरियां मिटाने भेदभाव और असहमतियों को कम करने अलग-अलग भाषा और संस्कृतियों को एक साथ लेकर 
मौन अनवरत चलती रहती है

हमीं उसे गंदा करते हैं
हमीं उसमें अव्यवस्था फैलाते हैं
हमीं उस पर तरह-तरह के आरोप लगाते हैं
उसके रास्ते में रोड़े बन उसे चलने से बाधित करते हैं
कई बार अपने गुस्से के लिए उसे आग के हवाले कर देते हैं

वह सारे डिब्बों को आपस में जोड़े चलती है
वह चुपचाप चलती है तो हमारा सफर बिना हिचकोले खाए आसान हो जाता है
हम सुने या ना सुने मगर
वह हमें खतरों से बचाने के लिए लंबा हार्न देती है
जब वह पटरी से उतरती है तो भूचाल आ जाता है
अफरा तफरी मच जाती है हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है
हमने बना दी है उसके चलने के लिए पटरी
उसे केवल पटरी पर ही चलते जाना है

उसमें इतनी जगह होती है कि हम सब का सफर आराम से कट जाता है
वह कमाऊ है रात दिन खटती है हमारा समय बचाती है 
सब कुछ सहती है फिर भी मौन चलती रहती है
चाहे कुछ भी कहो भारतीय रेल या भारतीय स्त्री..।

---नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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