Thursday 3 September 2020

ये कैसा समय है ..?

ये कैसा समय है..? -03.09.2020
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ये कैसा समय है..?
कि बहुरंगी दुनियाँ को
एक रंग में रंगने की साज़िश हो रही है

उन्हें रास नहीं आ रहा है
विविधता में एकता की बातें

वे गढ़ना चाहते हैं
एक नई सांस्कृतिक पहचान
जिसमें आपको शामिल होना होगा अनिवार्य

'धर्म' और 'राष्ट्र' की घुट्टी
पिलाई जा रही है जनता को
जनता एडिक्ट हो चुकी है
'धर्म' और 'राष्ट्र' के ड्रग से
जनता होश में आए और काम की बातें करे
इससे पहले ही उन्हें पिला दी जाती है
'राष्ट्र' और 'धर्म' की दो-दो घुट
अवसर देख कविगण
'देशभक्ति' को भुनाने में लगे हुए हैं
मंचों से ताल ठोंककर
ओजस्वी स्वर में वीररस की कविता
सुनाए जा रहे हैं
'राष्ट्र' और 'धर्म' के नशे में धुत्त जनता
गदगद होकर ख़ूब ताली पिटे जा रही है

कविता में 
जनता की बातें करना
काम की बातें करना
रोज़ी-रोटी की बातें करना
कविता ही नहीं मानी जा रही है

आपको अगर कहलाना है कवि
तो छंदबद्ध रचना करनी होगी
मिलाने होंगे शब्दों की तुक
लय में पढ़नी होगी कविता 
वाहवाही लूटने के लिए
कविता में पिरोने होंगे 'धार्मिकता' और 'राष्ट्रीयता' के शब्द

ये कैसा समय है ..?
कवि अपना कविकर्म भूलकर
जनता को गुदगुदाकर -हँसाकर
उसका केवल मनोरंजन कर
अपनी कविता की उपयोगिता प्रमाणित कर रहे हैं

जनता को रिझाने वाली कविता में
हुनर और कला तो ख़ूब दिख जाती है
पर कविता में संवेदना कतई नही दिखती है
केवल व्यावसायिक नजरिये से कविता गढ़ी जा रही है
ये कैसा समय है ..?

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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