Friday 18 September 2020

नज़्म

8 - रद्दी के भाव में मिली मोहब्बत (24.12.19)
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    रद्दी वाले से मैंने इक किताब खरीदी
    तब हैरान रह गया 
    उस क़िताब के पन्नों के बीच जब
    मिले सूखे हुए लाल गुलाब के फूल
    जो कभी मेरी मोहब्बत की निशानी थी
    जिसे ताउम्र संभाल कर रखने का हुआ था वादा 
    आखिरकार जिंदगी के इस सफ़र में
     बेशकीमती मोहब्बत की निशानी गुजरती हुई
     फिर मिल गई मुझे रद्दी के भाव में।
     

7 - जब मैं उससे मिला पहली बार
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वह काँप रही थी 
सहमी, सिकुड़ी,ठिठुरती सर्दी-सी
वह मिली मुझसे
गुनगुनी धूप मिल गई हो जैसे
जब मैं उससे मिला पहली बार...।


6 - गलतफहमियां लफ़्ज़ों की
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अच्छा होता आँखों से ही बयां करते हम अपनी बातें
कुछ सुन पाते कुछ समझ पाते कुछ रह जाते
तब न कान होते न ही ग़लतफहमियां लफ़्ज़ों की।



5 - मैं लौटकर आता जरूर (16.12.19)
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मैं कोई तारीख़ तो नहीं था
जो इक बार बदलकर नहीं आता
तुमने कभी इंतिजार ही नहीं किया
तुमने कभी याद ही नहीं किया
वरना मैं लौटकर आता जरूर...।

4 - शबनम-सी यादें तुम्हारी (16.12.19)
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शबनम की बूँदों-सी तुम्हारी यादें
बिखर जाती है शब के सन्नाटे में
सहर होने पर आफ़ताब-दिल
फिर से समेट लेता है
शबनम-सी यादें तुम्हारी ।

3 - गम मेरा...(15.12.19)
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कभी हार ने मुझे नहीं तोड़ा इतना
तेरे जाने से जितना तोड़ा है ग़म मेरा।

2 - तुम्हारी दुआ...(15.12.19)
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खर्चे मैंने पैसे और समय 
धीरे-धीरे सब कमतर होते गए
बस एक चीज़ कभी कम न पड़ी
रही हर वक़्त सलामत
वो थी तुम्हारी दुआ...।

1- रद्दी के अख़बार हुए दोस्त सारे (15.12.19)
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दिनभर उलटे-पलटे
पढ़े हर सफ़ा के कोने-कोने
फिर कभी नहीं मिले
रद्दी के अख़बार हुए दोस्त सारे ।






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