Monday 7 September 2020

ग़ज़ल

फूलों,पत्तों और परिंदों से जुदा शज़र है।
बड़ा ही तन्हा-तन्हा लगता ये शहर है।1।
ये मुफ़लिसी और बदहाली मज़मून नहीं
वो मोहब्बतों और आशिकों का शायर है।2।
ऊँची-ऊँची इमारतें अब सज गईं हैं वहाँ
उजड़ गईं कई आशिया ये बात दीगर है।3।

यूं खीझ और गुस्सा भरकर बैठे क्यूँ हो
निकालो भी  उसकी ज़रूरत बाहर है।5।


कुछ कहा नहीं पर जान लिया।
चुप था  सहमति मान लिया।1।
समय रहते अपनों को-गैरों को
अच्छा हुआ पहचान लिया।2।
मिलेगी मंजिल-ए-कामयाबी
जब एक बार  ठान लिया।3।


आज सारा शहर  वीरान लगा दिनभर- 65(22.03.2020)
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सूना-सूना-सा आसमान लगा दिनभर
आज सारा शहर  वीरान लगा दिनभर।।1।
रोज की भीड़भाड़ वाले इस शहर में
सन्नाटों का  ही  दुकान लगा दिनभर।2।
चुप्पी में सिमटा हो जैसे सारा आलम
ख़ामोश सारा मकान  लगा दिनभर।3।
हर दरवाज़े पर तन्हाई देती रही दस्तक़
मग़र ताले में कैद ज़बान लगा दिनभर।4।
बड़ी मुश्किल है  चहारदीवारी में रहना
ज़र्रा-ज़र्रा भी  परेशान लगा दिनभर।5।

रिश्ते तारीख़ नहीं जो रोजाना बदलो - 64
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बड़े बेअसर हैं  ये गाने, गाना बदलो।
उबने से पहले अपना ठिकाना बदलो।1।
वक्त के साथ जो खुद  न बदला कभी
सोए-सोए कहता है  ज़माना बदलो।2।
मिल ही जाते हैं सारे पहचाने हुए लोग।
चाहे जितने बार भी मयख़ाना बदलो।3।
मोहब्बत में बंदिशे  अब भी है क़ायम
आशिकों के ख़िलाफ़ परवाना बदलो।4।
सोच बदलो  रास्ते बदलो  खुद बदलो 
रिश्ते तारीख़ नहीं जो रोजाना बदलो।5।

कि ख़्वाहिश मेरी बढ़ गई तुझे देखने के बाद.. 63
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जहीन हो सच में  पता चला  मिलने के बाद।
कि ख़्वाहिश मेरी बढ़ गई तुझे देखने के बाद।1।

कदम से कदम मिलाकर चले थे साथ-साथ
कि ज़िन्दगी ठहर गई  ज़रा रूकने के बाद।2।

जब तलक जिंदादिली रही थकन जाती रही
कि ज़िस्म से रूह निकल गई थकने के बाद।3।

किसी की मज़बूरियों को देखकर जो हँसा था
कि फिर न हँसा कभी इक बार हँसने के बाद।4।

गर सुनना चाहे तुझे इसमें कानों का क्या क़सूर
कि लग गई लत तेरी लफ़्ज़ों को चखने के बाद।5।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479


धीरे-धीरे बोलो अभी-अभी सोया है - 62(07.012020)
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धीरे-धीरे बोलो अभी-अभी सोया है।
सिसकी देखो सोने से पहले रोया है।1।
जब भी देखो  बड़ा बेचैन लगता है
न जाने उसने आख़ीर क्या खोया है।2।
लुटा दी जिसने अपनी खुशियां सारी
दामन अपना अश्कों से भिगोया है।3।
हिस्से में अपने  केवल गम लेकर
ज़ख्म ए दिल आंसुओं से धोया है।4।
फूलों की बाग सजाया था जिसने
काँटों की सेज पर आज सोया है।5।



सोया हुआ शख़्स महज़ लाश होता है  - 61(05.2020)
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मेरे अकेले में भी कोई आसपास होता है।
तुम नहीं हो पर तुम्हारा आभास  होता है।1।
बिखर ही जाता है चाहे कितना भी संवारो 
बस खेलते  रहो जीवन एक ताश होता है।2।
जरूरतमंद तो आ ही जाते हैं बिना बुलाए
आपकी जरूरत में आए वही ख़ास होता है।3।
दिनभर भीड़ में शामिल होने के बाद रोज
मन मेरा हर शाम  जाने क्यूँ उदास होता है।4।
जागो उट्ठो और नए जीवन का आगाज़ करो
वरना सोया हुआ शख़्स महज़ लाश होता है।5।


हम तो केवल उनके बयानों में रहे - 60 (08.12.19)
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हम जब तक रहे बंद मकानों में रहे।
वे कहते हैं हम उनके ज़बानों में रहे।1।
उनके लिए बस बाज़ार है ये दुनियाँ
गिनती हमारी उनके सामानों में रहे।2।
मुफ़लिसी हमारी तो गई नहीं मगर
हमारी अमीरी उनके तरानों में रहे।3।
जो बड़े जाने-पहचाने लगते हैं अब
कभी हम भी उनके बेगानों में रहे ।4।
उसने घास नहीं डाली ये और बात है
कभी हम भी उनके दीवानों में रहे।5।
पूछो मत हमारे हालात की हकीकत 
हम तो केवल उनके बयानों में रहे।6।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

मजदूर  --59 (12.11.19)
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हमारे सर पर ये जो आसमान है।
हमारे लिए बस यही मकान है।1।
बड़ी मेहनत से मिलती है रोटी
तुम्हारे लिए भले ही आसान है।2।
दिनभर बहाते हैं खून- पसीना
हमारा तो मेहनत ही भगवान है।3।
साथ  हमारे नहीं हैं कोई और 
बस हम हैं और हमारा ईमान है।4।
जानवरों से भी गए गुजरे हैं हम
उन्हें नहीं पता हम भी इंसान है।5।
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
     9755852479

चंद अल्फ़ाज-58  (21.10.18)
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तेरे चेहरे में जो दिखती ख़ुद्दारी है।
बता तूने नक़ल किसकी उतारी है।1।
तेरी हुकूमत थी वो  तेरा दौर था
खामोश रहना,अब उसकी बारी है।2।
इश्क़ किए  तो कसूरवार हो गए
दिल लगाया  ये ग़लती हमारी है।3।
कुछ आग थी, कुछ शोले भी थे
अब कहीं नही,दिखती चिंगारी है।4।
पीया था इक बार जाम ए इश्क़
अब तलक नहीं उतरी ख़ुमारी है।5।
----- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
       9755852479

ग़ज़ल - 57 (27.09.19)
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आप जिसे कलाकार कहते हैं।
हम उसे   चाटुकार कहते हैं।1।
थूकने लायक है उसके काम सारे
आप उसे  नमस्कार कहते हैं।2।
जो तुम तारीफों के पुल बाँधते हो
हम उसे   धिक्कार कहते हैं।3।
होती है सरेआम गुंडागर्दी रोज
आप उसे अधिकार कहते हैं।4।
हम सिरे से नकार देते हैं अक़्सर 
आप उसे स्वीकार कहते हैं।5।
बस वोट के लिए है ये जनता
इसे आप सरोकार कहते हैं।6
जैसा लिखे बस वैसा ही दिखे
सच्चा कलमकार कहते है।7।


ग़ज़ल - 56  (25.09.19)
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इक बार ज़रा तुम ही सोचकर देखो।
जानना है मेरा हाल तो लौटकर देखो।1। 
खुशी सिर्फ जीतने से ही नहीं मिलती।
अपनों के लिए  कभी हारकर देखो।2।
बात-बात पर आँखें दिखाना ठीक नहीं
दिल जीतना है तो आँखें चार कर देखो।3।
रूठने-मनाने का इक अलग मजा है।
मन से शिक़वे सारे निकालकर देखो।4।
ये गृहस्थी इतनी भी आसान है नहीं
दो दिन बच्चों को संभालकर देखो।5।




ग़ज़ल-55   (22..09.19)
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आंखों के सामने था, खो गया।
शायद मिलेगा दोबारा जो गया।1।
बता क़िस्मत पर तूने  रोया क्यूँ ।
आँसूओं ने लिखा सारा धो गया।2।
माना कि मंज़िल तो करीब  थी ।
यूँ रास्ते पर क्यूँ भला सो गया।3।
अपनी पोल खुद खोल दी उसने
ली थी शायद जियादा हो गया।4।
जो बैठ गए गर यूँ मायूस होकर
समझो सूरज उसका सो गया।5।

गजल-1
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उसके पास जन्नत का सुख है
हमारे लिए आसमाँ और जमीं है।
उसने खोया आँखों का तारा
पर तेरी आँखों में कहां नमीं है?
हम तो भैंसों के खानदान हैं
यहाँ अक्लमंद सिर्फ़ वही है।
तुम तो बस चिल्लाते ही रहो
यहाँ उसका कहना बस सहीं है।
वह डींगे तो बहुत हाँकता है
पूछो तो जवाब में बस नहीं है।
कहा ,सच बोलने के लिए उसे 
जमा उसके  मुँह में दही है।
स्वर्ग-नर्क की बातें फिजूल है नरेन्द्र
सब फैसला तो बस यहीं है।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र)
20.10.18--7.20am

गजल-2
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समाज सेवा से फुर्सत तो निकाला  करो
कभी बूढ़े माँ-बाप को भी वक्त दिया करो।
दुसरो के बनाए रास्ते पर खूब चलते रहे
थोड़ा जोख़िम ख़ुद भी तो लिया करो।
प्रवचन, भाषण और व्याख्यान रोज देते रहे
कभी खुद भी तो अमल किया करो।
मुर्दों की तरह चुप रह गए ऐ बेरहम!
कभी जिन्दों के मानिंद भी जिया करो।
खूबसूरत दुनियाँ में रहने वाले रहनुमाओं
जिंदगी के ज़हर ख़ुद भी तो पिया करो।
लतीफ़े और क़हक़हे सुनाओ मत नरेन्द्र
अच्छा होगा किसी के जख्मों को सिया करो।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र)
20.10.18--10.50am

गजल-3
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तेरी हर शर्तें तो मानी थी मैंने
फिर भी ये तकरार क्यों है?
भुला दी उसने तुझे फिर भी
ऐ दिल! तू बेकरार क्यों है?
चारों ओर नफ़रतों की बाढ़ है
फिर तुझमें इतना प्यार क्यों है?
खड़ा मजबूरियों का दीवार फिर
फाँदने की इतनी दरकार क्यों है?
अजीब है मोहब्बत का ये ढंग
इनकार में भी इक़रार क्यों हैं?
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र)
21.10.18--9.36am

माँ की याद में..........
(हाल ही में 21अक्टूबर,2018 को माँ जी के आकस्मिक निधन पर)
ग़ज़ल-4
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अचानक बिगड़ी तबीयत, सँभल न पाई माँ
हो गए हम निराधार,जब तुम चली गई माँ।1।
पल भर न देख पूछ्ते,कहाँ गई है माँ ?
किसे पुकारे बार-बार, जब तुम चली गई माँ?2
कितना मुश्किल है जीना,तेरे बिन माँ
हुआ दुख अपार, जब तुम चली गई माँ।3।
जीवन के हर मोड़ पर, राह दिखाती थी माँ
जीवन हुआ तार-तार,जब तुम चली गई माँ।4।
आ रही दिवाली पर, तुम  साथ नहीं हो माँ
कैसे मनाएँ त्यौहार,जब तुम चली गई माँ।5।
आँखों में है तैरती, बस तेरी ही तस्वीर माँ
हुआ मन बेज़ार, जब तुम चली गई माँ।6।
कितनी खुशियां-कितना सुकूँ, तेरी आगोश में माँ
लुट गया वह संसार, जब तुम चली गई माँ।7।
नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
24.10.10--12.05 am

गजल-5
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गांधी के रास्ते पर हैं हमारे ये नेता
फिर ये इतने दाग़दार क्यों हैं?
विकास की योजनाएं हालांकि हैं कई
फिर समस्याओं की इतनी अंबार क्यों है?
भूखें ही मर जाते हैं अपने कई लोग
फिर इतनी संपत्ति बेशुमार क्यों हैं?
नौकरियां हैं भरमार उनके आंकड़ों में
फिर आज इतने बेकार क्यों हैं?
स्वच्छता की मुहिम तो खूब चली
फिर गंदगी की इतनी भरमार क्यों हैं?
जनता हो गई है अब नाउम्मीद
आखिर देश में सरकार क्यों है?
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र)
21.10.18--9.36am


पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे बेरोजगार
खेलोगे कूदोगे तो मिलेगा दौलत,शोहरत और रोज़गार।।

स्वागत है आप सबका विदाई की इस बेला में।
आना और जाना सच है इस दुनियाँ के झमेला में।।

भरपुर संपदा जहां धन-धान्य, खनीज और वन ।
संमृद्ध लोकसंस्कृति की धरती छत्तीसगढ़ को नमन।।

ग़ज़ल-6
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अपनो को बंट रही थी रेवड़ी
भाई साब लेने में देर हो गए।1।
घर में चैंपियन बने फिरते थे
बाहर जाकर ढेर हो गए।2।
घूमते थे दुम दबाए जो
अपनी गली में शेर हो गए।3।
सबरी की भक्ति की शक्ति देखो
छप्पनभोग जूठे बेर हो गए।fc4।
हमने जो बोला सच नरेन्द्र
उनके लिए अंधेर हो गए।5।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 11.11.18)

ग़ज़ल-7
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छीन ली हमारी सारी खुशियाँ
जिसके ख़ातिर गम के आँसू पिए।1।
घुट घुटकर मरते ही रहे
ताउम्र जिसके खातिर जिए।2।
हर बेवफ़ाई को स्वीकारा हमने
वफ़ा के नाम पर जो भी उसने दिए।3।
उठा लिया जोख़िम मोहब्बत ख़ातिर
उसके सारे कलंक सर अपने लिए।4।
रात को दिन तो दिन को रात कहा नरेन्द्र
उसकी खुशी ख़ातिर क्या क्या नहीं किए।5।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 12.11.18)

ग़ज़ल-8
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अब रिश्तों की कद्र कहाँ
खुदगर्जी की बाज़ार है।1।
हाथों में हथियार सबके
खाली पड़े औज़ार हैं।2।
जिदों की होती बेईज्जती
इबादत पाते मज़ार है।3।
छोड़कर चली गई ताउम्र के लिए
रोया दिल ज़ार-ज़ार है।4।
जानता हूँ वापस नहीं आएगी
फिर भी इंतिजार है।5।
न जाने होगा क्या नरेन्द्र
आज फिर मन बेज़ार है।6।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 13.11.18)

ग़ज़ल-9
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खुद को नहीं जनता को आजमाते हैं
याद उन्हें हम पाँच साल बाद आते हैं।1।
जो मिली जीत दहाड़ते है शेर से
मिली हार तो मेमने से मिमियाते हैं।2।
रंग बदलना तो कोई इनसे सीखे
इनके आगे गिरगिट भी शरमाते हैं।3।
मख्खन से भरे हैं राजनीति के रास्ते
हर राजनेता को चापलूस ही भाते हैं।4।
वोट के लिए हाथ जोड़े-जोड़े आते हैं
जीतने के बाद बस नजरें चुराते हैं।5।

ग़ज़ल-10
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अक़्ल है साहस है जज़्बा भी है
खड़ा जंग के मैदान में, पर हथियार नहीं है।1।
देश है समाज है परिवार भी है
रहता है तन्हा,दिल में प्यार नहीं है।2।
दौलत है शोहरत है इज्ज़त भी है
ग़म बांट सके,ऐसा सच्चा यार नहीं है।3।
भोले हैं समझदार हैं सच्चे भी हैं
लोगों को बांट दे,हम इतने होशियार नहीं हैं।4।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 16.1118)

ग़ज़ल-11
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ये वक्त नहीं है बिखरने के
तरकीबें हैं हौसला रखने के।1।
यूं न बैठ,कोशिशें कर
ये वक़्त है निखरने के।2।
चल ज़रा संभल-संभलकर
कई रास्तें हैं गिरने के।3।
वक़्त को यूं न ज़ाया कर
आएंगे दिन फिरने के।4।
रहो तो बस मज़े में रहो
ठिकाना कहां मरने के।5।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 22.11.18)

ग़ज़ल-12
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पढ़ लिखकर ख़ूब, अंग्रेजी में बतियाने लगे
बात करने में अपनों से कतराने लगे।1।
बिगड़ने लगी है सेहत मौसम की
पूस में ही हवा गरमाने लगे।2।
वक़्त के साथ कैसे बदला ये मिजाज़
बेटा बाप को ही आज़माने लगे।3।
आस्तिक नहीं स्वार्थ के पूजारी हैं वे
धरम के नाम पर,जो लोगों को भरमाने लगे।4।
पूछे जो उनसे,उनके कामों का हिसाब
बस बातों ही बातों में बहलाने लगे।5।
बाप के पैसों को खर्चने वाला बेटा
ज़िन्दगी से दो-चार हुए तो अकल आने लगे।6।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 13.11.18)
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ग़ज़ल-13
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वे बड़े ही हमदर्द नज़र आने लगे
ये तो बस चुनावी बिसात है।1।

वह ज़बान से ही तारे तोड़ लेता है
उसकी बस इतनी औक़ात है।2।

उसे शेर का मतलब मालूम नहीं
फिर भी कहता,वाह क्या बात है।3।

उजाले से रौशन हैं उनकी रातें
हमारे हिस्से में दिन भी रात है।4।

(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 28.11.18)
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ग़ज़ल-14
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खण्डहर हो गया है मगर शान बाकी है।
यादों में आज तलक वो मकान बाकी है।1।

संभलकर ज़रा नक़ाब है इन चेहरों पर
घूम रहे दरिंदो की अभी पहचान बाकी है।1।

इंसानियत यूं ही होती रहेगी शर्मसार
जब तक ज़िंदा एक भी हैवान बाकी है।2।

जीतेंगे हरेक जंग,बेईमानी के ख़िलाफ़
तेरे मेरे दिलों में जब तक ईमान बाकी है।3।

तुम क्या गई, बहार चली गई
खूबसूरत इस चमन में,बस वीरान बाकी है।4।

हार मान लूँ ,मेरी ये फ़ितरत नहीं
फिर खड़ा होऊंगा, अभी जान बाकी है।5।

(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 29.11.18)

ग़ज़ल-15
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यहां तन्हाई है बस तन्हाई ही तन्हाई है
चाहा जिसे उसकी आज सगाई है।1।
दर-दर भटका और बस भटकता ही रहा
ताउम्र उसने ठोकर ही ठोकर कमाई है।2।
फ़ना हो गया था जिसके इश्क़ में 
क़ातिल है वही निकली हरजाई है।3।
मत पूछो हाल मोहब्बत का है मारा
अब उसके हिस्से में बस तन्हाई है।4।
जिसकी ख़ुशी ख़ातिर बेच दी अपनी ख़ुशी
उसने हमें बस रूलाई ही रूलाई है।5।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र 4.12.18)
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ग़ज़ल-16
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डरे-सहमे जो खुद रहते थे
वही आज हमें डराते हैं।1।
बेचकर सारी शर्मो हया
जाने क्यूँ आज शर्माते हैं।2।
कालिख थी जिनके चेहरों पर
हमें आज आईना दिखाते हैं।3।
बीत जाने के बाद'कल' 
फिर आज नहीं आते हैं।4।
साथ बिताए हर वो पल
अब ख्वाबो में सताते हैं।5।
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ग़ज़ल-17
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छिड़ी है आर या पार करने की बहस
अरे ये तो बस ज़ुबानी जंग है।1।
यकीन ही नहीं होता अब किसी जुमलों पर
अरे ये तो बस सियासी रंग है।2।
मदद के समय नहीं मिलेंगे ये हमदर्द
अरे ये तो बस तस्वीरों में ही संग हैं।3।
मरने का ज़रा भी ख़ौफ़ नहीं इन्हें
अरे ये तो अपनी ज़िन्दगी से ही तंग हैं।4।
बेगुनाह भी साबित होते हैं यहाँ गुनहगार
अरे ये तो फ़ैसले का रिश्वती ढंग है।5।
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ग़ज़ल-18
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कैसे किया होगा यकीन ही नहीं होता
चेहरे से वे तो,बड़े ही मज़हबी दिखते हैं।1।
वहां सड़ते अनाज और भोजन की बर्बादी
बच्चे यहां भूख में तड़पते और विलखते हैं।2।
ज़ुल्म हुआ तेरे साथ,ये तो होना ही था
रोज़ सियासतदानों की करतूतों पर लिखते हैं।3।
तारीख़ें तो बदलती रही,पर हादसे नहीं बदले
इन हादसों से आख़िर क्यों नहीं सीखते हैं।4।
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ग़ज़ल-19
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थोड़ा चैन की सांस तो लिया करो
सिवाय बोलने के कुछ तो किया करो।1।
हर वक़्त अपने में मसरूफ़ रहते हो
कभी याद हमें भी  तो किया करो।2।
जुबां से नहीं कह सकते गर
इशारा आँखों से  तो किया करो।3।
कदम चूमेगी क़ामयाबी भी मग़र
मन से ज़रा कोशिश तो किया करो।4।
करते हो दूसरे का हौसला अफ़जाई
थोड़ा हौसला ख़ुद भी तो किया करो।5।

ग़ज़ल-20   (18.12.18)
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गुजरा वो पल, पल-पल याद आने लगे
आसमान में जब तारे टिमटिमाने लगे।1।
लोग मरने लगे बला की उस खूबसूरती पर 
चमन में ख़ुद पर, फूल भी शरमाने लगे।2।
लोग पहचाने भी नहीं,वो गर्दिशों के दिन थे
चार पैसे क्या आ गए,फिर आने-जाने लगे।3।
दहशत, मौत उसके लिए साधारण बात थी
आई ख़ुद की बारी तो गिड़गिड़ाने लगे।4।
वह मौन साधे बैठा रहा,लोग चिल्लाते रहे
जब लोग मौन हुए तो ख़ुद बड़बड़ाने लगे।5।
देखो ज़रा, बेमौसम ये कैसी बरसात आ गई
गड़बड़ देख हमें यहां,मौसम भी गड़बड़ाने लगे।6।

ग़ज़ल-21  (18.12.18)
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यहां कहीं भी आग नहीं,सिर्फ़ धुँआ ही धुँआ है
बुझी पड़ी हैं मशालें, पर जलते लोग हैं ।1।
खाना नहीं उस दिन होता है रोज़ा और उपवास 
महज़ दो रोटी के लिए बिलबिलाते लोग हैं।2।
मंदिर-मस्जिद कुछ नहीं, है मज़हबी सियासत 
मज़हब के नाम पर ख़ून बहाते लोग हैं ।3।
अमिट दास्तां है, सरज़मी हिंदुस्तान की 
यहां अपने मुक़्क़द्दर  पर इतराते लोग हैं।4। 
मिला ईमानदारों को ईमानदारी का ऐसा उपहार 
ईमानदारी से भी अब घबराते लोग हैं।5।

ग़ज़ल-22   (20.12.18)
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किया सब तेरे कहने पर
मुझे अब यूं दोषी न बना।1।
है ज़न्नत यह धरती
इसे अब यूं जहन्नुम न बना।2।
कोई काम होता नहीं तुमसे 
अब हजार यूं बहाना न बना।3।
रहने दे आदमी को आदमी 
पूजकर यूं देवता न बना।4।
इश्क़ में भूल जाऊँ औरों को
इतना भी दीवाना न बना।5।
थाम लो ज़रा होश का दामन
घर को यूं मयख़ाना न बना।6।
आएंगे काम किसी मोड़ पर
अपनों को यूं पराया न बना।7।

ग़ज़ल-23  (22.12.18)
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कोई बुरा मान जाए कभी ऐसा काम न करो
ये लोग हैं,पर्दे में करो इस तरह सरेआम न करो।1।
जो हकीकत मेरी है इसमें कुछ-कुछ तेरी भी  है
अकेले बस मुझे ही इस तरह बदनाम न करो।2।
ख़ुशी हो या हो गम, बस एक ही यार है सच्चा
साक़ी पीने भी दो इस तरह ख़ाली जाम न करो।3।
कर लो, जितना करोगे  मिलेगा बस उतना ही
बड़े तेज़ है वक़्त के पाँव इस तरह आराम न करो।4
इश्क़ से बढ़कर दूसरा, कोई मज़हब ही नहीं होता
यारों इश्क़ में कभी  अल्लाह या राम न करो।5।

ग़ज़ल-24  (23.12.18)
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ये जिस्म तो होगा  पर दम न होगा
साथ तुम रहो, कोई गम न होगा।1।
आने न दो मोहब्बत में कोई दरार
बढ़ गए फ़ासले,फ़िर कम न होगा2।
हमेशा करो ख़ुद पर इतना ऐतबार
अपनों पर कभी फ़िर वहम न होगा।3।
ग़लती बेशक़ करो पर ज़्यादती न करो
रहमदिलों से भी फ़िर रहम न होगा।4।
काम छोड़ जो भागेगा मेहनत से दूर
साथ उसके कभी फ़िर करम न होगा।5।

ग़ज़ल-25   (26.12.18)
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छोटी-छोटी बातों पर इस तरह बवाल न करो
समाधान भी बताओ केवल सवाल न करो।1।
लाज़िमी है ख़ुशी और ग़म ज़िन्दगी के दौर में
गुज़रे उन लमहों पर इस क़दर मलाल न करो।2।
दिल में गर सच्ची मोहब्बत है  माशूका के लिए
ख़ुद करो इश्क़ का इज़हार,क़भी दलाल न करो।3।
मज़हब के आड़ में हत्या को जायज़ ठहराने वालों
अपने स्वाद के लिए बेजुबानों का यूं हलाल न करो।4।
मिली है जो नियामत उस पर बेफिक्री से गुज़र करो
ज़रूरत से ज़ियादा जोड़ने का यूं जंजाल न करो।5।
धरती छोड़कर  चांद पर रहने की ख्वाहिश है तेरी
अपनों से बेगाने हो जाओ,इतना भी कमाल न करो।6।


ग़ज़ल -26        (31.12.18)
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बरक़त  पर ख़ुद की पीठ थपथपाता है आदमी।
मुफ़लिसी में ख़ुदा को दोषी ठहराता है आदमी।।
मिले तारीफ़ और इनाम पर ज़ियादा ख़ुश मत होना
इक ग़लती पर, सौ-सौ सवाल उठाता है आदमी।।
रोजमर्रा की हालातों से जूझना आसान नहीं होता।
मौत से ज़ियादा जिन्दगी से घबराता है आदमी।।
ये करूँ की वो करूँ,फैसलों की कश्मकश है जिंदगी।
दो-दो जोड़ने के फ़ेर में,चार-चार लुटाता है आदमी।।
वक़्त भी है और पैसे भी है सैर-सपाटों के लिए।
बुजुर्गों के लिए ज़रा-सा ख़र्चने में जीचुराता है आदमी।।
सर पर भारी-भारी गट्ठे नहीं, है मजबूरियों की पोटली ये।
वरना ख़ुद का ही सामान उठाने में शरमाता है आदमी।।
यहां-वहां से नकारा  जब हो जाता है आखिरकार।
सियासत में फिर क़िस्मत  आज़माता है आदमी।।
कब से तलाश रही है रोशनी,अंधेरो से भरी ये आंखें।
उजाला मांगने पर आंखों को चौंधियाता है आदमी।।
वो आते-जाते मिलते थे,वो उनके गर्दिशों के दिन थे।
दिन फिरने के बाद  अपनों से कतराता है आदमी।।
अब यकीं नहीं होता मुहब्बत के किसी भी वादों पर।
पहले क्यूँ अपनाता है फिर क्यूँ ठुकराता है आदमी।।
(नरेन्द्र कुमार कुलमित्र)

ग़ज़ल-27   (07.01.19)
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आसमान यूं कभी झुकता नहीं
और ये वक्त कभी रुकता नहीं।1।
अचानक मुसीबत के आने पर 
तरक़ीब कोई भी सुझता नहीं।2।
बड़ी बेबसी है उम्र के ढलान पर 
हालचाल अब कोई पूछता नहीं।3।
चढा है इश्क़ का बुखार जब से
खाने में मन  कभी रुचता नहीं।4।
बड़ी कमज़ोर पड़ गई हैं आतें
अब तो पानी भी पचता नहीं।5।

गज़ल-28   (08.01.19)
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समय पर तुम कभी आते क्यों नहीं 
दर्द अपना हमें बतलाते क्यों नहीं।1।
तुम्हें घमंड है  अपने बड़े होने का
फिर बड़प्पन अपना दिखलाते क्यों नहीं।2।
सच तो तुम  बोल ही नहीं पाते
फिर झूठ बोलने में हकलाते क्यों नहीं।3।
माना तेरी नजरों में नाचीज़ हैं हम
ख़ुदा से ही सहीं  घबराते क्यों नहीं।4।
कितने हो बेदाग़ तुम्हे भी पता चलेगा
आईने के सामने कभी जाते क्यों नहीं।5।
गैरों के लिए कहते हो जिसे शर्मनाक तुम
ख़ुद ऐसी हरकतों से शरमाते क्यों नहीं।6।
असली मज़ा है दिलों से फ़र्क मिटाने में
इस मंत्र को कभी आजमाते क्यों नहीं।7।

ग़ज़ल-29    (11.01.19)
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जरूरत में बुलाने पर आते नहीं कोई
पूछने पर रास्ता बताते नहीं कोई।1।
गुज़रे जिन रास्तों से शहीदे आज़म
उन रास्तों से अब गुज़रते नहीं कोई।2।
कहां खो गईं मुस्कराहटें और क़हक़हे
हो मातम तो भी अब रोते नहीं कोई।3।
अब रात में ही होने लगे हैं सारे काम
सुबह सूरज के साथ जागते नहीं कोई।4।
इससे अच्छा तो बेजुबान ही होते हम
अब जुबां की बात समझते नहीं कोई।5।

ग़ज़ल-30   (13.01.19)
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ठीक वक़्त में सूरज निकलता है गांव में
आज भी दिन धीरे-धीरे  चलता है गांव में।1।
दिनभर लगातार कड़ी मेहनतों के बाद
आख़िरकार चूल्हा जलता है गांव में।2।
यहां न तो बाग-बगीचे  न ही सैर-सपाटे 
बस अपनों के बीच मन बहलता है गांव में।3।
छुट्टियों में शहर से अपने घर लौटने पर
दिल को बड़ा सुकूंन मिलता है गांव में।4।
अज़नबी भी पल में  अपने हो जाते हैं
दिलों मेंआज भी इतनी सरलता है गांव में।5।
चारों ओर फैली हुई हैं रंजिशें शहर में
एक विश्वास आज भी  पलता है गांव में।6। 

ग़ज़ल-31 (17..1.19)
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 बस सब्र कर फिर से वही सेहत मिलेगी मेरे भाई
कड़ी इम्तिहान के बाद फिर राहत मिलेगी मेरे भाई।1।
ये दुख ये पीड़ा गुज़रे  हुए दिनों में सिमट जाएंगे 
दूर नहीं वो वक्त जब सारी चाहत मिलेगी मेरे भाई।2।
पलकों में ही थाम लेना बहते हुए आंसूओं के धार को
बाहें फैलाई खुशी सहीं सलामत मिलेगी मेरे भाई।3।

ग़ज़ल-32    (26.01.19)
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तितलियां चलीं गईं  बाग में बागबाँ नहीं है।
उड़ना चाहती है चिड़िया पर आसमाँ नहीं है।1।
है वो कौन सी मूरत और किसकी करूं इबादत 
घर के  इस मंदिर में अब कहीं भी  मां नहीं है।2।
किसी की न हुई  बैरी जिंदगी आज तलक
मौत से खूबसूरत और कोई रास्ता नहीं है।3।
रिश्ते निभाना तो क्या खूब  आता है उन्हें
सिवाय खुशी के गमों से कोई वास्ता नहीं है।4।

ग़ज़ल-33  
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मसला इश्क का कभी सुलझता नहीं।
ये बात हाले दिल कभी समझता नहीं।1।
रास्ता आगे का उसे बिलकुल नहीं पता 
फिर भी  कभी एक बार वो पूछता नहीं।2।
जिसके लिए हम फिक्रमंद हैं दिन-रात 
वह हमारे लिए कभी सोचता नहीं।3।
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ग़ज़ल-34   एक पिता का दर्द (27.1.19)
ताउम्र जिसे संवारा मैंने।
सुना नहीं जब पुकारा मैंने।1।
मर मरकर कमाया जो भी  
बांट दिया वो सारा मैंने।2।
माना नहीं  एक भी बार
किया जो उसे इशारा मैंने।3।
किया तिरस्कार जी भरके
बचपन मे जिसे पुचकारा मैंने।4।
करता है हंगामा  हर बार
जब भी उसकी बात नकारा मैंने।5।
हर बार उसकी खुशियों के खातिर
बस अपना मन है  मारा मैंने।6।
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ग़ज़ल-35   (29.01.19)
मैं तुमसे और तुम मुझसे कभी जुदा नहीं
सज़दा करता हूँ रोज पर तुम खुदा नहीं।1।
हर अदाएं फीकी है मासूमियत पर तुम्हारी
अदाओं की फ़ेहरिस्त में ऐसी कोई अदा नहीं।2।
देखकर आलम-ए-हुस्न में  ये सादगी तेरी
एक भी तो बता इस जहां में जो फ़िदा नहीं।3।
अब डूब भी जाने दो शराब -ए-इश्क के नशे में
देख लो मेरे हाले दिल में अब कोई परदा नहीं।4।
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ग़ज़ल-36     (30.01.19)
इत्मीनान से सुने ऐसा कोई तो होगा
सुनकर समझे ऐसा कोई तो होगा।1।
ऊब चुका हूँ मैं अब उन सवालों से
फिर न पूछे ऐसा कोई तो होगा।2।
टूट चुकी है सारे  संबंधों की माला
आ फिर जोड़े ऐसा कोई तो होगा।3।j 
वही वही फिर वही वही किया सबने
वही फिर न करे ऐसा कोई तो होगा।4।
जब मैं तड़प जाऊं किसी के लिए
मेरे लिए तड़पे ऐसा कोई तो होगा।5।
फ़सानो में हकीकत का रंग भर दूं गर
मिल जाए मुझे ऐसा कोई तो होगा।6।न
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ग़ज़ल-37         (5.1.19)
पुराने रास्तों से   जब हम गुजरने  लगे
भूल गए थे जो वो फिर याद आने लगे।1।
यादों से उतर गया था उस नगमे का बोल
न जाने क्यूं आज फिर गुनगुनाने लगे।2।
मुहब्बत में घुली  वही आवाज सुनकर
आगे बढ़ते-बढ़ते पांव फिर रुकने लगे।3।
दिलो दिमाग में छाने लगी फिर वही यादें
लगा कि जैसे  वक्त वापस आने लगे।4।
यादों में ये इश्क की करामात तो देखिए
बयाबाँ दिल में  भी जज्बात भरने लगे।5।

ग़ज़ल-38 (10.02.19)
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लौट के फिर  घर आऊँ ये जरूरी तो नहीं
निकला हूँ सफ़र में कहीं आख़िरी तो नहीं।1।
आजाद मुल्क का आजाद फनकार हूँ मैं
सिर्फ़ तारीफें ही लिखूं ऐसी मजबूरी तो नहीं।2।
कह भी दो अब तुम अपने मन की बातें
आख़िर तेरे मेरे दरम्यां इतनी दूरी तो नहीं।3।
इज़हारे मोहब्बत में क्या दिन और रात क्या
दौलते इश्क से बढ़कर कोई अमीरी तो नहीं।4।
हिन्दू मुसलमा के भेद  आज भी है कबीर !
पोशाक है मजहबी पर कहीं फ़कीरी तो नहीं।5।

ग़ज़ल-39      (28.02.19)
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रिश्तेदारों के बीच में अब तन्हा-तन्हा लगता हूँ
उनकी नज़रों में अक़्सर ख़फ़ा-ख़फ़ा लगता हूँ।1।
बदनाम हुआ सारे जहां में जिसकी वफ़ा के खातिर
यारों उनकी नज़रों में आज भी  बेवफा लगता हूँ।2।
यतीमों, मजलूमों की भरी है आवाज़ इन शेरों में
गुजरते हैं उनके लिए बस आम रास्ता लगता हूँ।3।
मेरे मशविरे के बाद लेते थे हर फैसले अब तलक
क्या करूं खयालों में उन्हें अब पुराना लगता हूँ।4।
है कश्मकश बोलूं तो किसे और सुनेगा भी  कौन
बेबस शोर में डूबा हुआ  एक सन्नाटा लगता हूँ।5।

ग़ज़ल
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वे धंधे के लिए अपना ईमान बेचते  हैं ।
हम ईमान के लिए अपना मकान बेचते हैं।1।
हम चाहते हैं कि तुम यूं ही सलामत रहो
तेरे लिए अपना साजो-सामान बेचते हैं।2।
तेरे कहने से ही लगाया था ये दुकान मैंने।
तुम कहो तो ये दुकान बेचते हैं।3।


ग़ज़ल -40  (11.04.19)
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दूसरे के किए गरम तवे पर रोटी सेकना छोड़ो।
दहाड़ो भी कभी गदहे की तरह रेकना छोड़ो ।1।
हर कदम पर क्यों कोसते हो अपनी तक़दीर को
बाँह पकड़ मेहनत की यूं तलवे चाटना छोड़ो।2।
कामयाबी ख़ुद बयां करती है किसी के हुनर की
आदतन सरेआम इस कदर शेखी बघारना छोड़ो।3।
तोहमत लगाने से पहले खुद की गिरेबाँ देख लो
कीचड़ में रहकर व्यर्थ की कीचड़ उछालना छोड़ो।4।
खुद तो गहरी नींद में हो दूसरों को क्या जगाओगे
ख़ुद जागे बिना यूं ही थोथा बांग लगाना छोड़ो ।5।


ग़ज़ल-41 
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हालांकि वहाँ खुशियों से भरा एक मेला है।
भीड़ के बीच में  वह एकदम अकेला है।1।
आना-जाना, लेना-देना और ये रिश्ते नाते
ज़िन्दगी के नाम पर फ़क़त झमेला है ।2।
उसूलों के लिए जिया,मरा उसूलों के लिए
सच में यारों आदमी वह बड़ा अलबेला है।3।
गुनाहों का असर या कहो क़िस्मत का खेल
था पांच सितारा होटल जहां आज ठेला है।4।

ग़ज़ल -42
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न जाने  क्यूं  इतना मजबूर है तू
नहीं पता ख़ुद से कितना दूर है तू।1।
न सूरत और न ही सीरत है तेरी
बता फिर इतना क्यूँ मगरूर है तू।2।
ज़रा पूछकर देखो कभी आईने से
फिर बताना मुझे कि हूर है तू ।3।
जो भी हूँ तेरी दुआवों का असर है
मेरी अंधेरी दुनियां में वो नूर है तू।4।
तेरी अदाओं की बात है निराली
होश उड़ा दे वो सुरूर है तू ।5।











ग़ज़ल-43   (11.05.19)
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आँखों में नींद नहीं भला कैसे सोया होगा
था गम से भरा दिल रात भर रोया होगा।1।
छीन ली जिसने गैरों की जिंदगी से रोशनी
तय मानिए उसके जीवन में भीअंधेरा होगा।2।
भूल गया हूँ जिक्र न करो उन बातों का
छोड़ो रहने भी दो फिर वही बखेड़ा होगा।3।
वक्त के साथ खुद को भी बदल लो वरना 
हश्र जो हुआ उसका वही हश्र तेरा होगा।4।
ये जमी और ये बेशुमार ज़ायदाद है आज
तुम्हें नहीं पता ये सब कल किसका होगा।5।
अपने रुतबे और शोहरत पर यूं न कर ग़ुरूर
रुखसत होने के बाद कोई न अपना होगा।6।





ग़ज़ल-44  (11.5.19)
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आफ़ताब!आखिर और कितना बरसाएगा शोले
अरे इतनी गरमी भी ठीक नहीं जरा ठण्डा हो ले ।1।
बदल दे फ़ितरत किसी की तेरी तासीर है ऐसी
बच्चे तो बच्चे बुड्ढे भी खा रहे हैं बरफ़ के गोले।2।
यहाँ-वहाँ चारों ओर छाया बस तेरा ही आतंक है 
आतिशी से न बच सकेगा कोई तुमसे पंगा जो ले।3।
तप रही धरती तप रहा है गगन सूरज की आग से
ढंककर चलना झुलस जाएंगे मुखड़ा जो अपना खोले।4।
प्यासे जन प्यासे ढोर प्यासी नदियाँ प्यासे हैं तालाब 
बेचैन छांव बिस्तर खोजे चैन की नींद थोड़ा सो ले।5।

ग़ज़ल 45  (14.05.19)
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ऐ माँ! मेरे सर पर तेरा आँचल हो
मेरी शकल पर तेरी शकल हो।1।
ख़ता इतनी तारीफ़ नहीं की तेरी
रूठे-रूठे लगते आजकल हो।2।
इश्क़ में तेरे मिला मुझे ये तमग़ा
कहती है ये दुनियां पागल हो।3।
यार यूं न आग को घी से मिला
जियादा नहीं इतनी तो अकल हो।4।
दुआ है  रहमतों की हो बारिश 
दर पर तेरे बरकतों की फ़सल हो।5।
है ये अहसासों की महक प्यारी  
क हते  जिसे तुम   ग़ज़ल हो ।6।

ग़ज़ल- 46
--------------------------------------------------/
ये कौन है जो मेरे  सामने ऐसे  खड़ा है।
हटता भी नहीं किसी जिद्द पर अड़ा है।1।
भले ही छोटा हो गया है आदमी का कद
देखो तो उसका अहंकार कितना बड़ा है।2।
मुकाबला कड़ा है

ग़ज़ल-46
--------------------------------------------/
इस दुनियां में सब कुछ नकल लगता है
बस मुसीबतों भरी ज़िन्दगी असल लगता है।1।
मक्कारों और फरेबियों के बीच इक शरीफ़
जाने क्यूँ लोगों को कमअकल  लगता है।2।
गहरे घाव भर जाते हैं  वक्त के मरहम से
हादसे भी इक दिन गुजरा  हुआ कल लगता है।3।
जो चले गए जीने मरने के वादों के साथ 
अहसासों में आज भी करीब हर पल लगता है।4।
कोई फ़र्क कैसे करें  भला इन चेहरों में
जो भी मिलता है  हमशकल लगता है।।5।

ग़ज़ल-47
----------------------------------------------/
तड़पा चुके  बहुत अब और तड़पाओ न।
अरसा हो गया मिले जल्दी घर आओ न।1।
मुद्दतों से नहीं देखी आँखों की फरमाइश 
एक बार फिर उन्हीं इशारों से बुलाओ न।2।
तेरे दिए नसीहतों पर बेशक़ चल पड़ा हूँ मैं
उन नसीहतों को  ख़ुद भी अपनाओ न।3।
जल रहा हूँ तेरी यादों के साथ इस तन्हाई में
बेरूखी भरी अपनी बातों से यूँ जलाओ न।4।











ग़ज़ल-48
-------------------------------------------/
मौत ने दस्तक दी और  तुम बेख़बर सो रहे
इलाज के सारे तरीके तुम पर बेअसर हो रहे।1।
हम भाइयों में लगते थे तुम ही सबसे चंगे भले 
मर्ज ऐसा हुआ कि मौत को लगा लिया गले।2।
तू बता ज़रा अपने सारे सपने कैसे छोड़ दिया
खुद भी अधूरे और हमें भी अधूरा छोड़ दिया।3।
जीवन तुझे रास न आया जो यूं मुख मोड़ लिया
इतने दगाबाज थे तुम,सारा रिश्ता तोड़ लिया।4।
नियम तोड़कर, दिल तोड़कर  ऐसे क्यूँ चले गए?
दुनिया में आए पीछे  फिर आगे क्यूँ चले गए?।5।












तेरे संग बिताए एक-एक पल 



बेख़ौफ़ तुमने मौत को लगा लिया गले





ग़ज़ल-49
----------------------------------------------/

सरकारें तो हैं पर कहीं सरोकार नहीं
सच का साथ दे ऐसा कोई पैरोकार नहीं।1। 
दे जाए सुबह-सुबह कुछ सच्ची खबरें
मिलता ऐसा कोई अखबार नहीं ।2।
मिलेंगे बेशुमार ऐशोआराम की चीजें 
खरीद लो सुकून ऐसा कोई बाज़ार नहीं।3।
गर चाहते है शख्शियत को आकार देना
मेहनत से बढ़कर दूसरा कोई औजार नहीं।4।
गर राहे मंजिल ना मिले तो निराश न होना
पाने की  कोशिश कोई भी  बेकार नहीं।5।
ठीक नहीं वादा करके यूं मुकर जाना 
काठ की हांडी चढ़ती बार-बार नहीं।6।




हिन्दी गजल-50
--------------------------------------------/
अगर किसी का मन शुद्ध है
हर उस आदमी में बुद्ध है।1।
भ्रांतियों से  भरा हो  मन
समझो रास्ता अवरुद्ध है।2।
होता दमन, मिटता अमन
जब-जब होता युद्ध है।3।
होता ज्ञान का शीघ्र विनाश
जब मन में भरा भाव क्रुद्ध है।4।
जो सम हो हर सुख-दुख में
होता वही सच्चा प्रबुद्ध है।5।


ग़ज़ल-51(24.07.19)
------------------------------------------------/
तन्हा बैठा हूँ इंतिजार में तुम कहाँ हो
पतझड़ आ गई  बहार में तुम कहाँ हो।1।
नित तरसे और बरसे  ये  नैन हमारे 
इक बार आओ दीदार में तुम कहाँ हो।2।
रहता हूँ बेचैन और मायूस शाम ओ सहर
तेरी यादें हैं इसी दीवार में तुम कहाँ हो।3।
संग जीने औ मरने के उन वादों का क्या
हूँ अकेला रिश्तों के बाज़ार में तुम कहाँ हो।4।
मरके भी भूलूँगा नहीं वो नाम तुम्हारा
पुकारूँगा हमेशा मजार में तुम कहाँ हो।5।

नीयत नहीं है साफ, जाने दो
एक दिन होगा इन्साफ़,जाने दो।


ग़ज़ल-52  (01.08.19)
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फूल भी दोबारा कभी  खिलकर नहीं मिलते
वक़्त के परिन्दे  कभी लौटकर नहीं मिलते ।1।
फोन पर जो मिलने की बात करते हैं अक़्सर
मिलने पर कभी दिल खोलकर नहीं मिलते।2।
छेड़ न दूँ कहीं उनकी दुखती रग की बातें
बस इतनी सी बात पर डरकर नहीं मिलते।3।
सम्भालकर रखना बेशकीमती रिश्तों की पूँजी
बने रिश्ते कभी इक बार खोकर नहीं मिलते।4।
मेहनत कर ले  क़िस्मत भी साथ रहेगी तेरे 
तक़दीर में लिखे हुए कभी रोकर नहीं मिलते।5।
आभार उन्हें भी जिसने दी हर मोड़ पर ठोकरें
यूँ सम्भलते भी नहीं जब ठोकर नहीं मिलते।6।


इंतक़ाम तेरा

अंजाम मेरा।1।
सरेआम तेरा
अंजाम मेरा।2।
इल्ज़ाम तेरा
अंजाम मेरा।3।
इंतिजाम तेरा
अंजाम मेरा।4।
ये काम तेरा
अंजाम मेरा।5।
ये नाम तेरा
अंजाम मेरा।6।

ग़ज़ल- 53     
--------------------------------------------------/
शहर में कितनी बढ़ गई है घुटन हवा ज़रा आने दो।
अब पतझर-सा लगे हैं सावन हवा ज़रा आने दो।1।
न हरियाली न तीतली न ही परिन्दे हैं कहीं पर
उजड़ा-उजड़ा लगता है चमन हवा ज़रा आने दो।2।
गरम तवे की मानिंद लग रहे हैं ये जमीं ये आसमाँ
कितना जल रहा है तन-बदन हवा ज़रा आने दो।3।


ग़ज़ल-54
-------------------------------------------------/
तुम हो तो है खुशी, तुम हो तो गम है।
सबब तुम ही हो जो यूँ आँखे नम है।1।
तकलीफ़े यहां कुछ भी तो और नहीं 
बस तुम हो नहीं यही क्या कम है।2।
कभी रुलाती है,कभी हँसाती भी है
तेरी यादों का सिलसिला हरदम है।3।
लौट आओ इक बार आरजू है मेरी
करूँगा इंतजार   जब तक दम है।4।
ये तन्हाई और दर्द का आलम ये
सहते हैं सब हँसकर ये तो हम हैं।5।














 

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