Monday 14 September 2020

स्त्री हो तुम !

स्त्री हो तुम ! -13.09.2020
-------------------------------------/
तुम्हारे न होने से
सूख जाती है मेरी भावनाओं के स्रोत

धीरे-धीरे 'काल' लगने लगता है समय

मुरझा जाता हूँ मैं
जैसे जड़ों को पानी न मिलने पर
डगालें और पत्तियाँ मुरझा जाती हैं

जड़ों के बिना 
आख़िर जितना भी डालो
बाहरी धूप,हवा,पानी और खाद
सारे उपाय व्यर्थ ही साबित होते हैं

नदी की तरह
हम अपने स्वार्थ के लिए 
रोकते हैं तुम्हें

बाधित करते हैं
तुम्हारा अविरल प्रवाह

घृणित मंसूबों से
हमेशा गंदलाते हैं तुम्हें

जमाने भर की कालिखों को उजलाती
कूड़ों को किनारे फेंकती
दागों-धब्बों को पचाती
मुड़ती,गिरती,राह बदलती
तन्मय बहती जाती हो तुम
स्त्री हो तुम !

--- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
     9755852479

No comments:

Post a Comment