बस लिखते ही जाना है -31.08.2020
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जो भी जैसे भी भाव या विचार
आएंगे जब भी
कलम उठा
लिखूँगा हर बार
सोचूँगा नहीं शब्दों के बारे में
वाक्यों के बारे में
व्याकरण के बारे में भी नहीं
जो भी जैसे भी लिखूंगा
वही होगी मेरी असली कविता
उन्हीं शब्दों में उन्हीं वाक्यों में
दिखेंगे महसूस होंगे मेरे सारे भाव
मेरे भीतर प्रवाहित प्रेम और करूणा
भोगे और महसूसे हुए सारे दुख-दर्द
प्रतिकार स्वरूप भीतर उट्ठे हुए आक्रोश
बस ज्यों का त्यों दर्ज कर सके
लिख्खे हुए सारे शब्द मेरे
बस इतना ही तो चाहता हूँ मैं
वैसे भी आलोचकों की कमी नहीं
घिरा हूँ आलोचकों से चारों ओर
मुझे कतई चिंता नहीं व्याकरण की
सुधार ही लेंगे वे व्याकरण और रचना के सारे दोष
मैंने तो इतना ही ठाना है
शब्दों के फेर में तनिक भी पड़े बिना
बस लिखते ही जाना है...
बस लिखते ही जाना है...।
--- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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