Tuesday 18 August 2020

तोड़े हुए रंग विरंगे फूल

तोड़े हुए रंग-विरंगे फूल 18.08.2020
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टीप-टीप बरसता पानी
छतरी ओढ़े
सुबह-सुबह चहलकदमी करते
घर से दूर सड़कों तक जा निकला
देखा--
सड़क के किनारे
लगे हैं फूलदार पौधे कई
पौधों पर निकली हैं कलियाँ कई
मग़र कहीं भी
दूर-दूर तक पौधों पर 
खिले हुए फूल एक भी नहीं
सहसा नजरें गई
नहाए न धोए
फूल चुन रहे पौधों से 
महिला-पुरुष कई-कई
वही जो कहलाते आस्तिक जन
रखे हुए हैं झिल्ली में 
तोड़े हुए रंग-विरंगे फूल 
देखा मैंने--
कलियाँ थी सहमी-सहमी
पौधे भी थे सहमे-सहमे
याद हो आया तत्क्षण मुझे
अज्ञेय की कविता
"सम्राज्ञी का नैवेद्य दान''
फूलों को डाली से न विलगाना
महाबुद्ध के समक्ष
सम्राज्ञी का रीते हाथ आना
सोचा फिर--
मैले,अपवित्र हाथों से अर्पित
तोड़े हुए निस्तेज फूलों से
भला कैसे प्रसन्न होते होंगे
अक्षर-अखण्ड देव ! प्रभु !!

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
     9755852479

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