Tuesday 9 June 2020

मेरी आदतों में है मेरी माँ

मेरी आदतों में हैं मेरी माँ - 01.05.2020
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यूँ तो माँ को याद करने के लिए
कोई बहाने नहीं चाहिए
रग़ों में दौड़ता ख़ून
और ख़ून में शामिल माँ का प्यार
केवल यादों का सिलसिला नहीं 
बल्कि जादुई तरल माध्यम है
जो जिस्म के हरेक छोर पर बहते हुए
हरपल माँ की मौजूदगी का बोध कराता है

माँ इस दुनियां से कूच करने से पहले
अपनी कुछ भली-बुरी आदतें
मुझे सौंपकर चुपचाप चली गई

जब-जब माँ खाना खाने बैठती
अपने पहले-दूसरे कौर से ही
हिचकने लगती थी
खाना लगने से पहले ही
वह माँगती थी
गिलास भर पानी
ताकि हिचकी आते ही पानी पी सके
उसे अपनी कमजोरी पर अटूट विश्वास था
हिचकी आने और पानी न होने की स्थिति में
वह बेचैन हो उठती थी

माँ से मैं कहता था--
"माँ तुम्हें इतनी हिचकी क्यों आती है..?"
वह हर बार निरुत्तर होती थी

खाने के बाद
चाहे हो दोपहर या हो रात
पलंग पर लेटते ही खर्राटे भरने लगती थी
रात की नींद में कई बार
बर्राने लगती थी
बर्राने की वह आवाज़ समझ से परे 
और बिलकुल अर्थहीन होती थी
सुबह बर्राने का वज़ह पूछने पर
देखे हुए कुछ सपने बताती थी

माँ अब चली गई है
पर सौंप गई है मेरे पास
खाने के पहले-दूसरे कौर पर हिचकी लेने
सोते ही खर्राटे मारने
और नींद में बर्राने की अपनी वह आदत

आज मुझे भी अपने बच्चों से
उन्हीं सवालों से जूझना पड़ता है
जिन सवालों से मेरी माँ जूझती थी

जब मेरे बच्चे मुझसे पूछते हैं
पापा आपको खाने के 
पहले-दूसरे ही कौर में हिचकी क्यों आने लगती है ?
सोते ही खर्राटे क्यों मारने लगते हो ?
अक़्सर रात की नीदों में बर्राने क्यों लगते हो ?
माँ की तरह मैं भी
अपने बच्चों के सवालों में
निरुत्तर हो जाता हूँ
पर हर बार अपने बच्चों के सवालों को सुनकर
अपनी माँ की यादों से भर जाता हूँ।

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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