कश्मकश ! 17.07.2020
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घर से निकलने की कश्मकश
अगर निकल गए घर से
फिर
जैसे निकले थे वैसे ही आ पाने की कश्मकश !
अनबोले तो नहीं
पर मुँह खोले भी नहीं
एक लफ़्ज बोले जाने की कश्मकश !
मिली खौफ़जदा नजरें परस्पर
पर खुले नहीं दिल
दिल खोले जाने की कश्मकश !
रीते-रीते से हुए हम
और रीती-रीती सी हुई दुनियाँ
बेबस चेहरे
पाबंद-जिंदगियां
मिलकर खुशियां मना लेने की कश्मकश !
हैं पैसे
पर खर्चे नहीं
खर्चें हैं
मग़र कमाने का ज़रिया नहीं
धुंधले-धुंधले हैं सारे रास्ते
आगे एक कदम बढ़ाने की कश्मकश !
दुश्मन है अदृश्य
सारे सपनों को घेरे
वक्त है बहुत
मग़र अरमान अधूरे-अधूरे
अब कहो मत 'बी-पॉजिटिव'
मन में पॉजिटिव हो जाने की कश्मकश !
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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