तुम सच थे या सपने ! 19.07.2020
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ओ मेरे अपने
तुम सच थे या सपने
चलेंगे साथ-साथ
रहेंगे साथ-साथ
जिएंगे साथ-साथ
दुहराए हम कितने बार
तुम्हारी धड़कनें रुकी अचानक
तुम्हारी साँसें टूटी अचानक
तुम्हारे वादे टूटे अचानक
पास थे,दूर हुए अचानक
पल में इतिहास हुए अचानक
अब सारे सच सपने लगते हैं
समझ नहीं आता
आखिर सपने क्यूँ इतने सच और अपने लगते हैं..?
-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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