Friday 2 October 2020

नाम के धरती पुत्र !

नाम के धरती पुत्र !  25.09.2020
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अरे नाम के धरती पुत्र !
तू बता धरती कहाँ है तेरे पास..?
अरे अभागा !
तेरी मेहनत और पसीने की कमाई सबको मिलती है
बस तुम्हे ही नहीं मिलती
तू खुद को धरती का बेटा मानता है
तू इस धरती का वारिस भी नहीं फिर बेटा कैसा..?

ठेकेदारों की निलामी में
बिचौलियों से भरे बाज़ार में
तुम्हारी फसलें नहीं बिकती
बल्कि सरेआम नीलाम होती है तुम्हारी मेहनत
और तेरी खून-पसीने की कमाई

राजस्व वसूली और कानूनी पचड़ों के तंग रास्तों में
ख़त्म हो जाती है तुम्हारी किंचित जमा पूँजी
ताउम्र कर्ज़ के पहाड़ में दबते-दबते
चकनाचूर हो जाते हैं तुम्हारे खूबसूरत सँजोए सपने

तुम बंज़र धरती पर लहलहाती फसलें तो उगा लेते हो
पर अपना बंज़र भाग्य क्यूँ नहीं सँवार पाते..?

तुम अपने कर्मठ हाथों से
खेतों पर लगातार हल चला लेते हो
अपने फ़ौलादी कंधों से
पत्थर तोड़कर पानी निकाल लेते हो
पर अपनी भूख की विकट समस्या को हल क्यूँ नहीं कर पाते..?

सदियों से तुम ठगे जाते रहे हो
तुम्हारी सरकारें अच्छे दिन के सपने दिखाकर
अपनी वोट की फसलें काट ले जाते हैं
अभावों के आँगन में तुम महज़ जिंदा तो रहते हो
पर कभी फलते-फूलते क्यों नहीं..?

तुमने इनके उनके सबके शासन को देखा है
तेरे हिस्से में आज तलक
झूठे आश्वासन और झुठी सहानुभूति ही मिलती रही है

दरअसल बिडम्बना है तेरे जीवन की
जिनके पैरों पर धूल के कण भी नहीं लगते
वही बनाते हैं तुम्हारी भलाई के लिए कानून

जिन्हें एलर्जी है धूप से
वही बैठकर एयर कंडीशनर कमरों में
तुम्हारे भाग्य के लिए गढ़ते हैं योजनाएं

आज़ादी से पहले भी तुम्हारे पूर्वजों ने
इज़ारेदारी,जमीदारी,रैयतवाड़ी और महालवाड़ी
जैसी अनेक व्यवस्थाएं देखी है
पर तमाम व्यवस्थाओं में कभी किसान नहीं दिखे

कर्ज़ के गुलाम तब भी थे और आज भी हो
देश की आज़ादी के बाद भी तुम आज़ाद नहीं हुए
बताओ ! तुम इस देश के हो या नहीं..?

कवि पंत को तुम्हारी आँखों में
स्वाभिमान तब भी नहीं दिखा था
वह मुझे अब भी नहीं दिख रहा
दारूण दीनता और कठिन दुखों से
तुम्हारा पुराना नाता रहा है
तुम अपने अधिकारों के लिए
कभी संगठित क्यों नहीं हो पाते..?

किसान नेता कहलाने वाले तुम्हारे नेतृत्वकर्ता
क्या सचमुच किसान होते हैं..?

सरकारें जब भी तुम्हारे हित कानून बनाती हैं
उनमें तुम्हारी आत्मनिर्भरता की बात होती है
तुम्हारी आय दोगुना करने की बात होती है
बिचौलियों से तुम्हारी मुक्ति की बात होती है

विपक्ष उसी कानून को किसान विरोधी बताकर
सदन में हंगामा खड़ा करता है
प्रस्तुत विधेयक का कागज़ फाड़ता है
किसानों के पक्ष में देशव्यापी आंदोलन की बात करता है

मग़र सच्चाई तो यह है कि
शतरंज खिलाड़ी की तरह ये राजनेता
राजनीति के बिसात पर
तुम्हें मोहरे बनाकर मनचाहा खेलते हैं
और हर बार तुम प्यादे की तरह पीटे जाते हो

अरे अभागा ! तेरे पास धरती का एक टुकड़ा भी नहीं है
अब तू ही बता तुम्हें कैसे कहूँ धरती-पुत्र..?

-- नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

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