Monday 9 January 2023

जिंदगी आबाद रहेगी : साधारण लोगों की असाधारण कविताएं

जिंदगी आबाद रहेगी : साधारण लोगों की असाधारण कविताएं
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युवा कवि और आलोचक अजय चंद्रवंशी का यह पहला काव्य संग्रह है। इससे पहले "भूख" शीर्षक से उनका एक गजल संग्रह प्रकाशित हो चुका है। उनकी दोनों किताब साहित्यिक विधा (कविता और ग़ज़ल) की दृष्टि से अलग-अलग है मगर दोनों ही विधा में भावों और विचारों की समानता है। किसी भी रचनाकार के लिए विधा महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उनका कहन या वैचारिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होता है। जब कोई युवा रचनाकार रचना प्रारंभ करता है तो सामान्यत: शेरो शायरी, गजलों या कविताओं से ही प्रारंभ करता है।
                        अजय जी अपनी रचनाओं में चाहे गजल हो या कविताएं अपने जीवन की अनुभूतियों एवं अनुभव को बिना लाग लपेट के सीधे सरल भाषा में लिखते हैं। मुझे निजी तौर पर मुक्त छंद की कविताएं अपनी बातों को यथावत कहने के लिए उपयुक्त नजर आती हैं। इस संग्रह की कविताओं में भावों की विविधता देखी जा सकती है। उनकी कविताओं में प्रेम है,आत्माभिव्यक्ति है किसानों और मजदूरों की पीड़ा है,कहीं हताशा है तो कहीं उम्मीद है,उनके अपने लोग और उनकी अनुभूतियां हैं, देश समाज और आसपास की विसंगतियां हैं,व्यवस्थाओं के लिए खीझ है साथ ही तीखा व्यंग है। कुल मिलाकर उनकी कविताएं जीवन की सच्चाई से लबरेज है । पूर्णतः यथार्थवादी हैं। उनकी कविताओं में कहीं भी झूठे आदर्शवाद और वायवीय दुनिया की छाया नहीं ढूंढ सकते। उनके शब्द जितने साधारण और सरल हैं उतने ही तीखे भी हैं जो तथाकथित आदर्श वादियों को सुई की नोक की तरह चुभनेवाले हैं। वे अपनी कविताओं में पारलौकिक आध्यात्मिक बातें नहीं करते बल्कि जीवन से जुड़ी जरूरी बातें करते हैं। उनकी कविताओं में जरा भी हवा हवाई बातें नहीं है बल्कि पूरी जमीनी हकीकत है। कविताओं में शब्द है मगर शब्दजाल नहीं है,शाब्दिक चमत्कार नहीं है। कविताओं में उनके कहन की सादगी चमत्कृत करती है।
               मैं बचपन में अपने स्कूली दिनों में भगवतशरण उपाध्याय जी का एक निबंध पड़ा था शीर्षक था "मैं मजदूर हूं"। निबंध में लेखक ने मजदूरों को सारे संसार के विकास का सर्जक बताया है। सचमुच दुनिया मजदूर के कंधों पर ही होती है। धन दौलत वाले सब मिट जाते हैं मगर मजदूर कभी नहीं मिटते। इस कविता संग्रह की शीर्षक कविता जिंदगी आबाद रहेगी इस बात की तस्दीक करता है। पंक्तियां दृष्टव्य है--
        "जिंदगी आबाद है
          फुटपाथ पर कपड़ा बेचते उस बुजुर्ग के चेहरे में
           ग्यारह बजे तक भी काम ना मिले उन मजदूरों    की 
           उम्मीदों में
           जिस्म झुलसाती इस दोपहरी में ठेला पेलते पैदल चलते 
           जद्दोजहद करते इन लोगों में
           तुम फैलाओ नफरत, नफरत के सौदागरों
           जिंदगी आबाद रहेगी तुम्हारी जात,मजहब को ठोकर 
           मारती ।"
बेबस लोगों की बेबसी एक संजीदा कवि ही समझ सकता है। वरना यहां धनवानो,व्यवस्थादारों को इतनी फुर्सत कहां कि वह उनके हालात पर एक नजर डाल सके। "शिकायत" कविता की बानगी देखिए--
          "तुमको शिकायत है कि 
          मैं कुछ नहीं कहता 
          मगर ये पथराई आंखें 
          ये सूखे होंठ डगमगाते कदम ये जिस्म को छुपाने में 
          नाकाम कपड़े 
          रीढ़ को छूता पेट
          बहुत कुछ कह रहे हैं 
          काश तुम समझ पाते।"
इस संग्रह की अधिकांश कविताएं मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। कवि जहां एक ओर गरीब किसानों मजदूरों के प्रति सहानुभूति प्रकट करते दिखते हैं तो दूसरी ओर उनके शोषण करने वालों के विरुद्ध आक्रोशित नजर आते हैं। वे अपनी कविताओं के माध्यम से किसानों मजदूरों को शोषण तंत्र के खिलाफ संगठित होकर आवाज बुलंद करने के लिए प्रेरित करते हैं। "बेबसी"कविता का अंश दृष्टव्य है--
            "मैं भी वही हूं 
            जो तुम हो
            तुम्हारी आंखों की नमी
            मेरी आंखों में है।"
            ××××××××××
            "मगर मेरे भाई
            यह हवा पानी ये जमीन हमारा भी है
            हमें छीनना है उनसे
            जो हमारा हक छीन कर बैठें है।"
 उनकी कविताओं में आत्म स्वाभिमान का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। उनकी स्थिति विवशतापूर्ण भले ही हों मगर उस पर भी वे फक्र करते नजर आते हैं। कवि को अपनी यथास्थिति स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं है। "कामन" कविता की पंक्तियां दृष्टव्य है--
            "मगर हम नहीं करते अपनी दुनिया से घृणा
            हमें नाज है
            अपने अपने काम अपने घर अपने मोहल्ले और अपने 
            लोगों पर।"
यूं तो प्रेम करना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। मगर गरीब के पास इतना सुभिता नहीं होता कि अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के लिए जी सके। उसकी जिंदगी समस्याओं से भरी होती है। रोजी रोटी के जुगाड़ और छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने में ही उसकी जिंदगी खप जाती है। "मौत" कविता का अंश दृष्टव्य है--
              "आती होगी उनको सावन में 
              अपनी प्रेमिका की याद
              हमें तो अपनी टूटी छानही की फिक्र सताती है।"
यह किसी से छिपा नहीं है कि आदिवासियों को सुविधा देने के नाम पर व्यवस्थादारों के द्वारा लगातार उनका शोषण किया जा रहा है। नगरीय अपसंस्कृति के दखलंदाजी से उनकी खूबसूरत प्रकृति और संस्कृति नष्ट होती जा रही है। बाजार के गिरफ्त में उनके जल जंगल और जमीन छीने जा रहे हैं। उनकी जिंदगी की असल समस्याएं अब भी ज्यों का त्यों है। "बकौदा के आदिवासी" कविता में सच्चाई की बयानी देखिए--
               " यह नहीं आते तुम्हारी समस्याओं का हल करने
               ये आते हैं यहां पिकनिक मनाने
               अपने उबे हुए दिनों से कुछ राहत पाने
               यह कैद करते हैं कैमरों में तुम्हारे नंगे जिस्म
               और बेचते हैं बाजारों में,
               या सजाते हैं अपने ड्राइंग रूम में
               तुम इनके लिए एक तस्वीर से ज्यादा कुछ भी नहीं 
               हो।"
 "जंगल का एक फूल" एक प्रतीकात्मक कविता है। इस कविता के माध्यम से आदिवासी अस्मत एवं अस्मिता को सुरक्षित रखने की अपील की गई है--
                "बदलो अपनी नजर
                अपने प्रतिमान
                सम्मान करो उसकी अस्मिता का और फिर देखो
                कितनी खुशबू है उसमें
                तुम्हारे लिए भी।"
कवि अपने परिवेश और परिवेश के लोगों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। यदि कवि किसी खास व्यक्तित्व से प्रभावित होता है तो वह उसके प्रति अपनी संवेदनशीलता शब्दों में व्यक्त करता है। कविता संग्रह की कुछ कविताओं में कुछ खास व्यक्तित्व को समर्पित करते हुए कवि ने उनके प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करते दिखते हैं, जैसे-वानगाग के लिए, गुरुदत्त के लिए (ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है), इजाडोरा के लिए, इमरोज के लिए (प्यार), साहिर लुधियानवी के लिए।
                  कविता संग्रह की कुछ कविताएं आकार में बहुत छोटी है किंतु उनमें भावनात्मक गहनता तथा व्यंग्यात्मक तीक्ष्णता बड़ी गहरी है। आकार में छोटी कविताओं में निर्मोही, मठ भंजक, एक जमीनी कवि, आलिंगन, सत्यवादी, सच्चे वीर, दर्द, बहस, राजनीति, निष्पक्ष, खुद्दार, अनुयाई, तटस्थ, किताबें आदि प्रमुख है। उनकी छोटी कविताओं के कुछ उदाहरण प्रस्तुत है--
                  "वे मठों को तोड़ने आए थे
                  और उन्होंने एक नया मठ बना लिया।"(मठ भंजक)
                  ×××××××××××
                  "वह राजनीति से दूर रहता है
                  मगर
                  दूर रहना भी
                  उसकी एक राजनीति है।"(राजनीति)
                  ××××××××××××
                  "उसने गले लगाया..
                  मैं सहमा नहीं
                  चीखा !!"(आलिंगन)
                  ××××××××××××
                  "वह किसी का
                  पक्ष नहीं लेता
                  सिवा खुद के।"(निष्पक्ष)
व्यंजना शैली में कही गई बातों को जानकार रचनाकार या सुधि पाठक ही समझ पाते हैं मगर सीधे तौर से अभिधामूलक भाषा में कही गई बातों को साधारण पाठक भी सहजतापूर्वक ग्रहण कर सकते हैं। "झूठे खुदा" नामक कविता में अभिधामूलक भाषा का स्वभाविक प्रयोग देख सकते हैं--
                 "जिन्हें रोटी की जरूरत थी
                 तुमने उन्हें मजहब दिया
                 जिन्हें रोजगार की जरूरत थी
                 उन्हें झूठा आदर्श दिया।"
इसी तरह "एक सिविल सेवक के लिए" कविता में सिविल सेवक बनने के बाद सिविल सेवक की प्रवृत्ति में हुए बदलाव को सीधे शब्दों में कविता के माध्यम से रेखांकित करते हैं--
                  "अब वह चाय ठेलों में नहीं बैठता
                  अब फुटपाथ के समोसे उसे अच्छे नहीं लगते
                  एक ही ड्रेस को दो दिन पहने
                  इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते
                  उसके अंडर वियर तक हमारी कमीज़ से महंगे होते 
                  हैं।"
कवि में दृश्य को शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता है। उनके दृश्य चित्रण में दृश्य हमारे आंखों के सामने प्रत्यक्ष हो जाते हैं।"पिता का कमरा" कविता से दृश्य चित्रण का अंश प्रस्तुत है--
                   "कमरे में एक टूटी कुर्सी है जिसे उन्होंने काम 
                   चलाऊ बना लिया था
                   एक कूलर एक स्टूल 
                   छत पर एक पंखा
                   एक बिजली बोर्ड जिसमें पीली रोशनी का बल्ब
                   जमीन में पलस्तर कई जगह उखड़ा उखड़ा।"
इसी तरह पहली बार मजदूरी के लिए आए एक किसान का दृश्य चित्रण "किसान मजदूर" कविता में देखिए --
                "वह मजदूरों के ठीहे पर कुछ असहज से बैठा था
                जैसे मजदूरों के बीच मजदूर न हो
                पहनावा मजदूरों के ढंग का ना था
                धोती कमीज पहने सिर पर पागा बांधे
                वाह किसान लग रहा था।"
इसी तरह "हस्तरेखा बांचने वाला" कविता में दृश्य चित्रण देखते बनता है---
                " उस उम्र दराज बुजुर्ग के पैर कांपते हैं
                ठीक से चला नहीं जाता
                उम्र की मार के आगे शरीर बेबस है
                फिर भी बैठता है फुटपाथ पर
                एक बोरी बिछाए
                जिस पर होते हैं एक दो धार्मिक तस्वीर
                और धुआं छोड़ते कुछ अगरबत्ती जलते रहते हैं।"
कविता में शिल्प पक्ष का अपना महत्व होता है मगर कविता में अलंकार आदि का प्रयोग सायास किया जाए तो स्वाभाविकता खत्म हो जाती है। कवि अपने प्रेम की कविताओं में उपमा अलंकार का प्रयोग स्वाभाविक रूप से करते हैं--
                 "कितनी सुंदर लग रही थी आज तुम!
                 कितनी सादगी थी चेहरे पर
                 जैसे किसी नदी में होती है धरा से निकलते वक्त
                 जैसे किसी मासूम बच्चे के चेहरे पर होती है हंसते 
                 वक्त।"
"साहिर लुधियानवी के लिए"लिखी कविता में प्रयुक्त उपमा अलंकार दर्शनीय है--
                  "जैसे कोई खंजर सीने में उतर गया हो
                  जैसे कोई बुझता शोला भड़क गया हो
                  जैसे पिंजरे में कैद परिंदा लोहा से बगावत कर दे
                  वही असर
                  तेरे गीतों,तेरी नज़्मों तेरे शेरों ने मुझ पर किया है।"
इसी तरह "तुम"कविता में सुंदर उपमानों का प्रयोग किया गया है--
                  "तुम
                  जैसे बच्चों की मुस्कान
                  जैसे सुबह-सुबह चिड़ियों की गान
                  जैसे दूर मंदिर में घंटियों की सदा
                  जैसे किसी मस्जिद की अजान "
किसी कवि की सफलता इस बात पर निर्भर करता है कि कवि अपनी संवेदनाओं के माध्यम से पाठक से कितना जुड़ पाता है। यानी कवि और पाठक की संवेदनाओं का एक हो जाना कवि कर्म की सफलता मानी जाती है। चेतस रचनाकार वही माना जाता है जिसमें युगबोध की प्रवृत्ति होती है। युगीन परिस्थितियों और उससे उपजी विसंगतियों को उनकी कविताओं में देखी जा सकती है। कवि अपने कविता संग्रह की अपनी बात में लिखते हैं,"कई संवेदनात्मक घटनाएं अनुभूति मान अपमान जब कभी मेरी संवेदनाओं को छूती है झकझोरती है तो कोई पंक्ति जेहन में उभर आती है।"सच्चा कवि कभी पलायनवादी नहीं होता वह जो देखता महासूसता है उसे शब्द देने का काम करता है, कवि ने ऐसा ही किया है। सद्य: प्रकाशित इस काव्य संग्रह की कविताएं निश्चित तौर से सहृदय पाठकों को प्रभावित करेगी।

कृति - "जिंदगी आबाद रहेगी" (कविता  संग्रह)
रचनाकार - अजय चंद्रवंशी

नरेंद्र कुमार कुलमित्र
वार्ड क्रमांक 08, मार्ग क्रमांक 3,
जी श्याम नगर, कवर्धा 
जिला कबीरधाम छत्तीसगढ़-491995
मो. नं.- 9755853479

नाचता है मेरा मन-06.01.23

आज की दो कविताएं : --

1. नाचता है मेरा मन-06.01.23
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मेरी छोटी सी बेटी नाचती है
वह अपने नन्हें हाथों से पकड़कर मेरी उंगलियां खींचती है
कहती है पापा आप भी नाचो ना..! 
मैं अपनी तरह थोड़ा ठुमकता हूं बेटी के संग
वह हंसती है और कहती है
आपको बिलकुल नाचने नहीं आता पापा
सचमुच मैं बेटी जैसे नहीं नाच पाता
पर जब-जब मेरी बेटी थिरकती है नाचती है
उत्साह और आनंद से
मन ही मन मैं भी थिरकने नाचने लग जाता हूं...।

2. झाड़ू लगाना-06.01.23
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हम झाड़ू लगाते हैं रोज
रोज फैल जाता है कचरा
रोज झाड़ू
रोज कचरा
हम झाड़ू लगाना नहीं छोड़ते
कभी खत्म नहीं होता कचरे का फैलना
कचरा जितना भी फैले
झाड़ू लगाते रहेंगे हम...।

--नरेंद्र कुमार कुलमित्र
   9755852479

कहने का जरिया-08.01.23

कहने का जरिया-08.01.23
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मैं किसी से कुछ कहना चाहता हूं 
कुछ प्यार की बातें
कुछ नफरत की बातें
कुछ इजहार की बातें
कुछ स्वीकार की बातें
कुछ नकार की बातें
कुछ विरोध की बातें 
कुछ प्रतिकार की बातें
पर कह नहीं पाता
बड़ी अजीब स्थिति होती है मेरी

डर जाता हूं
या संकोच करता हूं
या शरमा जाता हूं
पर सच कहने से बहुत कतराता हूं
बिल्कुल भी हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं 
हर बार कहे बिना रह जाता हूं

भीतर रह गई अनकही बातें
दिन-रात बेचैन करती है

सहेजूं तो कब तक संभालूं तो कब तक..
भीतर धधक रहे अव्यक्त लावे को

कभी अचानक फूट पड़ता हूं 
ज्वालामुखी की तरह

उठाता हूं कलम और लिखता हूं इक कविता...

बिना डरे बिना शर्माए बिना कतराए
पूरा सच कह डालता हूं कविता में

सोचता हूं कितना खुशनसीब हूं
खुद को उड़ेल देने का
कुछ तो जरिया है मेरे पास...!!

-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

मंडला की एकदिवसीय यात्रा - 26.12.2022

मंडला की एकदिवसीय यात्रा - 26.12.2022
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अपने परिवार के साथ किसी स्थान की यात्रा पर जाना बेहद सुखद क्षण होता है। अगर बात करें नौकरी पेशा वाले आदमी की वह नौकरी के सिलसिले में या फिर संस्था के दोस्तों यारों के साथ मस्तीखोरी के लिए अक्सर समय निकाल लेता है। मगर घर परिवार पत्नी बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने जाने की योजना कई बार बनती है और टल जाती है। घर में जब भी कहीं घुमाने ले जाने की बात मुझसे करते हैं तो मैं अक्सर कवर्धा के आसपास के वही सब पुराने स्थान सरोदा डैम,भोरमदेव,चिल्फी घाटी या सरोदा दादर ले जाने की बात करता हूं, जहां वे इतनी बार जा चुके हैं कि नाम सुनते ही नाक मुंह सिकोड़ने लगते हैं। वहां बच्चे जा जाकर बोर हो चुके हैं। दरअसल यह मानवीय प्रवृत्ति है कि हम पास में रहने वाली अच्छी और महत्वपूर्ण चीजों की कद्र और महत्व नहीं समझ पाते या समझते भी हैं तो हमें उसका महत्व या आकर्षण उतना प्रभावित नहीं करता। इसीलिए हम नए स्थान नई जगह जाने के लिए लालायित होते हैं और तलाश में लगे होते हैं।
                   कुछ दिन पहले ही कल्पना को अपनी बुआ से मंडला के आसपास कुछ अच्छे पर्यटन स्थलों की जानकारी मिली थी। उन पर्यटन स्थलों में कुछ ऐतिहासिक और कुछ प्राकृतिक स्थल शामिल है। मैं कल्पना और बच्चों को पहले ही आश्वस्त कर दिया था कि शीतकालीन की छुट्टी में कहीं घूमने जरूर चलेंगे। 25 तारीख को मेरे निवास पर पाठक मंच और बनवाली सृजन पीठ के सदस्य मित्र एकत्रित हुए थे और काव्य गोष्ठी संपन्न हुआ था। गोष्ठी समाप्त होने के बाद मैं और कल्पना बात करके यह तय कर लिए कि कल सुबह निर्धारित स्थान के लिए पक्के तौर से घूमने के लिए निकलना है। एक दिन पहले आशीष (साला)आया था वह भी साथ चलने के लिए तैयार हो गया । आशीष के साथ चलने से मुझे कार ड्राइव करने में आधा सहयोग मिल गया। हमने 26 तारीख को सुबह 5:00 बजे उठने और 6:00 बजे तक हर हाल में निकल जाने की योजना बनाई। कल्पना अपनी बुआ से व्हाट्सएप पर रूट चार्ट पहले से ले ली थी। हम तय समय से विलंब में उठे जिसके कारण तैयार होते होते 7 बज चुके थे। हम सभी नए दर्शनीय स्थलों तक पहुंचने और उन्हें देखने की जिज्ञासा और उत्साह से भरे हुए थे। बोड़ला से आगे निकलते ही मैकल पर्वतमाला की हरी-भरी वादियां शुरू हो जाती है। यूं तो कवर्धा से बेहद करीब होने के कारण हमने चिल्फी घाटी की यात्राएं कितनी बार की है पर इसके बावजूद इसके आकर्षण और सौंदर्य में कोई कमी नहीं लगती है। चिल्फी घाटी पर कार ड्राइव करना नौसीखिए चालक के लिए थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है। पर्वतों को काटकर बनाए गए ऊंचे टेढ़े मेढ़े घुमावदार सड़क से गुजरना बड़ा रोमांचकारी अनुभव होता है। इस घाटी में कुछ ऐसे खतरनाक 90 डिग्री वाले मोड़ हैं जहां सामने से आ रही गाड़ियों का बिल्कुल पता नहीं चलता। हालांकि इन मोड़ों से पहले "आगे अंधा मोड़ है" लिखे हुए सूचनात्मक बोर्ड जगह-जगह लगे हुए हैं। फिर भी यहां आए दिन हादसे होने की खबर मिलती रहती है।
                   बोड़ला,चिल्फी,बिछिया होते हुए हम रामनगर के लिए आगे बढ़ रहे थे। सुबह के 9:00 बजने वाले थे सो रूटीन के हिसाब से हमें भूख सताने लगी थी। हमने किसी बड़े होटल पर नाश्ता करने के बजाय रोड के किनारे मिलने वाले टपरी नुमा छोटे होटल पर चाय नाश्ता करने का मन बनाया था। बिछिया के आगे हमें एक ठेला मिला जहां गरमा गरम आलू गुंडे और मगोड़ियां बनाई जा रही थी। हम सबने टमाटर चटनी के साथ गरमागरम आलू गुंडे और मंगोड़ी नाश्ते का मज़ा लिया। सचमुच नाश्ता बहुत स्वादिष्ट था और चटनी बड़ी टेस्टी थी, मगर चाय बहुत खराब बनी थी। चाय में अदरक नहीं डली थी मैंने चाय वाले लड़के से शिकायत की तो उन्होंने अपनी सफाई में कहने लगा कि चाय में अदरक डालने से थोड़ी देर में चाय काली हो जाती है इसलिए नहीं डालता हूं।
                   करीब 10:15 के आसपास हम रामनगर पहुंचे। रामनगर जिला मुख्यालय मंडला से 17 किलोमीटर की दूरी पर है मगर हम यहां दूसरे रास्ते से पहुंचे थे। यह स्थान ऐतिहासिक इमारतों के लिए विख्यात है। यहां 17वीं शताब्दी में गोंड राजा हृदयशाह का शासन हुआ करता था। रामनगर जंगलों और पहाड़ों की सुरम्य वादियों के बीच नर्मदा नदी के किनारे बसा है। तब हृदयशाह ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाई थी। यहां उनके द्वारा बनवाए गए अनेक ऐतिहासिक इमारत आज भी सुरक्षित हैं। प्रमुख इमारतों में मोती महल,रायभगत की कोठी,बेगम (रानी) महल और विष्णु मंदिर प्रमुख है। मोती महल का निर्माण 1667 ईस्वी में गोंड राजा हृदय शाह द्वारा करवाया गया था। इसे राजा का महल भी कहा जाता है। यह महल आयताकार है तथा महल के बीचोबीच एक विशाल कुंड है जिसे स्नानागार के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। महल की भव्यता और विशालता अद्भुत है,यह तीन मंजिला भवन है इसके नीचे तलघर है। स्थानीय जानकार लोगों ने बताया कि महल का निर्माण चूने, गारे, गुड़ और बेल की गोंद से किया गया है। इस महल में छोटे-बड़े अनेक कमरे हैं। महल के बारे में एक किवदंती प्रचलित है कि राजा ने इस महल को अपने तंत्र विद्या से बनवाया था। यह भी प्रचलित है कि महल में लगे पत्थर तंत्र शक्ति के द्वारा हवा में उड़ उड़ कर आए थे। मोती महल से लगा हुआ लगभग 50 फीट की दूरी पर विष्णु मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा हृदय शाह की पत्नी रानी सुंदरी देवी ने करवाया था। मंदिर पंचायत शैली में निर्मित है,इसके कक्ष और खुले बरामदे अत्यंत दर्शनीय है। मोती महल से लगभग एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर राय भगत की कोठी है जिसे राजा हृदय शाह ने अपने दीवान राय भगत को समर्पित करके बनवाया था। इसे मंत्री महल भी कहा जाता है। यह महल मोती महल और विष्णु मंदिर के समकालीन हैं। महल के ऊपर चारों ओर फलक दार गुंबद बने हुए हैं तथा महल के बाहर रसोईघर बना है। इस महल को लगभग मोती महल के अनुकरण पर ही बनाया गया हैं इसलिए इस महल में भी भव्यता और आकर्षण विद्यमान है। मोतीमहल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर बेगम का महल स्थित है। बेगम महल,मोती महल और राय भगत की कोठी की तुलना में ज्यादा जर्जर नजर आया। यह महल राजा हृदय शाह द्वारा चिमनी रानी के लिए बनवाया था। महल के सामने एक बड़ी बावड़ी बनी है जहां जाने के लिए सीढ़ी के दो रास्ते बनाए गए हैं। मोती महल से रानी महल के लिए आते समय रास्ते पर एक अत्यंत जर्जर खंडहर हो चुके इमारत को हमने देखा। इस महल का नाम "दल बादल महल" है जिसे राजा हृदय शाह ने अपने सेनापतियों एवं सैनिकों के रहने के लिए बनवाया था। इस महल की छत गिर चुकी हैं और वर्तमान में जर्जर हालत में केवल दीवारें शेष हैं। रामनगर से मंडला आने के समय किसी ने बताया कि यहां से 4 किलोमीटर की दूरी पर "काला पहाड़" नामक स्थान दर्शनीय है। उस स्थान के संबंध में इतिहासकारों का मानना है कि रामनगर के महलों के निर्माण के बाद बचे पत्थरों को वहां एकत्रित किया गया है। हालांकि समयाभाव होने के कारण हम उस स्थल पर नही जा सके।
                   रामनगर के ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण के बाद हम मंडला के लिए प्रस्थान किए। रामनगर से मंडला जाने के लिए नर्मदा नदी पर पुल बना है। हम लगभग 20 मिनट में मंडला पहुंच गए। मंडला से करीब 3 किलोमीटर की दूरी में सहस्त्रधारा नामक मनोरम प्राकृतिक दर्शनीय स्थल है। दरअसल ये सहस्त्र धाराएं नर्मदा नदी के काले चट्टानों से गिरने वाली अजस्र धाराएं हैं। सहस्त्र धाराओं की खूबसूरती और धाराओं से निकलने वाली झरझर की मधुर आवाज को हमने नाव के द्वारा इसके ठीक नीचे जाकर करीब से महसूस किया। यहां पर श्रद्धालु नर्मदा नदी के बीचो-बीच बने सहस्त्रार्जन मंदिर का दर्शन लाभ लेते हैं। स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि बरसात के दिनों में यह मंदिर नर्मदा नदी में पूरी तरह डूब जाता है। यहां सहस्त्रधारा का सौंदर्य जितना लुभावना है उतना ही इसके आसपास का चट्टानी स्वरूप डरावना भी है। हमें इसके मनोरम दृश्य का लुत्फ उठाते समय हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए और इनकी तेज धाराओं से टकराने का दुस्साहस तो बिल्कुल भी नहीं। यहां पर जल्दबाजी या नासमझी में उठाया गया कोई भी कदम जोखिम भरा हो सकता है। यहां के दृश्य अद्भुत हैं मगर खूबसूरत दृश्यों का आनंद सतर्कता के दायरे में लेना ही बुद्धिमानी होगी। हमने यहां सपरिवार अलग-अलग कोणों में अनेक तस्वीरें ली। सहस्त्रधारा से लौटते लौटते 4:30 बज चुके थे। सहस्त्र धारा के आसपास खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं मिला था सिवाय गन्ना रस के। हमें जोरों की भूख लग रही थी बच्चे परेशान करने लगे थे हम होटल की तलाश में थे। हम सभी ने लजीज शेजवान पनीर बिरयानी का लुत्फ़ उठाया तब जाकर शांति मिली। 5:30 बज चुके थे हम सभी थक चुके थे मगर कल्पना बार-बार म्यूजियम जाने की बात कर रही थी। हम एक स्थानीय व्यक्ति से पता पूछ कर मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा निर्मित मंडला जिला संग्रहालय पहुंचे तो निराशा हाथ लगी क्योंकि सोमवार को संग्रहालय बंद था। संग्रहालय परिसर का गेट खुला था परिसर में कुछ मूर्तियां रखी थी बस उन्हें ही हम देख सके। इस परिसर में एक प्राचीन पादप का फॉसिल रखा हुआ था जिसके संबंध में 6 करोड़ों वर्ष पुराना होने के संबंध में जानकारी लिखी हुई थी। शाम 6:00 बजे के करीब जब हम मंडला से कवर्धा के लिए लौट रहे थे तभी नर्मदा नदी पुल से ठीक पहले बाई ओर एक हैंडीक्राफ्ट का दुकान दिखा। कुछ देर के लिए वहां जाने की हमारी इच्छा हुई। यहां हमें वुडन शिल्प,ढोकरा शिल्प,आयरन और मिश्र धातुओं से बनी मूर्तियां दिखाई दी जो आमतौर पर सभी हैंडीक्राफ्ट की दुकानों पर मिल जाती हैं। मुझे आयरन से बनी एक हिरण की मूर्ति बड़ी आकर्षक लगी हम सबने उसे पसंद किया सो मैंने ख़रीद ली। मंडला से निकलते 6:30-6:45 हो चुके थे। हम मंडला के एकदिनी प्रवास की यादों को सहेजे हुए कवर्धा आ रहे थे। रास्ते में शायद बिछिया के आसपास हमने हाईवे ढाबे पर गरमा गरम चाय का लुत्फ उठाया। जब हम रात में करीब 10:00 बजे घर पहुंचे तो शरीर में थोड़ी थकान थी पर मन में बहुत सारी यादें थीं। घूमने के शौकीन दोस्तों से रामनगर मंडला एक बार जाने का सुझाव जरूर दूंगा,आप कतई निराश नहीं होंगे। योजना बनाकर रखें मौका मिलते ही निकल जाइए जैसे हम निकले थे..।

Thursday 17 November 2022

कविता के मायने - 17.11.22

कविता के मायने  - 17.11.22
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जो अपने हक के लिए नहीं बोल पाते
उनके पक्ष में बोलती है कविताएं
जब-जब सत्ताधीशों को लगता है
कि अब बोलने की हिम्मत किसी में भी नहीं बची है
तब तब बुजदिली की मौन को चीरती हुई
लोगों की आवाज बनकर खड़ी हो जाती है कविता

अहम से भरे लोग जब प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर पाते
नफरतों की बाढ़ में जब डूबने लगती है प्रेम से भरी दुनिया
जब-जब नफ़रतियों को लगता है कि नफरत से ही पाया जा सकता है सब कुछ
तब तब नफरत से बजबजाती सड़ांध दुनिया में
खुशबुओं के मानिंद फैलने लगती है प्रेम आपूरित कविता

अंधेरा पसंद लोगों को रोशनी से भरी दुनिया पसंद नहीं आती
दुनिया में रोशनियों के खिलाफ खड़ी होने लगती है उल्लुओं और उल्लुओं के पट्ठों की फ़ौज
जब-जब बुद्धि और विवेक से शून्य होकर दुनिया अंधकार में डूबने लगती है
तब तब घोर अंधेरे को चीरती हुई
अंधेरे में सुराख बनाकर फैलने लगती है रोशनी से भरी कविता

-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
      9755852479

Monday 24 October 2022

अनकही बातें...

अनकही बातें
तुम हृदय में ही रहना
ज़बान पर मत आना...

अलिखे शब्द
तुम भावों में ही रहना
पन्नों पर नहीं उतरना...

न जाने फिर कोई बुरा न मान जाए...
न जाने फिर कोई हंगामा न हो जाए...

Thursday 6 October 2022

नमक का होना --07.10.22

मुझे टूटने और टूटकर गिरने से कभी डर नहीं लगता
मुझे विश्वास है अपने वजूद पर
अगर टूट कर बिखर भी जाऊं
तो मिट्टी में दबे बीज की तरह एक दिन फिर अंकुरित हो जाऊंगा