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मैं किसी से कुछ कहना चाहता हूं
कुछ प्यार की बातें
कुछ नफरत की बातें
कुछ इजहार की बातें
कुछ स्वीकार की बातें
कुछ नकार की बातें
कुछ विरोध की बातें
कुछ प्रतिकार की बातें
पर कह नहीं पाता
बड़ी अजीब स्थिति होती है मेरी
डर जाता हूं
या संकोच करता हूं
या शरमा जाता हूं
पर सच कहने से बहुत कतराता हूं
बिल्कुल भी हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं
हर बार कहे बिना रह जाता हूं
भीतर रह गई अनकही बातें
दिन-रात बेचैन करती है
सहेजूं तो कब तक संभालूं तो कब तक..
भीतर धधक रहे अव्यक्त लावे को
कभी अचानक फूट पड़ता हूं
ज्वालामुखी की तरह
उठाता हूं कलम और लिखता हूं इक कविता...
बिना डरे बिना शर्माए बिना कतराए
पूरा सच कह डालता हूं कविता में
सोचता हूं कितना खुशनसीब हूं
खुद को उड़ेल देने का
कुछ तो जरिया है मेरे पास...!!
-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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