Monday 9 January 2023

मंडला की एकदिवसीय यात्रा - 26.12.2022

मंडला की एकदिवसीय यात्रा - 26.12.2022
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अपने परिवार के साथ किसी स्थान की यात्रा पर जाना बेहद सुखद क्षण होता है। अगर बात करें नौकरी पेशा वाले आदमी की वह नौकरी के सिलसिले में या फिर संस्था के दोस्तों यारों के साथ मस्तीखोरी के लिए अक्सर समय निकाल लेता है। मगर घर परिवार पत्नी बच्चों के साथ कहीं बाहर घूमने जाने की योजना कई बार बनती है और टल जाती है। घर में जब भी कहीं घुमाने ले जाने की बात मुझसे करते हैं तो मैं अक्सर कवर्धा के आसपास के वही सब पुराने स्थान सरोदा डैम,भोरमदेव,चिल्फी घाटी या सरोदा दादर ले जाने की बात करता हूं, जहां वे इतनी बार जा चुके हैं कि नाम सुनते ही नाक मुंह सिकोड़ने लगते हैं। वहां बच्चे जा जाकर बोर हो चुके हैं। दरअसल यह मानवीय प्रवृत्ति है कि हम पास में रहने वाली अच्छी और महत्वपूर्ण चीजों की कद्र और महत्व नहीं समझ पाते या समझते भी हैं तो हमें उसका महत्व या आकर्षण उतना प्रभावित नहीं करता। इसीलिए हम नए स्थान नई जगह जाने के लिए लालायित होते हैं और तलाश में लगे होते हैं।
                   कुछ दिन पहले ही कल्पना को अपनी बुआ से मंडला के आसपास कुछ अच्छे पर्यटन स्थलों की जानकारी मिली थी। उन पर्यटन स्थलों में कुछ ऐतिहासिक और कुछ प्राकृतिक स्थल शामिल है। मैं कल्पना और बच्चों को पहले ही आश्वस्त कर दिया था कि शीतकालीन की छुट्टी में कहीं घूमने जरूर चलेंगे। 25 तारीख को मेरे निवास पर पाठक मंच और बनवाली सृजन पीठ के सदस्य मित्र एकत्रित हुए थे और काव्य गोष्ठी संपन्न हुआ था। गोष्ठी समाप्त होने के बाद मैं और कल्पना बात करके यह तय कर लिए कि कल सुबह निर्धारित स्थान के लिए पक्के तौर से घूमने के लिए निकलना है। एक दिन पहले आशीष (साला)आया था वह भी साथ चलने के लिए तैयार हो गया । आशीष के साथ चलने से मुझे कार ड्राइव करने में आधा सहयोग मिल गया। हमने 26 तारीख को सुबह 5:00 बजे उठने और 6:00 बजे तक हर हाल में निकल जाने की योजना बनाई। कल्पना अपनी बुआ से व्हाट्सएप पर रूट चार्ट पहले से ले ली थी। हम तय समय से विलंब में उठे जिसके कारण तैयार होते होते 7 बज चुके थे। हम सभी नए दर्शनीय स्थलों तक पहुंचने और उन्हें देखने की जिज्ञासा और उत्साह से भरे हुए थे। बोड़ला से आगे निकलते ही मैकल पर्वतमाला की हरी-भरी वादियां शुरू हो जाती है। यूं तो कवर्धा से बेहद करीब होने के कारण हमने चिल्फी घाटी की यात्राएं कितनी बार की है पर इसके बावजूद इसके आकर्षण और सौंदर्य में कोई कमी नहीं लगती है। चिल्फी घाटी पर कार ड्राइव करना नौसीखिए चालक के लिए थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है। पर्वतों को काटकर बनाए गए ऊंचे टेढ़े मेढ़े घुमावदार सड़क से गुजरना बड़ा रोमांचकारी अनुभव होता है। इस घाटी में कुछ ऐसे खतरनाक 90 डिग्री वाले मोड़ हैं जहां सामने से आ रही गाड़ियों का बिल्कुल पता नहीं चलता। हालांकि इन मोड़ों से पहले "आगे अंधा मोड़ है" लिखे हुए सूचनात्मक बोर्ड जगह-जगह लगे हुए हैं। फिर भी यहां आए दिन हादसे होने की खबर मिलती रहती है।
                   बोड़ला,चिल्फी,बिछिया होते हुए हम रामनगर के लिए आगे बढ़ रहे थे। सुबह के 9:00 बजने वाले थे सो रूटीन के हिसाब से हमें भूख सताने लगी थी। हमने किसी बड़े होटल पर नाश्ता करने के बजाय रोड के किनारे मिलने वाले टपरी नुमा छोटे होटल पर चाय नाश्ता करने का मन बनाया था। बिछिया के आगे हमें एक ठेला मिला जहां गरमा गरम आलू गुंडे और मगोड़ियां बनाई जा रही थी। हम सबने टमाटर चटनी के साथ गरमागरम आलू गुंडे और मंगोड़ी नाश्ते का मज़ा लिया। सचमुच नाश्ता बहुत स्वादिष्ट था और चटनी बड़ी टेस्टी थी, मगर चाय बहुत खराब बनी थी। चाय में अदरक नहीं डली थी मैंने चाय वाले लड़के से शिकायत की तो उन्होंने अपनी सफाई में कहने लगा कि चाय में अदरक डालने से थोड़ी देर में चाय काली हो जाती है इसलिए नहीं डालता हूं।
                   करीब 10:15 के आसपास हम रामनगर पहुंचे। रामनगर जिला मुख्यालय मंडला से 17 किलोमीटर की दूरी पर है मगर हम यहां दूसरे रास्ते से पहुंचे थे। यह स्थान ऐतिहासिक इमारतों के लिए विख्यात है। यहां 17वीं शताब्दी में गोंड राजा हृदयशाह का शासन हुआ करता था। रामनगर जंगलों और पहाड़ों की सुरम्य वादियों के बीच नर्मदा नदी के किनारे बसा है। तब हृदयशाह ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाई थी। यहां उनके द्वारा बनवाए गए अनेक ऐतिहासिक इमारत आज भी सुरक्षित हैं। प्रमुख इमारतों में मोती महल,रायभगत की कोठी,बेगम (रानी) महल और विष्णु मंदिर प्रमुख है। मोती महल का निर्माण 1667 ईस्वी में गोंड राजा हृदय शाह द्वारा करवाया गया था। इसे राजा का महल भी कहा जाता है। यह महल आयताकार है तथा महल के बीचोबीच एक विशाल कुंड है जिसे स्नानागार के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। महल की भव्यता और विशालता अद्भुत है,यह तीन मंजिला भवन है इसके नीचे तलघर है। स्थानीय जानकार लोगों ने बताया कि महल का निर्माण चूने, गारे, गुड़ और बेल की गोंद से किया गया है। इस महल में छोटे-बड़े अनेक कमरे हैं। महल के बारे में एक किवदंती प्रचलित है कि राजा ने इस महल को अपने तंत्र विद्या से बनवाया था। यह भी प्रचलित है कि महल में लगे पत्थर तंत्र शक्ति के द्वारा हवा में उड़ उड़ कर आए थे। मोती महल से लगा हुआ लगभग 50 फीट की दूरी पर विष्णु मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा हृदय शाह की पत्नी रानी सुंदरी देवी ने करवाया था। मंदिर पंचायत शैली में निर्मित है,इसके कक्ष और खुले बरामदे अत्यंत दर्शनीय है। मोती महल से लगभग एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर राय भगत की कोठी है जिसे राजा हृदय शाह ने अपने दीवान राय भगत को समर्पित करके बनवाया था। इसे मंत्री महल भी कहा जाता है। यह महल मोती महल और विष्णु मंदिर के समकालीन हैं। महल के ऊपर चारों ओर फलक दार गुंबद बने हुए हैं तथा महल के बाहर रसोईघर बना है। इस महल को लगभग मोती महल के अनुकरण पर ही बनाया गया हैं इसलिए इस महल में भी भव्यता और आकर्षण विद्यमान है। मोतीमहल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर बेगम का महल स्थित है। बेगम महल,मोती महल और राय भगत की कोठी की तुलना में ज्यादा जर्जर नजर आया। यह महल राजा हृदय शाह द्वारा चिमनी रानी के लिए बनवाया था। महल के सामने एक बड़ी बावड़ी बनी है जहां जाने के लिए सीढ़ी के दो रास्ते बनाए गए हैं। मोती महल से रानी महल के लिए आते समय रास्ते पर एक अत्यंत जर्जर खंडहर हो चुके इमारत को हमने देखा। इस महल का नाम "दल बादल महल" है जिसे राजा हृदय शाह ने अपने सेनापतियों एवं सैनिकों के रहने के लिए बनवाया था। इस महल की छत गिर चुकी हैं और वर्तमान में जर्जर हालत में केवल दीवारें शेष हैं। रामनगर से मंडला आने के समय किसी ने बताया कि यहां से 4 किलोमीटर की दूरी पर "काला पहाड़" नामक स्थान दर्शनीय है। उस स्थान के संबंध में इतिहासकारों का मानना है कि रामनगर के महलों के निर्माण के बाद बचे पत्थरों को वहां एकत्रित किया गया है। हालांकि समयाभाव होने के कारण हम उस स्थल पर नही जा सके।
                   रामनगर के ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण के बाद हम मंडला के लिए प्रस्थान किए। रामनगर से मंडला जाने के लिए नर्मदा नदी पर पुल बना है। हम लगभग 20 मिनट में मंडला पहुंच गए। मंडला से करीब 3 किलोमीटर की दूरी में सहस्त्रधारा नामक मनोरम प्राकृतिक दर्शनीय स्थल है। दरअसल ये सहस्त्र धाराएं नर्मदा नदी के काले चट्टानों से गिरने वाली अजस्र धाराएं हैं। सहस्त्र धाराओं की खूबसूरती और धाराओं से निकलने वाली झरझर की मधुर आवाज को हमने नाव के द्वारा इसके ठीक नीचे जाकर करीब से महसूस किया। यहां पर श्रद्धालु नर्मदा नदी के बीचो-बीच बने सहस्त्रार्जन मंदिर का दर्शन लाभ लेते हैं। स्थानीय लोगों ने हमें बताया कि बरसात के दिनों में यह मंदिर नर्मदा नदी में पूरी तरह डूब जाता है। यहां सहस्त्रधारा का सौंदर्य जितना लुभावना है उतना ही इसके आसपास का चट्टानी स्वरूप डरावना भी है। हमें इसके मनोरम दृश्य का लुत्फ उठाते समय हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए और इनकी तेज धाराओं से टकराने का दुस्साहस तो बिल्कुल भी नहीं। यहां पर जल्दबाजी या नासमझी में उठाया गया कोई भी कदम जोखिम भरा हो सकता है। यहां के दृश्य अद्भुत हैं मगर खूबसूरत दृश्यों का आनंद सतर्कता के दायरे में लेना ही बुद्धिमानी होगी। हमने यहां सपरिवार अलग-अलग कोणों में अनेक तस्वीरें ली। सहस्त्रधारा से लौटते लौटते 4:30 बज चुके थे। सहस्त्र धारा के आसपास खाने पीने के लिए कुछ भी नहीं मिला था सिवाय गन्ना रस के। हमें जोरों की भूख लग रही थी बच्चे परेशान करने लगे थे हम होटल की तलाश में थे। हम सभी ने लजीज शेजवान पनीर बिरयानी का लुत्फ़ उठाया तब जाकर शांति मिली। 5:30 बज चुके थे हम सभी थक चुके थे मगर कल्पना बार-बार म्यूजियम जाने की बात कर रही थी। हम एक स्थानीय व्यक्ति से पता पूछ कर मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा निर्मित मंडला जिला संग्रहालय पहुंचे तो निराशा हाथ लगी क्योंकि सोमवार को संग्रहालय बंद था। संग्रहालय परिसर का गेट खुला था परिसर में कुछ मूर्तियां रखी थी बस उन्हें ही हम देख सके। इस परिसर में एक प्राचीन पादप का फॉसिल रखा हुआ था जिसके संबंध में 6 करोड़ों वर्ष पुराना होने के संबंध में जानकारी लिखी हुई थी। शाम 6:00 बजे के करीब जब हम मंडला से कवर्धा के लिए लौट रहे थे तभी नर्मदा नदी पुल से ठीक पहले बाई ओर एक हैंडीक्राफ्ट का दुकान दिखा। कुछ देर के लिए वहां जाने की हमारी इच्छा हुई। यहां हमें वुडन शिल्प,ढोकरा शिल्प,आयरन और मिश्र धातुओं से बनी मूर्तियां दिखाई दी जो आमतौर पर सभी हैंडीक्राफ्ट की दुकानों पर मिल जाती हैं। मुझे आयरन से बनी एक हिरण की मूर्ति बड़ी आकर्षक लगी हम सबने उसे पसंद किया सो मैंने ख़रीद ली। मंडला से निकलते 6:30-6:45 हो चुके थे। हम मंडला के एकदिनी प्रवास की यादों को सहेजे हुए कवर्धा आ रहे थे। रास्ते में शायद बिछिया के आसपास हमने हाईवे ढाबे पर गरमा गरम चाय का लुत्फ उठाया। जब हम रात में करीब 10:00 बजे घर पहुंचे तो शरीर में थोड़ी थकान थी पर मन में बहुत सारी यादें थीं। घूमने के शौकीन दोस्तों से रामनगर मंडला एक बार जाने का सुझाव जरूर दूंगा,आप कतई निराश नहीं होंगे। योजना बनाकर रखें मौका मिलते ही निकल जाइए जैसे हम निकले थे..।

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