जिंदा रहने की कोशिश है 'लिखना'-14.04.22
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नहीं भूलती हैं लिखी हुई चीजें
शायद भूलने को परास्त करने के लिए खोजा गया होगा 'लिखना'
'लिखना' सीखने से पहले
हम सीखे होंगे 'बोलना'
मगर 'लिखने के बिना' कितना निराधार रहा होगा 'बोलना'
बोलने की प्रामाणिकता पर रोज उठाए जाते रहे होंगे सवाल
'बोला हुआ' सहीं होने पर भी
रोज कलंकित होता रहा होगा
'लिखना' सीखने से पहले
ना जाने कितनों ने की होगी वादा खिलाफी
ना जाने कितने
अपनी ही कही बातों पर
कभी भी मुकर जाते रहे होंगे
न जाने कितनी बार
स्मृतियों पर लगाए जाते रहे होंगे लांछन
लिखने के क्रम में हमने सीखा है
दृश्यों,घटनाओं और आंकड़ों को लिखना और सहेजना
अब लिखना महज लिखना नहीं है
'लिखना' कला है
रंगों को, संवेदनाओं को, हंसी को, रुदन को, प्रेम को,करुणा को,घृणा को रिश्तो को बड़े अलंकृत भाषा में लिखे जा रहे हैं
हम अक्सर भूल जाते हैं
दिन और तारीखें
पुराने दोस्तों के नाम और चेहरे
इन्हीं वजहों से
हमारे पूर्वजों ने
स्मृतियों की दगाबाजी से परेशान होकर
अपनी बातों को लिपियों में दर्ज करने का हुनर सीखे होंगे
हम जानते हैं अपनी सीमाएं
कि हम समय को रोक नहीं सकते
इसीलिए चुपचाप हम समय को दर्ज करते जाते हैं
और कुछ नहीं दरअसल
अपने समय को लिखते जाना
दबे पन्नों के अक्षर चिन्हों में
खुद को जिंदा रखने की कोशिश होती है।
-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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