कीचड़ होता है युद्ध -13.04.22
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युद्ध को
युद्ध से ही
खत्म करने की कोशिश करना
ठीक वैसी ही कोशिश है
जैसे कीचड़ को
कीचड़ से ही धोने की कोशिश करना
कीचड़ हो या युद्ध
हम संभल ही नहीं पाते
गिरते ही जाते हैं
दाएं बाएं के लोग भी
कीचड़ की छीटों से नहीं बच पाते
शहरों गलियों और घरों-घरों तक
बड़ी तेजी से फैलने लगता है कीचड़
कीचड़ में सने,पुते और धंसे लोगों को
कुछ भी सुनाई नहीं देती
कीचड़ की बाढ़ में
तबाह हो जाती हैं लहलहाती फसलें
दफन हो जाती हैं फलती फूलती सभ्यताएं
एक बार पांव रखने के बाद
बस धंसते ही जाते हैं
चाहे कीचड़ हो या युद्ध..।
--नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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