बातों को उबारने की कोशिश-21.01.22
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किसी के पास कुछ भी नहीं है कहने को
या फिर कह नहीं पाते जो कहना चाहते हैं
दुनिया में कहने को तो बहुत कुछ है
बहुत कुछ कहे जा चुके हैं
बहुत कुछ कहे जा रहे हैं
बहुत कुछ कहे जाते रहेंगे
कितनों का कहा बिल्कुल समझ नहीं आया
कितनों का कहा कुछ कुछ समझ आया
वही वही बातें कितनी बार कहे गए
कहने के तरीकों में होती हैं 'बातें'
गर कहने के तरीके ना हो तो शब्दों में रह जाती हैं 'बातें'
शब्दों के फंदों में
ना जाने कितनी बातें
फंसकर रह गई होंगी
शुक्रगुजार हैं हम उनके लिए
जिन्होंने शब्दों के जाल से बातों को उबारने की ईमानदार कोशिश की है।
-- नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479
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